अब आगे क्या

सरकार ने तीनों विवादास्पद कृषि कानूनों को वापस लेने का एलान भले कर दिया हो, लेकिन किसान आंदोलन खत्म होने के फिलहाल कोई आसार नजर नहीं आ रहे।

Update: 2021-11-22 01:02 GMT

सरकार ने तीनों विवादास्पद कृषि कानूनों को वापस लेने का एलान भले कर दिया हो, लेकिन किसान आंदोलन खत्म होने के फिलहाल कोई आसार नजर नहीं आ रहे। किसान संगठनों का कहना है कि जब तक संसद में औपचारिक रूप से ये कानून रद्द नहीं कर दिए जाते, तब तक आंदोलन खत्म नहीं होगा। लेकिन इससे भी बड़ी मांग अब न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी को कानूनी जामा पहनाने की है।

इस पर किसान संगठन टस से मस नहीं होने वाले। सरकार ने जिस तरह से तीनों कृषि कानून वापस लेने का फैसला किया, उतनी स्पष्टता के साथ एमएसपी के मुद्दे पर कानून बनाने को लेकर कोई वादा नहीं किया, बल्कि एमएसपी को प्रभावी बनाने के लिए सरकार ने एक बड़ी समिति बनाने का वादा किया है, जिसमें केंद्र और राज्यों के प्रतिनिधियों के अलावा किसान संगठनों के नुमांइदे और कृषि क्षेत्र से जुड़े विशेषज्ञों को रखा जाएगा। इससे साफ है कि एमएसपी का मुद्दा कहीं ज्यादा पेचीदा है। वरना सरकार एमएसपी पर कानून बनाने का भी एलान करने से क्यों चूकती? इसलिए अभी यह देखना होगा कि सरकार अब क्या कदम उठाती है और किसान संगठन क्या रणनीति अपनाते हैं।
हैरानी की बात यह है कि एमएसपी को लेकर आज तक कोई ऐसा फैसला नहीं हो पाया है जिससे किसान संतुष्ट नजर आए हों। एमएसपी के बारे में अब तक जो दलीलें दी जाती रही हैं उनमें एक यह कि आज देश में खाद्यान्न संकट नहीं है और अगर एमएसपी पर कानून बना दिया गया तो सरकार के लिए उपज खरीदना और उसका भंडारण संकट बन जाएगा। वैसे भी भंडारण व्यवस्था के अभाव में भारी मात्रा में अनाज सड़ने की समस्या बनी हुई है। कहा यह भी जाता रहा है कि अगर एमएसपी कानून बन गया तो बड़े किसान ही छोटे किसानों से उपज लेकर सरकार को बेच देंगे और इससे छोटे किसान और संकट में पड़ जाएंगे। देखा जाए तो मुश्किल में छोटे किसान ही हैं।
नए कृषि कानूनों में छोटे किसानों को लेकर जो फायदे गिनाए जाते रहे हैं, वे भी किसानों को कम संदेहास्पद नहीं लग रहे। सवाल है ऐसे में हो क्या? जब किसानों को सरकार पर भरोसा नहीं हो और सरकार एमएसपी पर कानून बना पाने में संकट महसूस कर रही हो तो समाधान क्या निकले?
किसानों में भी अस्सी फीसद से ज्यादा आबादी छोटे और सीमांत किसानों की है। बड़े किसान छह-सात फीसद से ज्यादा नहीं हैं। मध्यम दर्जे के किसानों की संख्या भी दस से पंद्रह फीसद के बीच में ही मानी जानी चाहिए। ऐसे में देश में अब जो भी कृषि कानून बनें, उनमें जोर छोटे किसानों पर होना चाहिए। अगर कानूनों का लाभ अमीर किसानों को ही मिलता रहेगा तो छोटे किसान क्या करेंगे?
सरकार दावा करती रही कि नए कानून छोटे किसानों को बिचौलिया व्यवस्था से मुक्ति दिलाने वाले साबित होंगे। पर किसानों का डर है कि बिचौलिया व्यवस्था से निकल कर वे उद्योगपतियों के जाल में फंस जाएंगे। सरकार को चाहिए कि कृषि और किसानों की समस्या को लेकर अब जो पहल हो, उसमें पारदर्शिता हो। जिस तरह संसद में बिना बहस के और अध्यादेश लाकर कृषि कानूनों को थोपने की कोशिश की गई, उसी का नतीजा रहा कि किसानों का सरकार पर से भरोसा खत्म हुआ है। इसे अब लौटाने की जरूरत है न कि किसानों की आड़ में राजनीतिक लाभ खोजने की।

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