खुला खेल फर्रुखाबादी

कहावत खुला खेल फर्रुखाबादी का स्रोत क्या है, यह नहीं मालूम।

Update: 2021-07-26 11:00 GMT

कहावत खुला खेल फर्रुखाबादी का स्रोत क्या है, यह नहीं मालूम। लेकिन जब कोई तमाम शर्म हया को छोड़ कर मनमानी करने लगता है, तो अक्सर लोग इसका इस्तेमाल करते हैँ। दो रोज पहले जब खबर आई कि अखबार दैनिक भास्कर और उत्तर प्रदेश के टीवी चैनल भारत समाचार पर आय कर विभाग ने छापा मारा है, तो ये कहावत सहज याद आई। दैनिक भास्कर की पत्रकारिता शैली से अनेक लोगों को शिकायत है। इसके लिए उनके पास अपनी वजहें हैँ। लेकिन ताजा मामले में इसमें कोई संदेह नहीं है कि कई राज्यों में उसके दफ्तरों पर छापा इसलिए पड़ा, क्योंकि कोरोना महामारी की दूसरी लहर के दौरान उसने साहस का परिचय देते हुए मिसाल कायम करने वाली पत्रकारिता की।

यही भूमिका यूपी में भारत समाचार की रही। दोनों समाचार माध्यमों ने सरकारी बदइंजामी से लोगों के लिए पैदा हुई मुसीबत का कच्चा चिट्ठा खोला। खास ही उनके माध्यम से देश और दुनिया को पता चला कि असल में मौतों की संख्या और आपदा का पैमाना क्या है। तो अनुमान तो तभी लगाए जाने लगे थे कि इसका खामियाजा उनको भुगतना पड़ेगा। अब चूंकि आज की सरकार ऐसे अनुमानों को सच साबित करने में ज्यादा देर नहीं लगाती, इसीलिए उपरोक्त कहावत उन संस्थानों पर पड़े छापों के साथ याद याई। गौरतलब है कि दैनिक भास्कर डीबी कॉर्प समूह का हिस्सा है, जिसे भारत के सबसे बड़े अखबार समूह के रूप में जाना जाता है। इसके चार भाषाओं में 66 संस्करण निकलते हैं।
अखबार 12 राज्यों में चार करोड़ पाठकों तक पहुंचता है। वैसे इनमें ज्यादातर पाठक हिंदी और गुजराती के ही हैं। ये बात जानकार पहले से मानते रहे हैं कि आज के सत्ता प्रतिष्ठान को अंग्रेजी में लिखी और कही जाने वाली बातों से परेशानी नहीं होती। उनके माध्यम से विदेशों में सरकार की छवि खराब होती हो, लेकिन सरकार उसकी परवाह नहीं करती। बाकी देश में अपने समर्थक तबकों के बीच अंग्रेजी बुद्धिजीवियों और पत्रकारों को उसने लुटियन्स या खान मार्केट गैंग के रूप में बदनाम कर रखा है। लेकिन जब संवाद देसी भाषा में होता है, तो वह सीधे वहां तक पहुंचता है, जो इस सरकार का वोट आधार है। इसीलिए दैनिक भास्कर और भारत समाचार में जो लिखा या दिखाया गया, उसने सरकार को परेशान किया है। नतीजा सामने है।


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