Opinion: अयोध्या में बदलाव तो हुए हैं, लेकिन सड़कों-बाजारों में बहुत सुधार होना है

इसके पहले सत्ता तक पहुंचे हुक्मरानों ने भले ही अयोध्या का साथ छोड़ दिया हो, लेकिन

Update: 2021-12-16 16:20 GMT
आस्था, अध्यात्म और सियासत के बीच किंकर्तव्यविमूढ़ सी खड़ी अयोध्या सबको याद है…! हम जिसे इतिहास कहते हैं उस हर एक घटना को अयोध्या ने जिया है. राज्य से साम्राज्य तक की यात्रा तय कर राम-राज्य देखने वाली अयोध्या ने विध्वंस काल भी देखा…
गोस्वामी तुलसीदास ने श्री रामचरितमानस में लिखा है "दैहिक, दैविक, भौतिक तापा राम राज नहीं काहुहि व्यापा"…. वही अयोध्या आज कितना कुछ देखने और जूझने के बाद अपने खोये हुए वैभव को ढूंढ़ रही है…
'जन्मभूमि मम पुरी सुहावनी, उत्तर दिसी बह सरजू पावनी'
– श्री रामचरितमानस
जिस अयोध्या को कभी श्रीराम ने वैकुंठ से भी प्रिय बताया था, उसने विकास की वैसी प्रतीक्षा की है, जैसी उसने त्रेता में वनवास पर गए अपने राम के लिए की थी…
कई सरकारें आईं और गईं, लेकिन वोटों का गणित न बिगड़े – इसकी चिंता में राज्य की राजधानी से केवल दो घंटे दूर अयोध्या की सुध किसी ने नहीं ली. लेकिन जब 21वीं सदी के भारत ने 'जय श्रीराम' का उद्घोष करने वालों को सत्ता के सोपान पर चढ़ाया, तो अयोध्या धर्मनिरपेक्ष दलों के लिए भी 'धर्म' बन गई.
इसके पहले सत्ता तक पहुंचे हुक्मरानों ने भले ही अयोध्या का साथ छोड़ दिया हो, लेकिन जीर्ण मंदिर, संकरी गलियों ने अब भी अयोध्या का साथ नहीं छोड़ा है. हालांकि अयोध्या की तंग गलियों में अब नेता, मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों, अधिकारियों के काफिले अक्सर पहुंचने लगे हैं, लेकिन राजनीति का केंद्र बनने के बाद लाल बत्तियों की चकाचौंध ने कई भगवाधारियों को भी राजनैतिक रंग में रंगने लगी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर देश की बीजेपी सरकार के 8 मुख्यमंत्रियों और 3 उप मुख्यमंत्रियों के अलावा पार्टी प्रमुख जेपी नड्डा भी भी अयोध्या पहुंचे और पूजन अर्चन किया. इतने सारे राज्यों के सीएम की के पूजा-अर्चना से धर्म धुरंधर और महंत पुजारी निश्चित तौर पर बहुत ही खुश हैं.
सरयू के साथ ही अवध में गंगा-जमुनी तहजीब की धारा भी बहती है. मंदिर-मस्जिद के सदियों तक चले झगड़े के बाद अब बाबरी मस्जिद के पक्षकार रहे लोग भी चाहते हैं कि भव्य राम मंदिर जल्द बनकर तैयार हो, जिससे अयोध्या एक महत्वपूर्ण टूरिस्ट डेस्टिनेशन बन सके. लगभग 5 वर्षों के अंतराल के बाद अयोध्या धाम पहुंचे हमारी टीम ने क्या देखा इसका ब्योरा आपके सामने है.
सत्ता भले बदल गई हो, लेकिन जैसे किसी पुराने शहर को सड़क के किनारे गुमटी, दुकानों, ठेलों के साथ चल रही संकरी सड़क पर छूटे जानवरों के बीच, गाड़ियों की भीड़, हॉर्न, बहस और गाली के साथ रहने की आदत होती है, वैसे ही अयोध्या भी अपनी इस आदत से आज भी वफादारी कर रही है. हनुमानगढ़ी की वही सीढ़ियां जो सालों से एक सी हैं, जिसे "दिव्य अयोध्या" का नारा देने वाले भी अक्सर चढ़ते नज़र आते हैं, उनपर भीड़ के बीच चढ़ते हुए कई ऐसे चेहरे दिखते हैं, जो अपनी मन्नत की पूर्ति के लिए हर सीढ़ी की धूल सिर पर लगाते हैं, तो कोई चूल्हा-चौका, खर्चा-पानी की चिंता के बीच हाजिरी लगाने हनुमान जी के दरबार में जा रहा होता है.
पांच साल पहले हनुमानगढ़ी मंदिर का जो स्वरूप देखा था, ठीक वही इस बार भी दिखायी दिया. फर्क यह था कि हनुमानगढ़ी के गद्दीधारी महंत मुखर, प्रखर नजर आए और कूटनीति के साथ ही राजनीति भी अब मंदिर प्रांगण में प्रवेश कर चुकी है.
