साइबर अपराध पर नकेल जरूरी
हम जितनी तेजी से डिजिटल दुनिया की ओर बढ़ रहे हैं, ठीक उतनी ही तेजी से साइबर अपराधों की संख्या में बढ़ौतरी हो रही है।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। हम जितनी तेजी से डिजिटल दुनिया की ओर बढ़ रहे हैं, ठीक उतनी ही तेजी से साइबर अपराधों की संख्या में बढ़ौतरी हो रही है। जिस गति से सूचना प्रौद्योगिकी ने तरक्की की है, उतनी ही तेजी से हमारी इंटरनेट पर निर्भरता बढ़ी है। मौजूदा समय में इंटरनेट का उपयोग लगभग हर क्षेत्र में किया जा रहा है जैसे कि सोशल नेटवर्किंग, आनलाइन शापिंग, गेमिंग डाटा स्टोरेज, आनलाइन जॉब और यहां तक कि कोरोना काल में आनलाइन स्टडीज का प्रचलन बढ़ा है। कहते हैं विज्ञान विकास भी है और विनाश भी। विज्ञान का सद्पयोग किया जाए तो ठीक है लेकिन दुरुपयोग किया जाए तो विध्वंस भी हो सकता है। साइबर अपराधों के साथ-साथ आनलाइन गुंडागर्दी भी काफी बढ़ चुकी है। समाज में दूसरों का चरित्र हनन करने, बलात्कार की खुलेआम धमकियां देने, एक-दूसरे पर कीचड़ उछालना आम होता जा रहा है। बड़े पैमाने पर सोशल नेटवर्किंग साइट्स का उपयोग करने वाली जनसंख्या साइबर अपराध के खतरों से अनजान है। विभिन्न सोशल नेटवर्किंग साइट्स के सर्वर अन्य देशों में केन्द्रित हैं, जिससे यह डर रहता है कि कहीं यह देश लोगों की व्यक्तिगत जानकारियों का दुरुपयोग न करे। आशंकाएं निर्मूल नहीं क्योंकि सोशल साइटों द्वारा डाटा बेचना, डाटा लीक होना प्रमाणित हो चुका है। हैकर्स आनलाइन ठगी का शिकार बना रहे हैं। लाखों लोगों के घर बर्बाद हो चुके हैं क्योंकि हैकर्स उनकी जीवन भर की कमाई एक पल में ले उड़े।
सुरक्षा एजैंसियों ने कई मामलों में यह भी पता लगाया है कि आनलाइन मुद्रा स्थानांतरित करने वाले कई अलग-अलग तरह के एप से आतंकवादियों और देश विरोधी तत्वों को फंडिंग की जाती है। साइबर अपराधी आनलाइन गेम्स के माध्यम से बच्चों को अपराध के लिए न केवल प्रोत्साहित करते हैं, बल्कि सोशल साइटों के चैट एप के जरिये युवकों की मानसिकता जहरीली बनाई जा रही है। आतंकवादी संगठन तो नए आतंकवादियों की भर्ती भी आनलाइन ही कर रहे हैं। पुलिस स्मृति दिवस पर गृह मंत्री अमित शाह ने अपने सम्बोधन में कहा है कि साइबर अपराध, आतंकवाद और सीमा सुरक्षा से जुड़ी नई चुनौतियों से िनपटने के लिए पुलिस और अर्द्धसैनिक बल के जवानों को तैयार किया जा रहा है और इसके मद्देनजर एक व्यापक आधुनिकीकरण कार्यक्रम भी चलाया जा रहा है। पुलिस का काम नई चुनौतियों और उसके आयामों से बढ़ता जा रहा है। इसिलए मानव बल का प्रौद्योगिकी को जोड़कर काम करना लक्ष्य होना चाहिए और यह काम तत्परता और तकनीक के साथ-साथ किया जाना चाहिए।
