अब दूसरे डोज में तेजी, बूस्टर डोज व बच्चों के टीकों पर जोर; 100 करोड़ टीके लगना हर मायने में अभूतपूर्व

देश में कोरोना के 100 करोड़ टीके लगना अभूतपूर्व है। शुरुआत में जरूर बाधाएं आईं

Update: 2021-10-23 18:22 GMT

शमिका रवि देश में कोरोना के 100 करोड़ टीके लगना अभूतपूर्व है। शुरुआत में जरूर बाधाएं आईं, लेकिन उसके बाद टीकाकरण जिस तरह चला, वह असाधारण है। शुरुआत में कच्चे माल की आपूर्ति और सप्लाई चेन संबंधी समस्याएं आईं थीं। प्रबंधन में भी परेशानी हुई क्योंकि किसी को अंदाजा नहीं था कि दूसरी लहर इतनी भयानक आएगी। सीमित स्वास्थ्य संसाधन होने के बावजूद, देश में ही वैक्सीन का उत्पादन कर, सिर्फ 9 महीने के अंदर, करीब 75% योग्य आबादी को टीके लगाना अपने आप में बहुत बड़ी बात है।

लेकिन अब आगे की बात करते हुए हमें यह समझना होगा कि दूसरा डोज करीब 30% योग्य आबादी को लगा है और उसमें भी बहुत भिन्नताएं हैं। कुछ राज्यों में दूसरे डोज में कमी दिख रही है। हालांकि आंकड़ों में दिखने लगा है कि पहले डोज की गति अब धीमी हो रही है और दूसरे डोज की गति धीरे-धीरे बढ़ रही है, लेकिन इसे और बढ़ाना होगा। दूसरे डोज पर भी पूरा जोर देना जरूरी है।
दुनिया में देखें तो यूके में फिर से संक्रमण बढ़ रहा है और रोज 45,000 तक मामले आ रहे हैं। हालांकि संक्रमण उतना घातक नहीं है। वहीं वे नए वैरिएंट पर भी रिसर्च कर रहे हैं और जानने की कोशिश कर रहे हैं कि 6-7 महीने में वैक्सीन से जो एंटीबॉडी बनी हैं, क्या वे घटने लगी हैं। यूके सबसे तेजी से टीकाकरण वाले देशों में से एक था। हो सकता है उनकी इम्यूनिटी घट रही हो। सभी ट्रायल में भी ये सामने आया है कि समय के साथ इम्यूनिटी घटती है। इसलिए अब बूस्टर यानी तीसरे डोज की बातें होने लगी हैं। अमेरिका और कनाडा में यह शुरू भी हो गया है।
हमारे यहां समस्या यह है कि हमें अभी दूसरे डोज में तेजी लानी है। वहीं बूस्टर डोज की तैयारी भी शुरू करनी होगी। इसके लिए हमें सर्वे करके यह पता करना चाहिए कि जिन्हें शुरुआत में यानी मार्च से पहले टीके लगे थे, उनमें कितनी एंटीबॉडीज हैं। अगर ये घटने लगी हों तो हमें तेजी से बूस्टर डोज देने पड़ेंगे। इन्हें कब और कैसे शुरू करेंगे, यह आंकड़ों के विश्लेषण से ही पता चल पाएगा।
इसके अलावा बच्चों पर भी ध्यान देने की जरूरत है। हम युवा देश हैं और बच्चों की संख्या बहुत है। बच्चों के लिए टीके को अनुमति तो मिल गई है, लेकिन इसे लेकर अभी स्पष्ट नीति नहीं आई है। यानी टीके कब से लगेंगे, कहां लगेंगे, स्कूलों में लगेंगे या अस्पतालों में लगेंगे? जैसे पहले पोलियो जैसे कई बूस्टर डोज स्कूल में लग जाते थे। इन सब पर अब स्पष्टता जरूरी है।
कोशिश होनी चाहिए कि साल के अंत से पहले बच्चों की नीति में स्पष्टता आ जाए और काम शुरू हो जाए क्योंकि जब तक यह सब पूरा होगा, मार्च आ जाएगा। यानी बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हुए दो साल पूरे हो जाएंगे। देश में 10-15% बच्चों को ही ऑनलाइन शिक्षा उपलब्ध है। अभी स्कूल-कॉलेज आंशिक रूप से ही खुले हैं। इन्हें पूरी तरह खोलना जरूरी है, क्योंकि बच्चे लर्निंग का बहुत नुकसान झेल चुके हैं।
जहां तक सवाल आर्थिक गतिविधियों का है, तो यह लगातार बढ़ रही हैं। आर्थिक गतिविधि का अंदाजा लोगों के बढ़ते आवागमन से लगा सकते हैं और अब कई राज्यों में यह महामारी से पहले के स्तर से भी ज्यादा पर पहुंच गया है। जैसे उप्र, बिहार, उत्तराखंड और केरल में। जहां-जहां टीकाकरण में तेजी आएगी, वहां आर्थिक गतिविधियों में और तेजी आएगी। टीकाकरण से लोगों में आशावाद व आत्मविश्वास आता है कि आप संक्रमण और खासतौर पर अस्पताल में भर्ती होने से बचे रहेंगे।
यह भी गौरतलब है कि हाल ही में आए आईएमएफ के अनुमानों में भारत की वृद्धि का अनुमान दुनिया में सबसे ज्यादा है। इसके पीछे भी कारण है कि हमारा टीकाकरण अभियान अच्छा है। उम्मीद है, आगे स्थितियां और अच्छी होंगी क्योंकि और नई वैक्सीन भी आ जाएंगी। साथ ही दुनिया के बड़े लोकतंत्रों की तुलना में टीके के प्रति झिझक हमारे यहां अब बड़ी समस्या नहीं है।


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