"राम दुआरे तुम रखवारे" बजरंगबली से आज्ञा लेकर जब आप राम जन्मभूमि की ओर रुख करते हैं तो भी कोई बड़ा अंतर देखने को नहीं मिलेगा. पहले के जैसे आधे लटके टूटे मकान, रोली से लेकर राम दरबार, पूजा का सामान, चूड़ी की दुकानों के साथ ही पेड़े और लड्डू की दुकानें नजर आती हैं. सुरक्षा के कई घेरों से होते हुए जब आप राम जन्मभूमि की ड्योढ़ी लांघते हैं, तो नजारा कुछ बदला सा नजर आता है. पहले जैसे जेलनुमा बने खांचों की एक लेन से दूसरी और दूसरी से तीसरी, चौथी, पांचवीं न जाने कितने सुरक्षा गेटों और कतारों से होते हुए आप रामलला के पास पहुंचते थे, जहां पहुंचने के पहले ही पुजारी – चलिए माता जी, चलिए बहिन जी, चलिए भाई साब के बीच धोती और बेरंग साड़ी पहनने वालों को 'चला हो' कहकर खदेड़ने में लगे रहते थे, अब वे शांत रूप में बैठकर प्रसाद वितरण करते हैं और केवल "जिनके दर्शन हो गए वे आगे चलें" कहते हैं.
पहले जहां 20-40 मिनट की 'कतार यात्रा' के बाद दर्शनार्थी रामलला के सामने पहुंचते तो भगवान के विग्रह कहां रखे हैं, यह समझने से पहले ही कतार आगे बढ़ चुकी होता थी. खांचा तो इस बार भी था लेकिन खांचे में घुसते ही दाहिने तरफ राम मंदिर की शोभा बनने की आशा में कई पाषाण खुदपर छेनी हथौड़ी की मार सहकर तराशे जाते नजर आए. रामलला के सामने पहुंचने पर भी दृश्य कुछ अलग दिखता है. कभी झीने, झंझरी चादर जिसकी वॉटरप्रूफिंग के लिए प्लास्टिक वाले बोरे भी लगे थे, उसमें विराजमान सृष्टि के पालनकर्ता अब एक ऊंचे आसन पर रंग-बिरंगे लहलहाते वस्त्रों के बीच विराजमान हैं.
युद्ध स्तर पर चल रहे काम के बीच मंदिर की नींव भरी जा चुकी है और पत्थर भी तैयार किए जा रहे हैं. अनुमान है कि परिकल्पित भव्य राम मंदिर अपने पूर्व काल के स्थान पर 2023 तक बनकर तैयार हो जाएगा. मंदिर में प्रवेश के समय जितनी पैनी नजर से सुरक्षाकर्मी दर्शनार्थियों की जांच करते हैं.
कई जगहों पर कूड़े-कचरे के बोझ तले दबी सरयू को अब कई नए घाट मिल गए हैं. पहले जहां प्रभु की लीला समापन की स्थली रहा गुप्तार घाट भी 'गुप्त' था वहां अब नया घाट बन गया है. लोगों के स्नान और सौंदर्यीकरण के लिए बनाई गई राम की पैड़ी नगर का प्रमुख पिकनिक स्पॉट है, जहां पर कहीं चटाई बिछाकर धूप सेंकने वाले नजर आते हैं, तो कहीं कड़ाही में पूड़ी भी तली जाती है.
जल्द ही अयोध्या में मंदिर के तर्ज पर मॉडल स्टेशन भी तैयार हो जाएगा, जिसका बुनियादी काम पूरा किया जा चुका है. मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम इंटरनैशनल एयरपोर्ट बनाने के लिए भी राज्य सरकार ने 351 एकड़ ज़मीन का अधिग्रहण किया है, जिसके निर्माण के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जल्द ही (दिसंबर के अंतिम सप्ताह या जनवरी के पहले सप्ताह में) आधारशिला रखने वाले हैं.
हालांकि अब भी अपने पुराने स्वरूप में मौजूद हनुमानगढ़ी मंदिर के विकास के लिए भी संत समाज का स्वर बुलंद होने लगा है. संत समाज की मांग है कि काशी कॉरिडोर और राम जन्मभूमि के ही तर्ज पर हनुमानगढ़ी का भी विकास हो. हनुमानगढ़ी से राम जन्मभूमि मंदिर तक के रास्ते के चौड़ीकरण की परियोजना राज्य सरकार के पसीने छुड़ा रही है. संतों के निवास, पुराने मंदिर, दुकानें, मकान तोड़कर रास्ते को चौड़ा करने के लिए राज्य सरकार जमीन अधिग्रहण शुरू कर चुकी है.
बीजेपी ने पहले ही साफ कर दिया है कि 2022 के चुनाव के लिए अयोध्या एक अहम मुद्दा होगा और इसीलिए अयोध्या के विकास के लिए पूरी ताकत झोंक दी है. लेकिन इतिहास के कई दौर अपने भीतर समाहित किए अयोध्या अब भी कई कालों की छाप लिए खुद में खड़ी है.


(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए News18Hindi किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)
 
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