नेपाल : लोकतंत्र की नई करवट
नेपाल में फिर से लोकतंत्र ने नई करवट तो ली है।
नेपाल में फिर से लोकतंत्र ने नई करवट तो ली है। नेपाल की सुप्रीम काेर्ट ने प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के संसद भंग करने के फैसले को असंवैधानिक करार दे दिया है। अदालत ने प्रधानमंत्री ओली को 13 दिन के भीतर प्रतिनिधि सभा का अधिवेशन बुलाने का आदेश दिया है। इस फैसले से केपी शर्मा ओली को बहुत बड़ा झटका लगा है और साथ ही यह फैसला नेपाल के लोकतंत्र के भविष्य की उम्मीद है। नेपाल के मीडिया ने भी इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा है कि यह उन तानाशाहों के लिए संदेश है जो जनमत की उपेक्षा कर मनमानी की मंशा रखते हैं। सुप्रीम कोर्ट का फैसला संविधान की जीत है। जब ओली ने संसद काे भंग करने का फरमान सुनाया था तब से ही संविधान विशेषज्ञ कह रहे थे कि ओली के पास ऐसा करने का कोई अधिकार ही नहीं है। ओली ने संविधान का पालन करने की बजाय अपने प्रभाव का इस्तेमाल किया। अब ओली का प्रधानमंत्री बने रहना मुश्किल है। या तो उन्हें स्वयं कुर्सी छोड़नी होगी या फिर उन्हें बहुमत साबित करना होगा। यह साफ है कि ओली बहुमत खो चुके हैं। सत्ता की चाबी अब नेपाली कांग्रेस के पास है और नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी के नेता पुष्प कमल दहल प्रचंड उसका समर्थन मांग सकते हैं। एक विकल्प यह है कि ओली को बाहर रखकर नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के दोनों धड़े मिलकर सरकार बना सकते हैं।