Nirbhaya Case: जब रात भर खुले सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट, LG ऑफिस और एशिया की सबसे बड़ी जेल का फांसी घर

उस रात को गुजरे हुए एक साल कब बीत गया पता भी नहीं चला

Update: 2021-03-20 07:07 GMT

उस रात को गुजरे हुए एक साल कब बीत गया पता भी नहीं चला. जिस रात हिंदुस्तान की सरजमीं पर एक साथ लिखे गए थे, इतिहास के कई अच्छे-बुरे पन्ने. किसी के लिए वो कयामत की रात थी. तो किसी के लिए बेइंतिहाई खुशी की रात. चार घरों में जहां मातमी सन्नाटा पसारने के इंतजाम उस रात पूरे कर लिए गए. वहीं, किसी एक घर में बिना त्योहार के ही दीवाली के जैसे जश्न की तैयारियां चल रही थीं. कानून की किताबों को न्याय के मंदिरों में पूरी रात खोलकर देखा-पढ़ा जाता रहा था, निर्वाध रूप से. एशिया की सबसे चर्चित, मजबूत हिंदुस्तान की राजधानी दिल्ली में मौजूद, तिहाड़ जेल के बाहर आधी रात से शुरू हुआ मीडिया और तमाशबीनों का जमघट, अल-सुबह तक लगा रहा.


आखिर क्या था अब से ठीक एक साल पहले उस रात को ऐसा कुछ अलग या खास. कौन सी थी वो रात जिसमें अलग-अलग जगहों पर, खुशी और मातम एक साथ मनाए जाने की जद्दोजहद से जूझ रहे थे लोग. आखिर क्यों उस रात खुला रहा था भारत का सर्वोच्च न्यायालय, दिल्ली हाईकोर्ट और दिल्ली के उप-राज्यपाल का कार्यालय पूरी रात. दरअसल वो रात थी 19 और 20 मार्च 2020 की. जिसे बीते अब पूरा एक साल होने को जा रहा है. दिन था शुक्रवार. कोहराम का केंद्र था तिहाड़ जेल. जिसके बाहर जुटा हुआ था मीडिया और तमाशबीनों का जमघट. 19-20 मार्च 2020 की उस दरम्यानी रात के बाद आई सुबह दुनिया ने जो कुछ देखा-सुना, वो सब किसी की खुशी, किसी के गम और किसी के लिए डर की दिल दहला देने वाला था.


तिहाड़ जेल में मौजूद जल्लाद और जेलर की भी वो पूरी रात जागते हुए आंखों में ही गुजरी. तिहाड़ जेल के फांसीघर में मौत के तख्तों से ढके दो कुंएं तैयार थे. जेल के भीतर विशेष रूप से बुलाए गए मजिस्ट्रेट, जिलाधिकारी, डॉक्टरों का विशेष दल भी आधी रात से ही जेल के भीतर पहुंच गए. दरअसल 19-20 मार्च 2020 को आधी रात के से ही, यह सब कुछ हो रहा था, निर्भया कांड के मुजरिमों (मुकेश कुमार, पवन कुमार गुप्ता, अक्षय कुमार सिंह, विनय कुमार शर्मा) को उनके द्वारा किए गए गुनाह के अंजाम तक पहुंचाने के लिए. मौत की सजा पाए मुजरिमों के वकील की आखिरी रात तक यही दलील थी कि, उनके चारों मुवक्किल बेकसूर हैं. जबकि निर्भया हत्याकांड में फैसला सुनाने वाली, तमाम अदालतें इसी मत पर अडिग थीं कि हत्यारों को मौत की सजा मिलनी चाहिए.

अदालतों के लिए भी वो रात किसी त्योहार से कम नहीं

इसी जद्दोजहद के करते-धरते कयामत की वो रात भी आ गई, जब निर्भया के मुजरिमों को फांसी के फंदे पर लटकाया जाना था. इसी के चलते बीते साल 19-20 मार्च 2020 को यह सब कसरत की जा रही थी. तमाम कानूनी पायदानों से गुजरने के बाद आए फैसले के मुताबिक, मुजरिमों की सजा का वक्त तय किया गया था 20 मार्च 2020 को तड़के साढ़े पांच बजे. मुजरिमों और उनके परिवारों के लिए वो कयामत की रात थी. जबकि निर्भया के परिवार के लिए वो खुशी की रात थी. हिंदुस्तानी अदालतों के लिए भी वो रात किसी त्योहार से कम नहीं थी. क्योंकि उसके फैसले को अमली जामा पहनाए जाने की घड़ी सिर पर आ चुकी थी. आजाद हिंदुस्तान के इतिहास में पहली बार एक साथ किसी जेल में चार-चार बलात्कारियों को फांसी की सजा दिया जाना, किसी जश्न से कम नहीं था. इसलिए तिहाड़ के बाहर दुनिया भर के मीडिया और तमाशबीनों की भीड़ आधी रात से पहले ही जुटनी शुरू हो गई थी.

तड़के करीब 5 बजे तिहाड़ जेल के फांसी घर में जल्लाद को लेकर उन तमाम अधिकारियों की टीम पहुंच गई, जिसकी मौजूदगी में उस एतिहासिक सजा-ए-मौत को अंजाम पर पहुंचाना था. तड़के ठीक 5 बजकर 20 मिनट पर चारो मुजरिमों को फांसी के तख्तों पर खड़ा करके. इशारा मिलते ही तड़के साढ़े पांच बजे फांसी के फंदों पर उन चारों के बदन झुला दिए गए. खबर जैसे ही तिहाड़ फांसी घर के बाहर आई, तो वहां का आलम देखने के काबिल था. लोग मिठाइयां बांट रहे थे. कानून से हासिल निर्भया को मिले न्याय के समर्थन में नारे लगा रहे थे. कयामत की उस रात के बाद धीरे-धीरे ज्यों-ज्यों भोर का उजाला होना शुरू हुआ, निर्भया के मुजरिमों के शव तिहाड़ जेल के फांसीघर के फंदों से उतार कर, दीन दयाल उपाध्याय अस्पताल (दिल्ली) के मुर्दाघर में पहुंचा दिए गए. जबकि मौजूद मीडिया और तमाशबीनों की भीड़ भी इसी के साथ धीरे-धीरे छंट गई थी.


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