ऑफ दि ट्रैकः 'लॉन्ग कोविड' की अनदेखी

कोरोना वायरस की पहली लहर जब देश में आई, तब कुछ साइंस मैगजीन ने साइंटिस्टों और डॉक्टरों के हवाले से ‘लॉन्ग कोविड’ के खतरों को लेकर सावधान किया था।

Update: 2021-07-03 05:37 GMT

कोरोना वायरस की पहली लहर जब देश में आई, तब कुछ साइंस मैगजीन ने साइंटिस्टों और डॉक्टरों के हवाले से 'लॉन्ग कोविड' के खतरों को लेकर सावधान किया था। 'लॉन्ग कोविड' का मतलब यह है कि शरीर में संक्रमण खत्म होने के कुछ महीनों बाद तक थकान और नींद न आने जैसे लक्षणों का बने रहना, लेकिन तब बहुत कम लोगों ने इन खबरों पर ध्यान दिया। इस साल वायरस की दूसरी लहर आई। इस दौरान बीमार पड़े कई लोगों में संक्रमण दो-तीन महीने पहले खत्म हो चुका है, लेकिन वे थकान और नींद न आने जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं।

एक अनुमान के मुताबिक, कोविड वायरस से संक्रमित हर 10 में से एक व्यक्ति में ऐसे लक्षण दिख रहे हैं। कुछ दूसरे वायरसों से संक्रमित होने पर भी ऐसी समस्याएं सामने आती रही हैं। सार्स भी कोरोना वायरस है। इसके संक्रमण से बचे 30 फीसदी लोगों में चार साल बाद भी भारी थकान की समस्या का पता चला था। साइंटिस्ट और डॉक्टर कह रहे हैं कि कोविड-19 वायरस से बड़े पैमाने पर लोग इस तरह के मर्ज का शिकार होने जा रहे हैं।
अफसोस की बात है कि अभी तक सरकारों और चिकित्सा तंत्र का इस ओर बहुत ध्यान नहीं गया है। ना ही इसे लेकर सरकार की ओर से जागरूकता कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। लोगों को इस बारे में बताया जाना चाहिए। इससे उन्हें पता चलेगा कि ऐसे लक्षणों का शिकार सिर्फ वही नहीं हैं। साथ ही मेडिकल जगत ने जिस तरह की मुस्तैदी कोरोना की वैक्सीन बनाने में दिखाई, वैसी ही तत्परता उसे 'लॉन्ग कोविड' के इलाज में भी दिखानी होगी।


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