ब्रह्मांड की उत्पत्ति पर ब्लैक होल की नई दृष्टि, जल्‍द सुलझ सकते हैं कई रहस्‍य

भारतीय वेद-पुराणों में ब्रह्मांड के उत्पत्ति की अवधारणा इस चर्चा के साथ शुरू होती है

Update: 2020-10-20 08:06 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। भारतीय वेद-पुराणों में ब्रह्मांड के उत्पत्ति की अवधारणा इस चर्चा के साथ शुरू होती है कि सृष्टि के आरंभ में शून्य के सिवा कुछ नहीं था। शून्य में पूरा ब्रह्मांड समाया हुआ था और उसी से विस्तारित होकर सूरज, चांद, तारे और यह धरती बनी, जिस पर आज जीवन मौजूद है। आधुनिक विज्ञान इस धारणा को महाविस्फोट यानी बिगबैंग कहकर संबोधित करता है। हालांकि बिगबैंग से जुड़े कई रहस्य अभी खुलना बाकी है कि महाविस्फोट के बाद यह ब्रह्मांड लगातार क्यों फैल रहा है। लेकिन बिगबैंग अकेला रहस्य नहीं है, ब्लैक होल और डार्क मैटर जैसी गुत्थियों से भी विज्ञान जगत लगातार जूझ रहा है।

मिला फिजिक्स का नोबेल पुरस्कार : इस कोशिश में हाल के वर्षो में कई उपलब्धियां विज्ञानियों को हासिल हुई हैं और उन्हें इसके लिए सम्मानित भी किया जा रहा है, क्योंकि वे कई रहस्यों को सुलझाने के करीब हैं। इसमें ताजा मामला ब्लैक होल से जुड़ी खोजों के लिए ब्रिटेन के वैज्ञानिक रोजर पेनरोस, जर्मनी के साइंटिस्ट राइनहार्ड गेंजल और अमेरिकी प्रोफेसर आंद्रेया गेज को वर्ष 2020 के लिए भौतिकी का नोबेल पुरस्कार दिया जाएगा। ब्लैक होल को समझ लेने का एक अर्थ यह है कि हमें सृष्टि संरचना के सूत्रों का अंदाजा हो सकेगा और निकट भविष्य में हमें तारों के जन्म-मरण, गुरुत्वाकर्षण और चांद-तारों के बीच संतुलन के कायदों का पता चल सकेगा।

आसान नहीं ब्लैक होल की उपस्थिति को साबित करना : वैसे तो ब्लैक होल की मौजूदगी को साबित करना ही टेढ़ी खीर है, क्योंकि प्रकाश समेत हरेक द्रव्यमान को सोख लेने वाले ब्लैक होल का पता लगाना ठीक वैसा ही है, जैसा घने अंधेरे में काली बिल्ली को देखना। यहां तक कि अल्बर्ट आइंस्टीन जैसे महान विज्ञानी भी इस तथ्य पर यकीन करने को लेकर असमंजस में था कि अंतरिक्ष में ब्लैक होल जैसी कोई चीज हो सकती है। हालांकि इसे लेकर बनी मान्यताएं कहती हैं कि ब्लैक होल बिना लंबाई-चौड़ाई-गहराई वाला एक ऐसा छिद्र है, जिसमें रोशनी समेत सारी चीजें इसके असीम गुरुत्वाकर्षण में बंधकर गिरती जाती है। लेकिन आसपास के तारों को चूसकर गायब कर देने के बाद भी ब्लैक होल रूपी गड्ढा भरता नहीं है, बल्कि इसकी भूख बढ़ती चली जाती है।

ब्रह्मांड में स्थित किसी ब्लैक होल की सच्चाई : खगोल विज्ञानियों का मत है कि इस ब्रह्मांड में एक नहीं, अनगिनत ब्लैक होल हैं और 10 अरब साल बाद हमारा सूरज भी एक ब्लैक होल में बदल सकता है। पर इतनी जानकारियों को हासिल करने के बावजूद ब्लैक होल के स्थान और समय से जुड़ी गुत्थियों पर लंबे अरसे तक कोई ज्यादा रोशनी नहीं पड़ सकी। लेकिन बीते कुछ वर्षो में इसे लेकर कई चीजें बदल गई हैं। जैसे मानव इतिहास में वर्ष 2019 में वह पहला मौका आया, जब वैज्ञानिकों ने ब्रह्मांड में स्थित किसी ब्लैक होल की सच्चाई के करीब की एक तस्वीर बनाकर उसे दुनिया के सामने रखा। हमारी पृथ्वी से 5.4 करोड़ प्रकाशवर्ष दूर इस ब्लैक होल की जानकारी फ्रांस, हवाई, मैक्सिको, चिली, स्पेन और अंटार्कटिका में लगे आठ टेलीस्कोप के वैश्विक नेटवर्क से मिली थी। वर्ष 2012 में शुरू की गई परियोजना ईएचटी यानी इवेंट होराइजन टेलीस्कोप के शोधाíथयों ने एम-87 गैलेक्सी में मौजूद इस ब्लैक होल का पहला डाटा वर्ष 2017 में प्राप्त किया था, जिसके आधार पर दो साल में ब्लैक होल की तस्वीर बनाई जा सकी।

