पंजाब में चुनाव की नई तिथि

चुनाव आयोग ने पंजाब में चुनावों की तिथि में परिवर्तन करते हुए स्पष्ट किया है कि ऐसा राज्य के मुख्यमन्त्री श्री चरणजीत सिंह चन्नी व अन्य राजनीतिक दलों की जायज मांग पर किया गया है।

Update: 2022-01-19 02:53 GMT

चुनाव आयोग ने पंजाब में चुनावों की तिथि में परिवर्तन करते हुए स्पष्ट किया है कि ऐसा राज्य के मुख्यमन्त्री श्री चरणजीत सिंह चन्नी व अन्य राजनीतिक दलों की जायज मांग पर किया गया है। विगत 8 जनवरी को पांच राज्यों के चुनावी कार्यक्रम की घोषणा करते हुए आयोग ने 14 फरवरी को पंजाब में मतदान एक ही चरण में कराने की घोषणा की थी जिसे अब बदल कर 20 फरवरी कर दिया गया है। इसकी असली वजह यह है कि 16 फरवरी को सन्त रविदास की जयन्ती का पर्व पंजाब में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है परन्तु इसे मनाने के लिए इस राज्य के 'रविदासी या रैदासी' कहे जाने वाले लोग भारी संख्या में भक्त रविदास के जन्म स्थान वाराणसी जाते हैं जहां उनके पंजाबी अनुगामियों ने ही साठ के दशक के दौरान एक मन्दिर या गुरुद्वारा बनाया था। इस स्थान पर आने के लिए कुछ दिनों पहले से ही तैयारी की जाती है और जन्मदिन समारोह के दो दिन बाद तक लोग वापस पंजाब पहुंचते हैं। पंजाब के जालन्धर के निकट बल्लन गांव में रविदासी पंथ मानने वालों का 'डेरा सच्चखंड बल्लन' स्थित है जिसके अनुगामी पंजाब के अधिसंख्य दलित समाज के हिन्दू व सिख नागरिक हैं। विशेष रूप से राज्य के दोआबा क्षेत्र में इनकी संख्या सर्वाधिक है जिसे 12 लाख के करीब समझा जाता है। वैसे डेरा सच्चखंड के अनुयायियों की कुल संख्या 20 लाख के करीब मानी जाती है जिनमें से 15 लाख केवल पंजाब में ही रहते हैं। पंजाब के कुल दो करोड़ मतदाताओं में यह संख्या कम नहीं आंकी जा सकती। वैसे पंजाब की जनसंख्या में दलितों की संख्या 32 प्रतिशत के लगभग समझी जाती है अतः डेरा सच्चखंड के अनुगामियों की कुल दलितों में की संख्या काफी प्रभावशाली है। अतः पंजाब में 14 फरवरी की तिथि मतदान के लिए घोषित हो जाने के बाद जब मुख्यमन्त्री का ध्यान इस ओर दिलाया गया कि 16 फरवरी को सन्त रविदास की जयन्ती की वजह से लाखों लोग पंजाब में अपने चुनाव क्षेत्रों में होने के बजाय वाराणसी में होंगे तो उन्होंने चुनावों की तारीखों को आगे करने का निवेदन चुनाव आयोग से कर दिया। इसके बाद भाजपा समेत अन्य राजनीतिक दलों ने भी आयोग को पत्र लिख कर ऐसी ही प्रार्थना की जिस पर आयोग ने गंभीरता से विचार करना शुरू किया। आयोग ने पाया कि वर्तमान परिस्थितियों में ऐसा किया जा सकता है क्योंकि आगामी 21 जनवरी को ही उसे चुनावी कार्यक्रम को अधिसूचित करना है। आयोग के सामने यह प्रश्न था कि चुनावों की तारीख में परिवर्तन इस प्रकार हो जिससे पंजाब की नई विधानसभा के गठन के बारे में किसी प्रकार का परिवर्तन न होने पाये। वैसे भी जिस दोआब के इलाके में रविदासियों की सर्वाधिक संख्या रहती है उसमें 23 विधानसभा क्षेत्र पड़ते हैं। यदि इन चुनाव क्षेत्रों में रहने वाले सभी मतदाता अपने संवैधानिक अधिकार वोट डालने का प्रयोग केवल चुनाव तिथि की वजह से कुछ लाख लोग नहीं कर पाते हैं तो चुनाव आयोग की जिम्मेदारी बनती थी कि वह कोई ऐसा वैकल्पिक उपाय ढूंढे जिससे संवैधानिक की परिपालना में कोई अन्तर न पड़े। अतः उसने लाखों रविदासी मतदाताओं के मताधिकार को संरक्षण देते हुए बीच का रास्ता निकाला और तारीख को छह दिन आगे बढ़ा दिया जिससे रविदासी समुदाय के लोग अपने धार्मिक कृत्य भी कर सकें और संवैधानिक हक का इस्तेमाल भी कर सकें। वैसे ऐसा फैसला चुनाव आयोग केवल अपरिहार्य या नाकाबिले अमल हालात के दौरान ही लेता है। पूर्व में 1991 के लोकसभा चुनावों के दौरान इसने मतदान की तिथियों को तीन सप्ताह आगे तब बढ़ाया था जब चुनाव प्रचार के दौरान पूर्व प्रधानमन्त्री श्री राजीव गांधी की तमिलनाडु में हत्या कर दी गई थी। मगर हाल ही में कोरोना संक्रमण के चलते इसने राज्यसभा चुनावों की तिथियों को भी आगे बढ़ा दिया था। मगर ऐसा कभी भी सामान्य परिस्थितियों में नहीं किया जाता है क्योंकि एक बार चुनाव कार्यक्रम घोषित हो जाने के बाद उस पर अमल इसलिए जरूरी हो जाता है क्योंकि सिवाय युद्ध की स्थिति होने या किसी राज्य या देश में कानून व्यवस्था की स्थिति हाथ से बाहर हो जाने के माहौल में ही नई लोकसभा या विधानसभा के गठन की तारीख को बदला जा सकता है क्योंकि इन सदनों का कार्यकाल पांच वर्ष संवैधानिक रूप से मुकम्मल होता है और इनकी यह अवधि पूरी होने से पहले छह महीने के भीतर चुनाव आयोग को मतदान करा कर नये सदनों का गठन करना पड़ता है। हालांकि कानून व्यवस्था नियन्त्रण से बाहर होने के आधार पर पहले भी असम व पंजाब में चुनावों को आगे बढ़ाया जाता रहा है मगर किसी राज्य के मतदाताओं को उनका वोट डालने का हक देने का यह कारण पूरे देश में पहला है जिसकी वजह से चुनाव आयोग ने मतदान की तारीख में परिवर्तन किया है। इससे पता चलता है कि भारत की संवैधानिक लोकतान्त्रिक व्यवस्था कितनी ऊर्जावान व समावेशी है जिसमें एक वोट के अधिकार को सर्वोच्च वरीयता दी गई है। मगर यह नजीर ऐसी नहीं है जिसे बहुत सामान्य तरीके से लिया जाये या बात-बात पर इसका उदाहरण देकर भविष्य में राजनीतिक दल अपना लाभ तलाशने की कोशिश करें क्योंकि रविदासियों की पंजाब में लाखों की संख्या इसकी मूल वजह है।

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