नवजोत सिद्धू का विवादों से लगाव क्या क्रिकेट की तरह उनका राजनीतिक जीवन भी खत्म करेगा
नवजोत सिंह सिद्धू का विवादों से नजदीकी और पुराना रिश्ता रहा है
चाहे उनका 19 वर्षों का एक क्रिकेट खिलाडी का कैरियर रहा हो या फिर पिछले लगभग 18 वर्षों का राजनीतिक सफ़र, नवजोत सिंह सिद्धू का विवादों से नजदीकी और पुराना रिश्ता रहा है. 20 वर्ष की उम्र में जब सिद्धू का भारतीय क्रिकेट टीम में चयन हुआ तो वह अपने अतिरक्षात्मक शैली की बल्लेबाजी के कारण टीम में ज्यादा समय तक टिक नहीं पाए. टीम से बाहर होने के चार साल बाद जब उनकी वापसी हुई तो उनकी बल्लेबाज़ी की शैली बदल चुकी थी. सिद्धू आक्रामक बल्लेबाज़ी और लम्बे लम्बे छक्के लगाने के लिए मशहूर हो गए.
इंग्लैंड के दौरे से एक बार बीच में ही वापस आ गए. माना जाता है कि सिद्धू की उस समय के भारतीय कप्तान मोहम्मद अजहरुद्दीन से कुछ अनबन चल रही थी जिसके कारण वह दौरा बीच में ही छोड़ कर भारत लौट गए. जिसके कारण उन्हें कुछ समय के लिए टीम से निकाल दिया गया. एक 'स्ट्रोकलेस वंडर' से 'सिक्सर सिद्धू' तक का सफ़र या फिर एक साधारण क्षेत्ररक्षक से अपने कैरियर के अंत में 'जोन्टी सिद्धू'(दक्षिण अफ्रीका के जोन्टी रोड्स उस समय दुनिया के सबसे बेहतरीन फील्डर होते थे) पुकारा जाना, सिद्धू के लम्बे क्रिकेट कैरियर को उनके खेल से ज्यादा विवादों के लिए ही याद किया जाता है.
विवादों से रहा है चोली-दामन का साथ
एक कमेंटेटर के रूप में उन्हें काफी पसंद किया गया पर वहां भी विवादों में घिरे रहे, खास कर जब एएसपीएन ने उनपर कॉन्ट्रैक्ट उल्लंघन का आरोप लगाया. राजनीति में रुचि थी और भारतीय जनता पार्टी से जुड़ गए तथा पार्टी के स्टार प्रचारक बन गए, पर धर्म के नाम पर वोट मांगने के कारण विवादों में घिर गए और चुनाव आयोग ने उन्हें कुछ समय के लिए बैन कर दिया था. एक रोड रेज केस में सिद्धू पर एक व्यक्ति की पिटाई का आरोप लगा जिसकी बाद में मृत्यु हो गयी. इस मामले में पंजाब की एक अदालत ने सिद्धू को तीन वर्ष कारावास की सजा सुनाई जिसे पहले सुप्रीम कोर्ट ने स्थगित कर दिया और बाद में उन्हें आरोप मुक्त कर दिया गया. टेलीविज़न शो में सिद्धू कभी जज बन कर और कभी गेस्ट के रूप में आते रहे और लोगों ने उन्हें काफी पसंद किया, पर पुलवामा आतंकी हमले के बाद उनका बयान जिसमे वे पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान का बचाव करते दिखे, उनका टीवी का कैरियर भी समाप्त हो गया.
बीजेपी के प्रत्याशी के रूप में वह लगातार तीन बार अमृतसर से लोकसभा चुनाव लड़े और जीते भी, पर बीजेपी की सहयोगी पार्टी शिरोमणि अकाली दल के वह आलोचक बन गए. जिसके कारण 2014 के लोकसभा चुनाव में अकाली दल के दबाब में बीजेपी ने उन्हें टिकट नहीं मिला और अमृतसर सीट से कांग्रेस के प्रत्याशी कैप्टेन अमरिंदर सिंह के खिलाफ पूर्व केन्द्रीय मंत्री अरुण जेटली को मैदान में उतारा गया. सिद्धू का बीजेपी से मोह भंग हो गया, हालांकि बीजेपी ने उन्हें 2016 में राज्यसभा का सदस्य बनाया. सिद्धू चाहते थे कि बीजेपी अकाली दल से नाता तोड़ ले, बीजेपी ने ऐसा नहीं किया तो सिद्धू ने बीजेपी से ही नाता तोड़ लिया. राज्यसभा की सदस्यता और बीजेपी से इस्तीफा दे दिया और 2017 के पंजाब विधानसभा चुनाव के पूर्व कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए, अमरिंदर सिंह सरकार में मंत्री बने, पर अमरिंदर सिंह से उनकी नहीं बनी और 2019 में मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. पंजाब के मंत्री रहते हुए एक बार फिर से पाकिस्तान के कारण विवादों में घिर गए. 2018 में इमरान खान के शपथ ग्रहण समारोह में इमरान खान ने सिद्धू को आमंत्रण दिया था. इमरान खान और सिद्धू का क्रिकेटर के तौर पर पुराना नाता था. समारोह में वह पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल कमर बाजवा से गले मिलना लोगों को रास नहीं आया. एक बार फिर से सिद्धू का पाकिस्तान के प्रति प्यार विवादों का मुद्दा बन गया.