अंतरिक्ष में गुरुत्वीय तरंगों के संकेत : यूं तो ब्लैक होल की तस्वीर हमें मिल चुकी है, लेकिन ये सीधे तौर पर ब्लैक होल की तस्वीर नहीं थी, क्योंकि उसकी फोटो खींचना आज भी पहले की तरह नामुमकिन है और आगे भी इसकी कोई संभावना नहीं बनती। असल में विज्ञानियों ने जो फोटो जारी की, वह ब्लैक होल की छाया की तस्वीर है। इससे भी पहले ब्लैक होल के सिद्धांत की पुष्टि की एक घटना हाल के वर्षो में हुई है। यह घटना थी अंतरिक्ष में गुरुत्वीय तरंगों के संकेतों की पुष्टि होना। वर्ष 2016 में अमेरिका के लुसियाना में स्थित एडवांस्ड लिगो डिटेक्टर ने गहन अंतरिक्ष में मौजूद गुरुत्वीय तरंगों के संकेतों का पता लगाया, तो कहा जाने लगा कि इस खोज से ब्लैक होल समेत समस्त ब्रह्मांड की संरचना का ठोस अंदाजा लगाया जा सकेगा।

उल्लेखनीय है कि गुरुत्वीय तरंगों की एक प्रस्थापना खुद आइंस्टीन ने दी थी। उन्होंने कहा था कि स्पेस और टाइम के रूप में पूरे ब्रह्मांड की संरचना इन्हीं गुरुत्वीय तरंगों में बंधकर हुई है। हालांकि आइंस्टीन अपने मत के पक्ष में ठोस प्रमाण स्वयं नहीं दे पाए थे। इस बारे में यह तथ्य ध्यान में रखने योग्य है कि 1915 में आइंस्टीन ने अपनी थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी (सापेक्षता के सिद्धांत) में गुरुत्वाकर्षण की परिभाषा देते हुए कहा था कि गुरुत्वाकर्षण असल में न तो बल है और ही किसी वस्तु का अपना प्रभाव, बल्कि यह अंतरिक्षीय पिंडों (सूर्य जैसे तारों और ग्रहों-उपग्रहों) द्वारा स्पेस और टाइम में पैदा की गई ढलान का प्रभाव है। अन्य पिंडों के मुकाबले ब्लैक होल यह प्रभाव कई गुना ज्यादा मात्र में पैदा करते हैं, जिससे उनकी उपस्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है।

खास बात यह है कि जो पिंड जितने अधिक द्रव्यमान वाला होगा, वह पिंड उतना ही अधिक ढलान पैदा करेगा। चूंकि ब्लैक होल अपने नजदीकी इलाके में काफी अधिक ढलान पैदा करते हैं, इसलिए काफी बड़े इलाके में दूसरे पिंड उस ढलान में ब्लैक होल की ओर खिंचते हुए लुढ़कने लगते हैं। इससे प्रतीत होता है कि ब्लैक होल किसी पिंड या ग्रहों-तारों को अपने गुरुत्वाकर्षण से अपनी ओर खींच रहा है, जबकि सच्चाई यह है कि दूसरे पिंड उसकी ओर लुढ़क रहे होते हैं। इसके उदाहरण से रूप में हम अपने सौरमंडल को देख सकते हैं।

सूर्य भी होगा ब्लैक होल में तब्दील : एक बड़ा सवाल यह है कि क्या हमारा सूर्य भी एक ब्लैक होल में बदल जाएगा। माना जाता है कि इस ब्रम्हांड की सभी गैलेक्सी के केंद्र में ब्लैक होल ही है। ये असल में वे तारे हैं जो मरने यानी खत्म होने की प्रक्रिया में हैं। हमारा सूर्य भी ऐसा ही एक तारा है और इसके बारे में दावा है कि 10 अरब साल बाद सूर्य भी बूढ़ा होकर ब्लैक होल में तब्दील हो जाएगा। इससे पहले सूर्य अपनी सारी ऊर्जा झोंककर पहले तो व्हाइट ड्वार्फ तारे में तब्दील होगा और उसके बाद ब्लैक होल में बदल जाएगा। तब यह सौरमंडल के सारे ग्रहों को अपनी ओर खींचेगा और उन्हें अपने में समा लेगा।

खगोल विज्ञानी बताते हैं कि हमारे सूर्य और इससे कई गुना द्रव्यमान वाले बड़े तारों का अंत उनमें हुए प्रचंड विस्फोट यानी सुपरनोवा से शुरू होता है। इस विस्फोट से तारों का ढेर सारा पदार्थ ब्रम्हांड में फैल जाता है। इसके बाद तारे के केंद्र में छोटा पिंड बचता है। सुपरनोवा विस्फोट के बाद भी कुछ तारों का सिकुड़ना जारी रहता है। इसी प्रक्रिया में ये व्हाइट ड्वार्फ या न्यूट्रॉन तारे में बदलते हैं और फिर ब्लैक होल बनकर आंखों से ओझल होते हुए अरबों साल तक अंतरिक्ष में रहते हैं। इस दौरान आसपास के ग्रह-नक्षत्रों और रोशनी तक को सोखकर अपनी ताकत यानी गुरुत्वाकर्षण बढ़ाते रहते हैं।

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