ऐसा नहीं है कि पुलिस मोबाइल हैक कर दूसरों की रकम उड़ाने वाले लोगों को गिरफ्तार नहीं कर रही। रोजाना ऐसे केस हो रहे हैं और अपराधी पकड़े भी जा रहे हैं। पिछले दो वर्षों में साइबर हमलों में ढाई लाख करोड़ का नुक्सान हो चुका है। रैनसमवेयर हमले लगातार बढ़ रहे हैं और अपराधी घरों में बैठकर काम कर रहे हैं। ये लोग काफी निष्ठुर हैं। ये अस्पतालों को भी निशाना बना रहे हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि आपात स्थिति में अस्पताल भुगतान करेंगे ही। राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा रणनीित का मकसद भारत में सुरक्षित, भरोसेमंद और गतिशील साइबर स्पेस सुनिश्चित करना है। पूरी दुनिया में वैश्विक कोरोना महामारी के दौरान साइबर अपराधों में 350 फीसदी की बढ़ौतरी हुई है। जालसाजों ने ज्यादातर अस्पतालों और स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों को निशाना बनाया है।
साइबर अपराधों के साथ सोशल मीडिया पर गुंडागर्दी भी समाज और पुलिस के लिए बड़ी चुनौती बन कर उभरी है। सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर फर्जी अकाउंट बनाए गए हैं। जिनके माध्यम से गंदी मानसिकता वाले लोग स्कूली बच्चियों को भी ब्लैकमेल करने से नहीं हिचक रहे। प्रेम संबंध टूटने पर लड़कियों को धमकियां दी जाती हैं कि उनकी फोटो सोशल मीडिया पर डाल कर समाज में उनको नग्न कर दिया जाएगा। ऐसी घटनाओं से लड़कियां भावनात्मक रूप से टूट रही हैं और आत्महत्याएं कर रही हैं।
आईपीएल में महेन्द्र सिंह धोनी की परफार्मेंस से नाराज एक छात्र ने सोशल मीडिया पर सारी हदें पार कर दीं। धोनी की पांच साल की बेटी को रेप की धमकी दी। हालांकि इस मामले में 12वीं कक्षा के छात्र को गिरफ्तार कर िलया गया है, लेकिन यह घटना हमसे सवाल करती है-एक देश के तौर पर हम कहां खड़े हैं? हम किस ओर जा रहे हैं।
साइबर अपराधों से निपटने के लिए कानून तो बनाया गया लेकिन वह कारगर साबित नहीं हुआ। कोरोना काल के दौरान केरल में साइबर अपराध अचानक बढ़ गए और सोशल मीडिया पर महिलाओं को परेशान करने की घटनाएं भी बढ़ गईं। इससे महिलाओं का व्यक्तिगत जीवन न केवल प्रभावित हुआ, बल्कि सामाजिक ताना-बाना भी छिन्न-भिन्न हुआ। ऐसे अपराधों की रोकथाम के लिए केरल सरकार ने मौजूदा केरल पुलिस एक्ट में धारा 118-ए जोड़ने की सिफारिश की है। इसके तहत साइबर अपराध और सोशल मीडिया हरासमैंट के लिए पांच साल की कैद या फिर दस हजार रुपए जुर्माना या फिर दोनों सजाओं का प्रावधान है।
केरल पुलिस एक्ट 2000 आईटी एक्ट की धारा 66-ए और 2011 के एक्ट की धारा 118-डी को सुप्रीम कोर्ट ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के खिलाफ बताते हुए रद्द कर दिया था। इसके बाद केन्द्र सरकार ने इसकी एवज में कोई दूसरा लीगल फ्रेम वर्क लागू नहीं किया था। ऐसी स्थिति में केरल पुलिस अपराधों को निपटने में सक्षम नहीं थी, इसलिए केरल सरकार ने कानून में संशोधन का फैसला किया। बेहतर यही होगा कि केन्द्र और राज्य पुलिस तालमेल बनाकर सख्त कानून बनाए ताकि साइबर अपराधों को रोका जा सके।