अब 'जैसे को तैसा' की धारणा चला रही है दुनिया, यूके-भारत के बीच यात्रा प्रतिबंधों का विवाद 'रेसिप्रोसिटी' का बड़ा उदाहरण

वह स्वर्णिम नियम, जो सबसे आधारभूत नैतिक अवधारणा है, यहूदीवाद से लेकर कन्यफ्यूशीवाद के धार्मिक तथा धर्मनिरपेक्ष तंत्रों में एक समान है

Update: 2021-10-20 18:14 GMT

बिबेक देबराॅय और आदित्य सिन्हा  वह स्वर्णिम नियम, जो सबसे आधारभूत नैतिक अवधारणा है, यहूदीवाद से लेकर कन्यफ्यूशीवाद के धार्मिक तथा धर्मनिरपेक्ष तंत्रों में एक समान है। यह है रेसिप्रोसिटी यानी अन्योन्यता या परस्परता का नियम। इसका अर्थ है, 'वैसा करना, जैसा आप आपके साथ किया गया है।' यह सामाजिक मनोविज्ञान से लेकर अंतरराष्ट्रीय व्यापार तक में जरूरी धारणा है।

परस्परता वह विचार है, जहां एक व्यक्ति, दूसरे को समान प्रतिक्रिया देता है। आमतौर पर सहयोग के लिए समझौते, किसी समझौते या समझ के उल्लंघन के खिलाफ आपसी प्रतिक्रिया के खतरे के साथ लागू होते हैं। नकारात्मक परस्परता सामाजिक नियमों के उल्लंघन को रोकती है।
इस लेख में हम चर्चा करेंगे कि रेसिप्रोसिटी कूटनीति और अंतरराष्ट्रीय संबंधों में क्या भूमिका निभाती है। परमाणु निवारण से वीज़ा नियमों तक, परस्परता दो संप्रभु राष्ट्रों के बीच संबंधों को दिशा देती है। अमेरिका का 1778 में फ्रांस से वाणिज्यिक समझौता पहला परस्पर व्यापार रियायतों वाला समझौता था। ब्रिटेन का 1823 में रेसिप्रोसिटी ऑफ ड्यूटीज एक्ट व्यापारिक उदारीकरण में दुनियाभर में मील का पत्थर साबित हुआ। इसने समान विचार वाले देशों के बीच आपसी सहमति से इम्पोर्ट ड्यूटी कम करने में मदद की।
ऐसे उदाहरण हैं, जहां देशों ने परस्परता के इस्तेमाल से दूसरों को लाभ दिए, इस उम्मीद में ही दूसरा देश भी यही करेगा। आज, हालांकि यह परस्परता आमतौर पर तब दिखती है, जब एक संप्रभु राष्ट्र, दूसरे राष्ट्र को ऐसे कार्य करने से रोकना चाहता है जो उसके लिए नुकसानदेह हों।
अंतरराष्ट्रीय व्यापार में पहुंच सीमित करना या दूसरे देशों पर प्रतिबंध लगाकर जैसे को तैसा (शठे शाठ्‍यम समाचरेत्) वाला असयोगात्मक व्यवहार अब दंड देने के साधन बन गए हैं। इसलिए रेसिप्रोसिटी के विद्वान अब इसे ऐसे परिभाषित करते हैं, 'लगभग समान मूल्यों का आदान-प्रदान, जिसमें प्रत्येक पक्ष दूसरे पक्ष के पिछले कार्यों के आधार पर अच्छे के बदले अच्छा और बुरे के बदले बुरा करता है।'
अंतरराष्ट्रीय व्यापार में विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के अंदर परस्परता बनाई गई है क्योंकि यह 1947 से जनरल एग्रीमेंट ऑन टैरिफ एंड ट्रेड (जीएटीटी) का हिस्सा है। जीएटीटी/डब्ल्यूटीओ में रेसिप्रोसिटी का सिद्धांत है, 'व्यापार नीति में इस तरह परस्पर बदलाव करना कि इससे प्रत्येक देश के आयात के वॉल्यूम में उतना ही बदलाव आए, जितना कि उसके निर्यात में।'
अंतरराष्ट्रीय संबंधों में परस्परता को हाल ही में भारतीय नागरिकों के लिए यूके में बनाए गए क्वारेंटाइन नियमों से समझा जा सकता है। यह तब शुरू हुआ जब ब्रिटेन ने भारत से आने वाले यात्रियों को 10 दिन का क्वारेंटाइन अनिवार्य कर दिया। नियम उनपर भी लागू था, जिन्हें वैक्सीन के दोनों डोज लग गए थे।
भारत में कोविशील्ड लगवाने वालों को यूके बिना वैक्सीन वाला मान रहा था। फिर, दोनों डोज लगवाने वाले भारतीयों को यूके में क्वारेंटाइन किया जा रहा था, जबकि इसी तरह टीका लगवाने वाले अन्य देशों से आ रहे यात्रियों पर यह प्रतिबंध नहीं था। भारत सरकार के निवेदन पर भी यूके सरकार ने क्वारेंटाइन नियमों में छूट नहीं दी।
यह अतार्किक था कि जो वैक्सीन यूके खुद के नागरिकों को लगा रहा था, वही वैक्सीन लगवाने वाले भारतीय नागरिकों पर वह रोक लगा रहा था। फिर उसने भारतीय वैक्सीन सर्टिफिकेट पर सवाल उठाए। हालांकि, भारतीय सर्टिफिकेट यूके और अमेरिका के सर्टिफिकेट से बेहतर था। जैसे अमेरिका में अब भी हाथ से लिखे हुए वैक्सीनेशन कार्ड मिल रहे हैं। यूके में सर्टिफिकेट पाने में पांच दिन तक लगते हैं, जबकि भारत में तुरंत डाउनलोड हो जाता है।
फिर भारत ने यहां आने वाले ब्रिटिश नागरिकों पर भी यात्रा प्रतिबंध लागू कर दिए। भारत आने वाले यूके के नागरिकों के लिए निगेटिव आरटी-पीसीआर रिपोर्ट और 10 दिन क्वारेंटाइन अनिवार्य कर दिया। इन समान प्रतिबंधों के लागू होने के 10 दिन के अंदर ही ब्रिटेन ने कोविशील्ड के दोनों डोज लगवा चुके भारतीयों के लिए अनिवार्य क्वारेंटाइन अवधि खत्म कर दी। कोवैक्सीन लगवाने वालों के लिए अभी भी क्वारेंटाइन अनिवार्य है। ऐसे उदाहऱण भी हैं, जहां एक देश दूसरे से उसे बाजार उपलब्ध कराने की उम्मीद करता है, जबकि खुद ऐसा करना नहीं चाहता।
भारत के कृषि निर्यात का उदाहरण देखें। अमेरिका और अन्य विकसित देशों ने भारत के न्यूनतम समर्थन मूल्य के खिलाफ डब्ल्यूटीओ में कई शिकायतें की हैं। हालांकि, अमेरिका और ईयू खुद किसानों को सब्सिडी देते हैं और दोनों खाद्य गुणवत्ता, सुरक्षा व स्वास्थ्य संबंधी कई मानक लागू करते हैं, ताकि भारतीय कृषि निर्यातक उनके बाजार में न आएं। इस प्रकार, भारत आज जो पारस्परिक बाधाएं लाएगा, वे भविष्य में उदारीकृत बाजार में पहुंच का मार्ग प्रशस्त कर सकती हैं।


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