पूर्वोत्तर में नई उम्मीद

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की मध्यस्थता के कारण असम और मेघालय के बीच करीब पांच दशक पुराने सीमा विवाद को खत्म करने को लेकर बनी सहमति एक बड़ी कामयाबी है

Update: 2022-03-30 16:56 GMT

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की मध्यस्थता के कारण असम और मेघालय के बीच करीब पांच दशक पुराने सीमा विवाद को खत्म करने को लेकर बनी सहमति एक बड़ी कामयाबी है। यकीनन, इससे भारतीय संघ-राज्य की परिकल्पना और मजबूत हुई है। संघीय ढांचे में दो राज्यों या दो प्रशासनिक इकाइयों के बीच भौगोलिक सीमाओं या संसाधनों के बंटवारे को लेकर मतभेद एक सामान्य बात है। ऐसे किसी विवाद में आदर्श स्थिति तो यही है कि संबंधित सूबों के मुख्यमंत्री या प्रशासक भारतीय संविधान की भावना का आदर करते हुए आपसी समझ-बूझ से इसे दूर कर लें, क्योंकि सभी प्रदेशों में बसने वाले लोग अंतत: अखंड भारत के ही नागरिक हैं और किसी के हितों की अनदेखी उचित नहीं है। पर अमूमन ऐसा होता नहीं है, मुद्दे उलझते जाते हैं और फिर वे केंद्र के पास या अदालत की शरण में पहुंच जाते हैं। कई बार तो ये हिंसक मोड़ भी ले लेते हैं, जैसा कि असम और मेघालय के मामले में पिछली जुलाई में हुआ था। तब दोनों सूबों के सुरक्षाबलों की झड़प में असम पुलिस के कई जवानों की जान चली गई थी और केंद्र को हस्तक्षेप करना पड़ा था।

सन् 1972 में असम से ही काटकर मेघालय का गठन हुआ था और तभी से करीब 500 वर्गमील इलाके पर अधिकार को लेकर दोनों राज्यों में अनबन रही है। ऐसे मेें, प्रधानमंत्री और गृह मंत्री के सक्रिय हस्तक्षेप के बाद अब दोनों पड़ोसी राज्यों ने विवाद के 12 में से छह बड़े बिंदुओं पर समझौता कर लिया है। उम्मीद है, बकाया मुद्दे भी जल्द सुलझा लिए जाएंगे। वैसे भी, दोनों प्रदेशों में एनडीए की सरकारें हैं, और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शुरू से खास तौर पर पूर्वोत्तर के आर्थिक विकास की पैरोकारी करते रहे हैं। उनकी सरकार बखूबी जानती है कि जब तक इन प्रदेशों में स्थायी शांति नहीं होगी, तब तक उनका विकास अवरुद्ध रहेगा। इसीलिए पूर्वोत्तर के प्रदेशों में कई स्तरों पर शांति-वार्ताएं की जाती रही हैं, और इनके नतीजे भी मिले हैं। खुद केंद्रीय गृह मंत्री ने कहा है, पिछले तीन वर्षों के दौरान इन प्रदेशों में 6,900 सशस्त्र विद्रोहियों ने आत्म-समर्पण किया है।
यह दुखद है कि देश के दो सबसे खूबसूरत भौगोलिक इलाके, जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर ज्यादातर अशांति की चपेट में रहे और न तो विदेशी-घरेलू पर्यटकों की मेजबानी के जरिये ये अपना आर्थिक हित साध सके, और न ही देश की औद्योगिक तरक्की का लाभ उठा सके। इन प्रदेशों में न रेलवे का विस्तार हुआ और न ही सड़कों का पर्याप्त विकास हो सका। निस्संदेह, इन प्रदेशों के राजनीतिक नेतृत्व की यह सामूहिक विफलता है, क्योंकि उन्होंने अपने सियासी नफे-नुकसान के कारण क्षेत्रीय आकांक्षाओं की लगातार अनदेखी की। ऐसे में, असम और मेघालय के बीच हुआ ताजा समझौता नई आशा जगाता है कि पूर्वोत्तर में अमन बहाली के काम को अब और गति मिल सकेगी। चूंकि असम के मुख्यमंत्री पिछले कई वर्षों से पूर्वोत्तर में भारतीय जनता पार्टी के बड़े रणनीतिकारों में शामिल रहे हैं, ऐसे में स्थानीय हितधारकों से उनका संपर्क-संवाद स्वाभाविक है। केंद्र सरकार इसका लाभ उठाते हुए यदि वहां व्यापक क्षेत्रीय समझ विकसित कर सकी, तो पूर्वोत्तर के साथ-साथ पूरे भारत को इसका फायदा होगा। देश के कई पड़ोसी प्रदेशों में अलग-अलग राजनीतिक पार्टियों की सरकारें हैं, जिनके बीच दशकों से तरह-तरह के विवाद हैं। उनके लिए भी यह समझौता एक प्रेरक उदाहरण हो सकता है।

क्रेडिट बाय हिन्दुस्तान

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