संघ के नए सरकार्यवाह

वर्षों से हिन्दुत्व को संघ के कट्टरवाद का प्रतीक बताया जाता रहा

Update: 2021-03-23 09:01 GMT

हिन्दुत्व इस राष्ट्र के प्राण हैं, हिन्दुत्व इस राष्ट्र की आत्मा है, हिन्दुत्व एक सम्पूर्ण जीवनवृति है, हिन्दुत्व आध्यात्मिक की चरम उपलब्धि है...वर्षों से हिन्दुत्व को संघ के कट्टरवाद का प्रतीक बताया जाता रहा.वर्षों से हिन्दुत्व को संघ के कट्टरवाद का प्रतीक बताया जाता रहा। संघ पर प्रतिबंध भी लगते रहे लेकिन हटाये भी जाते रहे। संघ अपनी विचारधारा पर अडिग रहा। आजादी के 75वें वर्ष तक आते-आते भारतीयों ने हिन्दुत्व को समझा और उनकी संघ के प्रति जिज्ञासा बढ़ी। अब नए भारत में राष्ट्रवाद की लहर चल रही है। आजादी के 75वें वर्ष में वसुदैव कुटुम्बकम यानि दुनिया एक परिवार है के भारतीय दर्शन को और मजबूत करने की जरूरत है। यह काम राष्ट्रीय स्वयं संघ का रहा है। राष्ट्र प्रेम की अवधारणा भी हिन्दुत्व की ही देन है। जिस हिन्दुत्व को कभी समूची दुनिया में स्वामी विवेकानंद ने स्थापित किया और कभी अपने ही राष्ट्र में पाखंडियों के विरोध में महर्षि दयानंद ने पाखंड खंडिनी पताका लहरा कर हिन्दुत्व का मार्ग प्रशस्त किया। आज आर्याव्रत जाग उठा है और उसने महसूस किया कि हिन्दुत्व ही राष्ट्र की जान है।


आजादी के 75वें वर्ष में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को दत्तात्रेय होसबोले के रूप में नया सरकार्यवाह मिला है। संघ में सबसे बड़ा पद सरसंघ चालक का होता है, यह पद वर्तमान में मोहन भागवत के पास है लेकिन सरसंघ चालक को आरएसएस के सविधान के हिसाब से मार्गदर्शक-पथ प्रदर्शक का दर्जा मिला है। इसलिए वे संघ की रोजमर्रा की गतिविधियों में सक्रिय भूमिका नहीं निभाते। ऐसे में उनके मार्गदर्शन में संघ का पूरा कामकाज सरकार्यवाह (महामंत्री) और उनके साथ नए सहकार्यवाह (संयुक्त महामंत्री) देखते हैं। इस प्रकार दत्तात्रेय होसबोले पर संगठन की भारी जिम्मेदारी आ गई है। वह संघ के पहले सरकार्यवाह हैं जो अंग्रेजी में स्नातकोतर हैं। उनकी मुंहबोली कन्नड़ है लेकिन उन्हें तमिल, मराठी, हिन्दी व संस्कृत सहित अनेक भाषाओं का ज्ञान है। 1975 के जेपी आंदोलन में भी वे सक्रिय थे और उन्होंने 14 महीने मीसा के तहत जेल भी काटी।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भारतीय राष्ट्रवाद की सबसे मुखर और प्रखर आवाज है। देश की सुरक्षा, एकता और अखंडता उसका मूल उद्देश्य है। संघ इस समय ​विश्व का सबसे बड़ा सामाजिक और सांस्कृतिक संगठन है। राष्ट्रीयता एवं हिन्दुत्व के अभियान को देशव्यापी बनाने में डा. केशव बलिराम हेडगेवार, एम.एस. गोलवलकर, वीर सावरकर, डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी और दीनदयाल उपाध्याय, के.सी. सुदर्शन रज्जू भैय्या और अनेक मनीषियों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। एक सामाजिक और सांस्कृतिक संगठन होते हुए संघ ने भारतीय राजनीति की दिशा को राष्ट्रीयता की ओर कैसे परिवर्तन किया इसे समझने की जरूरत है। दत्तात्रेय होसबोले संघ प्रचारक बनने से पहले अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद यानि भाजपा की छात्र इकाई में दो दशक तक संगठन महामंत्री भी रहे। मौजूदा सरकार्यवाह जोशी जी का स्वास्थ्य पिछले दो वर्ष से उनका साथ नहीं दे रहा था इसलिए दत्तात्रेय होसबोले को जिम्मेदारी सौंपी गई। संघ के विमर्श सहसा नहीं होते। वे उनके लक्ष्य एवं उद्देश्य के अनुभव और तात्कालिक जरूरत के हिसाब से होते हैं। उनके ​िवभिन्न सामाजिक समूहों में आधार तल पर कार्यरत कार्यकर्ताओं के फीडबैक की बड़ी भूमिका होती है। दत्तात्रेय होसबोले को संगठन का काफी अनुभव है इसलिए उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती ऐसे विमर्श को रचना है जो अन्तर्विरोधों को सुलझाते चले। सरकार्यवाह ​चुने जाने के बाद दत्तात्रेय होसबोले ने कुछ बिन्दुओं पर विमर्श स्पष्ट कर दिया है। उन्होंने लड़कियों के विवाह और धर्मांतरण के लिए प्रलोभन दिए जाने की कड़ी निन्दा करते हुए इसके विरोध में कानून बनाने वाले राज्यों का समर्थन किया। उन्होंने कहा कि आने वाले दिनों में बौद्धिक अभियान की इस दिशा में काम किया जाएगा जो भारत के विमर्श के बारे में सही जानकारी देने पर लक्षित होगा। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि अदालतें लव जिहाद शब्द का इस्तेमाल करती हैं, हम नहीं करते इसमें धर्म का कोई सवाल ही नहीं उठता।

