विपक्ष की शिकायत: संसद में हंगामे के बीच विधेयक क्यों पारित हो रहे हैं, जरूरी बिल पेश और पारित कराना सरकार की जिम्मेदारी

विधेयकों के पारित होने पर आपत्ति भी जता रहा है?

Update: 2021-08-09 03:24 GMT

यह हास्यास्पद है कि विपक्ष इस बात की शिकायत राष्ट्रपति से करने की तैयारी कर रहा है कि संसद में हंगामे के बीच विधेयक क्यों पारित हो रहे हैं? क्या विपक्ष को यह नहीं पता कि वही तो है जो संसद में हंगामा कर रहा है? आखिर वह राष्ट्रपति से किसकी शिकायत करेगा? क्या खुद अपनी? सवाल यह भी है कि इस मामले में राष्ट्रपति कर ही क्या सकते हैं? विपक्षी नेता इससे अनजान नहीं हो सकते और न ही उन्हें होना चाहिए कि राष्ट्रपति के पास जाने से उन्हें कुछ हासिल होने वाला नहीं। राष्ट्रपति भवन तक उनकी दौड़ संसद के बाहर धरना-प्रदर्शन जैसी कवायद के अलावा और कुछ नहीं होगी। विपक्ष को क्षणिक प्रचार के अलावा और कुछ मिलने वाला नहीं है। उचित यह होगा कि विपक्ष इस पर विचार करे कि संसद किन कारणों से नहीं चल रही है? यदि वह इस सवाल पर थोड़ा भी विचार करेगा तो उसे अपनी गलती का अहसास अवश्य होगा, क्योंकि यदि संसद नहीं चल रही है तो उसके ही अडि़यल रवैये के कारण। उसे यह आभास होना चाहिए कि वह जिस पेगासस जासूसी मामले को तूल दे रहा है, वह बहुत ही कमजोर बुनियाद पर टिका है। पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट में इसकी पुष्टि तब हुई जब याचिकाकर्ता न्यायाधीशों के इस सवाल का जवाब नहीं दे सके कि आखिर इस मामले के प्रमाण कहां हैं?

समझना कठिन है कि विपक्ष यह क्यों नहीं देख पा रहा है कि वह उन ज्वलंत मसलों पर भी चर्चा कर पाने में नाकाम है, जिन्हें वह राष्ट्रीय महत्व का मुद्दा बताता रहा है और जिन्हें संसद में उठाने की जोर-शोर से घोषणा भी करता रहा है। इससे इन्कार नहीं कि पेट्रोलियम पदार्थो के मूल्यों में वृद्धि, किसान संगठनों के आंदोलन और कोरोना से उपजी स्थिति पर संसद में चर्चा होनी चाहिए, लेकिन यदि ऐसा नहीं हो पा रहा है तो इसके लिए विपक्ष ही जिम्मेदार है। विपक्ष की इस आपत्ति का तो कोई मूल्य-महत्व ही नहीं कि हंगामे के बीच विधेयक क्यों पारित हो रहे हैं? क्या वह यह चाहता है कि उसकी तरह सरकार भी अपने दायित्वों को भूल जाए? संसद चल रही हो तो जरूरी विधेयक पेश और पारित कराना सरकार की जिम्मेदारी है। इस जिम्मेदारी की अनदेखी करने का मतलब है देश के लिए आवश्यक कामों को रोक देना। यदि विपक्ष यह चाहता है कि इन कामों में उसकी भी भागीदारी हो तो फिर उसे ऐसे हालात पैदा करने होंगे कि संसद में व्यापक विचार-विमर्श हो सके। क्या यह अजीब नहीं कि वह ऐसे हालात भी नहीं पैदा होने दे रहा है और विधेयकों के पारित होने पर आपत्ति भी जता रहा है?


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