सहानुभूति की जरूरत है

भारत में निजी क्षेत्र में मेडिकल और इंजीनियरिंग के कॉलेज बड़ी संख्या में हैं

Update: 2022-03-01 05:47 GMT
By NI Editorial
भारत में निजी क्षेत्र में मेडिकल और इंजीनियरिंग के कॉलेज बड़ी संख्या में हैं। लेकिन निजी क्षेत्र के उन कॉलेजों में पढ़ना सबके वश की बात नहीं है। खास कर मेडिकल शिक्षा इतनी महंगी हो गई है कि अब एक सामान्य परिवार के नौजवान के लिए डॉक्टर बनने का सपना देखना दूभर हो गया है। 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ये टिप्पणी समस्याग्रस्त है कि भारतीय छात्र मेडिकल पढ़ने छोटे देशों में जाते हैँ। हालांकि उन्होंने ये बात निजी क्षेत्र के मेडिकल शिक्षा में निवेश की बढ़ाने जरूरत बताते हुए कही, लेकिन इस मुद्दे का मुख्य बिंदु इसमें गायब रहा। भारत में निजी क्षेत्र में मेडिकल और इंजीनियरिंग के कॉलेज बड़ी संख्या में हैं। लेकिन निजी क्षेत्र के उन कॉलेजों में पढ़ना सबके वश की बात नहीं है। खास कर मेडिकल शिक्षा इतनी महंगी हो गई है कि अब एक सामान्य परिवार के नौजवान के लिए डॉक्टर बनने का सपना देखना दूभर हो गया है। यूक्रेन जैसे देशों में मेडिकल की पढ़ाई करने जाने का असली वजह यह है। यूक्रेन में भारतीय छात्रों की मुश्किल को समझते हुए अगर प्रधानमंत्री यह कहते कि अब सरकार नए मेडकिल कॉलेज बनाएगी, जिसमें पहले की तरह किफायती खर्च पर शिक्षा दी जाएगी, तो उसका खुले दिल से स्वागत किया जाता। तब समझा जाता है कि मौजूदा घटनाक्रम से सरकार ने सही सबक लिया है। लेकिन जिस रूप में उन्होंने बात कही, उसका उलटा संदेश गया है। खास कर उस समय बहुत से लोगों को ये बात चुभी है, जो यूक्रेन में फंसे या वहां से लौट रहे छात्रों की पीड़ा से व्यथित हैँ।
मसलन, एक छात्रा ने बताया कि एक दिन उसकी फ्लाइट कैंसिल हो गई। तब उसे कीव एयरपोर्ट पर घंटों भूखे रहना पड़ा। छात्रा ने कहा- "मेरी खुशकिस्मती है कि मैं घर सुरक्षित लौट आई। यहां आने पर अब यूक्रेन की स्थिति के बारे में जो जानकारी मिल रही है, वह काफी डराने वाली है।" ये बात बिल्कुल सही है, क्योंकि सैकड़ों विद्यार्थी ऐसे हैं जो यूक्रेन पर हो रहे रूसी हमले के दौरान वहां विभिन्न शहरों में फंसे हैं। बमबारी यूक्रेन में रही है, जिसस अपनी संतान की सुरक्षा को लेकर माता-पिता का दिल भारत में दहल रहा है। दरअसल, वहां पढ़ाई के लिए गए कई भारतीय बच्चे अपने माता-पिता को वॉट्सऐप कॉल कर या फिर वीडियो भेजकर आपबीती सुना रहे हैं। कई छात्रों ने कहा है कि यूक्रेन में एडमिशन कराने वाले एजेंटों और एजेंसियों ने भी उन्हें धोखे में रखा। ये छात्र दावा करते हैं कि घर लौटने पर एडमिशन रद्द करने की चेतावनी दी गई थी। ये कहानियां पीड़ादायक हैँ। सरकार को इसके लिए उन छात्रों को ही दोषी ठहराने के बजाय कुछ वैसी बातें कहनी चाहिए, जिससे उन्हें और उनके परिजनों को राहत मिले।
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