भारत का अपना विमर्श है, इसकी सभ्यता के अनुभव और इसके विवेक को नए भारत के विकास के लिए अगली पीढ़ी तक पहुंचाना होगा। हिन्दू समाज में छुआछूत और जाति आधारित असमानता के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए। संघ में भी ऐसे हजारों लोग हैं जिन्होंने अन्तर्जातीय विवाह किए हैं। आरक्षण के मुद्दे पर भी उन्होंने अपनी राय व्यक्त करते हुए कहा कि हमारा संविधान कहता है कि समाज में जब तक पिछड़ापन मौजूद है तब तक आरक्षण की जरूरत है और संघ भी इसकी पुष्टि करता है। जहां तक राम मंदिर का सवाल है, राम मंदिर निर्माण पूरे देश की इच्छा है।

दत्तात्रेय होसबोले पूरी तरह काम को समर्पित हैं। उन्होंने कई कार्यकर्ताओं को अच्छा प्रचारक बनाया। उन्होंने हमेशा सोशल इंजीनियरिंग पर ध्यान दिया। उन्होंने हमेशा एबीवीपी और संघ के दूसरे पदों पर रहते हुए नई सोच को प्रदर्शित किया। उनकी पहचान एक भावुक व्यक्ति की है जिनका कोई विरोधी नहीं। आम राजनीतिक दलों के नेता भी उनके गुणों के प्रशंसक हैं। अगर उन्हें लगेगा कि कोई चीज देशहित में नहीं तो विरोध करने से भी नहीं चूकेंगे। संघ के चिन्तन में वनवासी और दलित समूहों के विमर्श आज काफी मजबूत हैं। जरूरत है ​पूरे राष्ट्र को एक सूत्र में पिरोने की। दत्तात्रेय होसबोले ऐसा करने की तमन्ना रखते हैं। उनके नेतृत्व में दक्षिण भारत में संगठन का विस्तार होगा उन्हें संघ को भविष्य में आगे ले जाने की जिम्मेदारी दी गई है, वह इसे बखूबी निभायेंगे।


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