उपन्यास: Part55- तुलसी का पौधा

Update: 2024-11-05 13:46 GMT
Novel: लगातार एक महीने से मां सर से नए नए चीज मंगाती थी। आदतन सर ने मां से पूछा - " मां ! आज आपको क्या खाने का मन हो रहा है?"
मां ने कहा - " बेटा? आज मेरी आत्मा तृप्त हो गई है । आज मुझे कुछ भी खाने का मन नहीं हो रहा है। "
मां अपने दोनों हाथ उठाकर कहने लगी -"बेटा !जैसे आपने मेरी हर इच्छा पूरी की है, वैसे ही भगवान भी आपकी हर इच्छा पूरी करेगा।"
जो मां से मिलने आते वो कहते कि मिनी मां का ध्यान रखना अब मां अधिक दिनों की मेहमान नहीं है।
मिनी की धड़कन तेज होने लगी। जो मिनी पहले चहक कर घर आती उसे अब स्कूल से घर आने में डर लगने लगता। उसे लगता की पता नहीं मैं मां को देख भी पाऊंगी या नहीं ? उसका दिल स्कूल से घर जाते वक्त तेजी से धड़कता था।
उसने मामा मौसी सभी को वस्तु स्थिति बता दी थी। सभी मां से मिलने आए। ससुराल के भी सभी मां से मिलने आए।
मामा जी मां से मिलने पहली बार आए थे। उन्होंने मां से कहा कि मैं भांजा जी को मनाकर के लाऊंगा। मां ने मामा जी से कहा - "बिल्कुल नहीं। कोई भी जरूरत नहीं उसे मेरे पास लाने की।"
मिनी पहली बार ऐसी बात मां से सुन रही थी।
मां मिनी से कहती थी कि वो अब अधिक दिन की मेहमान नहीं है।
मिनी मां के पास भी रहती तो उसका दिल घबराता था।
वो ईश्वर से यही प्रार्थना करती कि ईश्वर उसे इस कलंक से बचा ले । कही ऐसा न हो की मिनी स्कूल में रहे और मां को कुछ हो जाए। मिनी अब स्कूल में भी रोने लगी। स्टाफ के सभी लोग मां से मिलने आए। प्राचार्य महोदया ने मिनी को धीरज बंधाया।
एक दिन रात में मां की हालत थोड़ी नाजुक लग रही थी।
मिनी ने रोते हुए मां से कहा - "मां !अगर आपको कुछ हो गया तो मैं क्या करूंगी ?"
मां ने कहा - "मिनी ! तुम घबराना मत मेरा अंतिम संस्कार यहीं करना और मेरे बेटे को मत बुलाना, अगर वो आए भी तो उसे मेरे शरीर को छूने भी मत देना।"
मिनी को बड़ी घबराहट होती। मिनी भगवान से इतना ही कहती - "हे ईश्वर ! मेरी मां को मेरे स्कूल की अवधि में कुछ न हो। नहीं तो मैं अपने आप को कभी माफ नहीं कर पाऊंगी।"
रोज मिनी बोझिल मन से स्कूल जाती। ढाई वर्ष से रोज 20 मिनिट के दीर्घ अवकाश में घर आती। आज मिनी को घर जाने का मन ही नहीं हो रहा था। आज पहली बार मिनी का मन इतना बोझिल था, इतना निराश था , इतना दुखी था फिर भी वो घर आई । घर आकर देखा तो मां की सांसे अजीब सी चल रही थी। मिनी ने सर को फोन लगाया। सर ने घर आते ही मां की हालत देखी। मिनी और सर ने रात से खाना नहीं खाया था। सर ने मिनी से कहा मिनी जल्दी से हम दोनों के लिए खाना निकालो। सर की बात मिनी को बड़ी अजीब सी लगी।
मिनी ने रोते हुए खाना निकाला । थोड़ा सा खाना खाकर दोनों मां के पास गए। मां को बिस्तर से नीचे जमीन पर उतारा। मां को गंगा जल पिलाया। जैसे ही मां के मुंह में सर ने बिटिया ने और मिनी ने गंगा जल डाला, मां ने जैसे सुकून से अंतिम सांसे ली और सदा के लिए सभी को छोड़कर चली गई।
हर रोज दामाद को खाना खिलाए बगैर मां कुछ नहीं खाती थी। उस दिन भी वो सर को खाना खिलाने का ही जैसे इंतजार कर रही थी। शाम के 4 बज रहे थे।
मिनी और सर ने सभी को खबर किया। अखबार में भी खबर दी। सभी लोग घर आने लगे।मिनी के ससुराल से दो बड़े जेठ तुरंत ही घर पहुंच गए। मायके से अब तक कोई नहीं आया था।
जैसे ही मामा जी को खबर मिली वे तुरंत भैया के घर चले गए और रात में भैया का फोन आया। कहने लगे- "हम लोग रात में दो बजे आपके घर आयेंगे। हमे रात को ही मां को लेकर आना है।"
मिनी को बात पता चली । मिनी ने कहा- "कल लोग मां के अंतिम दर्शन को आयेंगे तो हम क्या कहेंगे ?"
सर ने भैया से कहा - "हम आपको मना नहीं कर रहे हैं आप सुबह मां को सबके अंतिम दर्शन के बाद ले जाना।"
मगर नहीं भैया और मामा फोन में ही विवाद करने लगे। इधर मिनी मां के पास बैठकर आंसू भी नहीं बहा पा रही थी। रात को ही विवाद खड़ा हो गया। सबसे बड़े जेठ कहते -" दे दो। आप लोगो को जितनी सेवा करनी थी कर लिए। अब रात को देने में क्या आपत्ति है ?"
सर कहते -"रात को 2 बजे कैसे दे दें ? हमने कोई अपराध किया है क्या ? हमें भी मां से उतना ही प्रेम है। हम अपने घर से मां को इज्जत के साथ विदा करेंगे।"