अध्यक्ष बनने के बाद भी नहीं हुए शांत
अब जबकि पंजाब में विधानसभा चुनाव नजदीक आने लगा तो सिद्धू ने अमरिंदर सिंह के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. किसी विपक्षी दल के नेता के मुकाबले उन्हें मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह की सरकार के कमियां ज्यादा दिखने लगीं और अमरिंदर सिंह के प्रमुख आलोचक बन गए. कांग्रेस आलाकमान ने सिद्धू को शांत करने के लिए और यह सुनिश्चित करने के लिए कि वह कांग्रेस पार्टी छोड़ कर किसी अन्य दल में शामिल ना हो जाएं, उन्हें पंजाब कांग्रेस का अध्यक्ष मनोनीत कर दिया. पर सिद्धू अब चुनाव के पूर्व अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री पद से हटाने में लगे हैं, जबकि कांग्रेस आलाकमान से यह साफ़ कर दिया है कि पंजाब में गला चुनाव अमरिंदर सिंह के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा.
सिद्धु में धैर्य की कमी , गांधी परिवार का भी साथ छूटा
अगर सिद्धू के जीवन पर एक नज़र डालें तो यह साफ़ दिखता है कि उनमें धैर्य की कमी है. महत्वाकांक्षी हैं पर सुर्ख़ियों में बने रहने के लिए कुछ ना कुछ ऐसा करते ही रहते हैं कि वह विवादों में घिरे रहें. पर अब लगने लगा है कि कांग्रेस पार्टी में गांधी परिवार भी सिद्धू की हरकतों से परेशान हो गया है. पंजाब चुनाव में अब छः महीनों से भी कम समय बचा है और सिद्धू ने अमरिंदर सिंह को हटाने की मुहिम तेज कर दी है जिसके कारण कांग्रेस पार्टी को चुनावों में क्षति पहुंच सकती है. कांग्रेस के पंजाब प्रभारी हरीश रावत अमरिंदर सिंह और सिद्धू के बीच के विवाद को सुलझाने इस हफ्ते चंडीगढ़ गए हुए थे. मंगलवार को सिद्धू रावत से मिले और बुधवार को जबकि रावत चंडीगढ़ में ही थे, सिद्धू नयी दिल्ली पहुंच गए. कहा जाता है कि वह कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी या राहुल गांधी और प्रियंका गांधी से मिलना चाहते थे. मंशा थी कि वह अमरिंदर सिंह की मुख्यमंत्री पद से छुट्टी करवा कर खुद मुख्यमंत्री बन जाए. पर गांधी परिवार ने सिद्धू से मिलने से मना कर दिया और सिद्धू को सन्देश दिया गया कि उनकी जो भी समस्या या शिकायत हो वह हरीश रावत के सामने रखें. लिहाजा वृहस्पतिवार को सिद्धू खाली हाथ पंजाब लौट गए और चंडीगढ़ जाने की बजाय वह अपने घर पटियाला चले गए.
ऐसा प्रतीत होने लगा है कि जल्दीबाजी और धैर्य की कमी के कारण सिद्धू ने गांधी परिवार का समर्थन भी खो दिया है. जिस तरह वह पंजाब सरकार के पीछे पड़े हैं और रोज नए विवाद को हवा देते नज़र आते हैं, उससे कांग्रेस पार्टी का चुनाव जीतने का डगर कठिन बनता जा रहा है.
सिद्धू जब क्रिकेट खेलते थे तो वह मौसम के बारे में सटीक भविष्यवाणी करने के लिए जाने जाते थे. पर अब ऐसा लगने लगा है कि राजनीति के मौसम की भविष्यवाणी करने में सिद्धू से कहीं चूक हो गयी है. बहरहाल इतना तो तय है कि पंजाब चुनाव से पहले वह मुख्यमंत्री नहीं बन सकते और अगर उनकी हरकतों की वजह से कांग्रेस पार्टी चुनाव हार गयी तो वैसे भी मुख्यमंत्री पद उनसे कम से कम पांच साल के लिए खिसक जाएगा.
क्रेडिट बाय tv9 भारतवर्ष