मिनी मां के पास बैठी बड़ी उलझन में। आखिर उसे मां की अंतिम इच्छा भी पूरी करनी थी। समाज के एक प्रमुख व्यक्ति जिसे मिनी बाबूजी कहती थी उन्होंने कहा -" बेटा! तुम अधिक परेशान मत हो। जो भी होगा अच्छा ही होगा।" अब निर्णय मिनी पर आ के रुक गया।
मिनी ने कॉलोनी के एक भैया से कहा -"भैया! मुझे बिल्कुल समझ नही आ रहा कि मैं क्या करूं ?"
भैया ने मिनी को समझाते हुए कहा - "भाभी !आप एक लेखिका भी हैं। आपको कल लोगों को जवाब भी देना पड़ सकता है कि आपने क्या किया और क्यों किया। आप वही निर्णय लीजिए जिससे कल आप अपने आपको अपनी नजरों में गिरा हुआ महसूस ना करें।"
मिनी ने कह दिया -" मैं मां को रात को दो बजे हरगिज नहीं भेजूंगी।"
सर ने भैया को कह दिया कि हम सुबह ही भेज पाएंगे।
भैया ने कह दिया -" अगर मुझे देना है तो रात को 2 बजे दो वरना मैं नहीं आऊंगा।"
सर ने कहा - "ठीक है । हम यहां मां का अंतिम संस्कार भी कर लेंगे। "
दूसरे दिन सुबह सारे लोग आए पर मायके से कोई नहीं आया। मामा ने मौसियों को भी आने से मना कर दिया।
गुरुवार का दिन था। मिनी ने मां को देव तुल्य मानते हुए पीली साड़ी में पारिजात के फूलों के साथ नम आंखों से अंतिम विदाई दी। स्कूल स्टाफ ने मिनी को संभाला। समाज के लोग ओर कॉलोनी के लोग ससुराल के लोग सभी उपस्थित थे। मां के ससुराल से देवर का बेटा आया था। सर और मिनी ने अपने बेटे के हाथों पूरी विधि विधान से अंतिम संस्कार पूर्ण करवाए।
मिनी के मामा, भांजे को लेकर वहीं किसी दूसरे के घर पर बैठे रहें मगर मां के अंतिम दर्शन को नहीं आए । जब अंतिम संस्कार की पूरी प्रक्रिया हो गई तब दोनो मामा भांजे उस स्थान पर गए जहां मां धरती माता की गोद में चिर निद्रा में विलीन हो चुकी थी। इतना ही नहीं उस स्थान का वीडियो बनाकर लेकर गए सबूत के लिए कि वे दोनो, अंतिम विदाई देने यहां आए थे।
मां के अंतिम वाक्य कि मेरे बेटे को बुलाना मत और अगर वो आए भी तो उसे मेरे शरीर को छूने मत देना। मिनी के कानों में गूंज रहे थे। आखिर बेटा मां के शरीर को छू ही नहीं पाया। मां का शरीर धरती मां में विलीन हो चुका था।
मिनी शाम को मां के कमरे में बैठे रो रही थी। आखों से अविरल अश्रु की धारा बह रही थी। शाम को सात बज रहे थे। खिड़की से उसी दिशा को देख रही थी जिधर मां को लेकर गए थे। अचानक मिनी को ऐसा लगा जैसे खिड़की से मां की खूब सारी दुआएं आ रही है। कमरे में हवा का नामों निशान नहीं था फिर भी मां के पार्थिव शरीर के पास रखा हुआ तुलसी का पौधा जो अब तक उसी कमरे में ही रखा था,उसकी पत्तियां अचानक हिलने लगी जैसे मां उनकी पत्तियों के जरिए अपनी खुशी का इजहार कर रही हो। इतने में काम करने वाली छोटी भी कमरे में आई। उसने कहा - " आंटी! "
मिनी ने कहा - "छोटी ! देख तो बिना हवा के तुलसी की पत्तियां कैसे हिल रही है?"
उसे भी यही महसूस हुआ जैसे मां दुआएं दे रही हों ......
मिनी मां को जब भी नहला धुलाकर तैयार करती तो मां खूब आशीर्वाद देते हुए कहती -" मिनी! देखना तेरा नाम कहां से कहां तक जाएगा।"
मिनी कहती - " मां ! अब तक मेरे मायके वाले ही मुझे जान नहीं पाए फिर दुनिया क्या जानेगी।"
मां कहती - " देखना न , जब मैं नहीं रहूंगी तब भी मेरी बातों को याद करना।"
मिनी ने सोचा मेरी मां को मेरा जो गीत बहुत पसंद था क्यों न उसे रिकॉर्डिंग करवा के मां को ही समर्पित करूं।
सर भी इस बात पर राजी हो गए। मिनी ने मां के वार्षिक श्राद्ध पर अपने लेखों की एक पुस्तक भी निकलवाई और उसे भी मां को समर्पित किया।
मिनी ने कभी सोचा नहीं था कि अब मां की बातें, मां का आशीर्वाद फलीभूत होने वाली है।
एक दिन मिनी को उनकी मेहनत और लगन को देखते हुए राज्यपाल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
सर और मिनी साथ साथ पुरस्कार लेने गए। दुनिया के लिए वो मिनी की मेहनत थी पर मिनी और सर के लिए वो माता पिता , सासू मां और ससुर जी का आशीर्वाद था।
लोग सच कहते हैं....
माता पिता कहीं नहीं जाते,
वे हमेशा बच्चों के साथ ही रहते हैं......।



रश्मि रामेश्वर गुप्ता

बिलासपुर छत्तीसगढ़

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