राष्ट्रीय युद्ध स्मारक : देश एक और एक ही अमर ज्योति

अखंडता और अक्षुण्णता की रक्षा वे सेनानी भी नहीं कर पाएंगे, जो देश के लिए अपने प्राणों की आहुति देते हैं।

Update: 2022-01-26 01:50 GMT

हाल ही में इंडिया गेट के निकट बने अमर जवान ज्योति का वर्ष 2019 में बने राष्ट्रीय युद्ध स्मारक के सामने जलने वाली अखंड ज्योति में 'विलय' कर दिया गया। लेकिन कुछ लोगों ने इस विलय को 'अमर जवान ज्योति बुझाने' का नाम देकर विवादास्पद बना दिया। यह विलय कितना तर्कसंगत था, इसे समझने के लिए इंडिया गेट स्मारक, अमर जवान स्मारक और राष्ट्रीय युद्ध स्मारक के निर्माण के पीछे की भावना को समझना होगा।

इंडिया गेट का निर्माण स्वतंत्रता प्राप्ति के पूर्व ब्रिटिश सरकार ने उन वीर सैनिकों की स्मृति में किया था, जो प्रथम विश्व युद्ध और आंग्ल-अफगान युद्धों में शहीद हो गए थे। 1971 में जब स्वतंत्र भारत को भारत-पाक युद्ध में अपनी सबसे महत्वपूर्ण सैन्य विजय मिली, तो महसूस किया गया कि स्वतंत्र भारत के उन शहीदों की स्मृति में भी इंडिया गेट जैसा महत्वपूर्ण स्मारक बनाया जाना चाहिए, जिन्होंने इस युद्ध में अपने प्राणों का बलिदान दिया।
इस पावन भावना को ठोस रूप तब मिला, जब 1972 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने अमर जवान स्मारक और उसके सामने प्रज्वलित अमर ज्योति का उद्घाटन किया। तभी से गणतंत्र दिवस के राष्ट्रीय पर्व पर राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री एवं तीनों रक्षा सेनाओं के सेनाध्यक्षों द्वारा सबसे पहले इस अमर ज्योति के सामने पुष्पांजलि की परंपरा चल पड़ी।
बाद के वर्षों में यह महसूस किया गया कि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देश के जितने भी सैनिक शहीद हुए हैं, उनकी स्मृति में एक भव्य स्मारक बनाया जाना चाहिए। नतीजतन फरवरी, 2021 में राष्ट्रीय युद्ध स्मारक का उद्घाटन हुआ, जिस पर 25,942 शहीद सैनिकों के नाम उत्कीर्ण हैं। उनमें 1947-48 के कश्मीर युद्ध, 1962 के चीनी हमले, 1965 के भारत-पाक युद्ध, कारगिल आदि से लेकर हाल में लद्दाख की गलवान घाटी तक में बलिदान हो जाने वाले सभी शहीद शामिल हैं।
तभी से गणतंत्र दिवस पर राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, सेनाध्यक्षों आदि द्वारा सर्वप्रथम शहीदों की स्मृति को श्रद्धा-सुमन चढ़ाने की नई परिपाटी शुरू हो गई। पिछले दो वर्षों से यह भी महसूस किया गया कि राष्ट्रीय स्मारक के सामने एक भव्य अखंड मशाल जलती रहनी चाहिए और उसी में अमर ज्योति का विलय होना चाहिए। इसी भावना से अमर जवान ज्योति का इस ज्योति में विलय किया गया।
लेकिन अब इस विलय को लेकर जो विवाद खड़ा किया जा रहा है, उसके पीछे यह संदेह है कि ऐसा शायद श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा उद्घाटित अमर जवान स्मारक की प्रतिष्ठा कम करने के इरादे से किया गया है। लेकिन दलगत राजनीति की आंच में जिस तरह देश को धर्म और समाज को जातियों, उपजातियों में बांटकर रोटियां सेंकने की परिपाटी चल पड़ी है, उसी तरह से अगर राष्ट्रीय स्मारकों को एक दल या नेताविशेष की देन मानकर अपने-अपने स्मारक बनाने और अखंड ज्योति जलाने की परंपरा चल पड़ी, तो इस देश की एकता, अखंडता और अक्षुण्णता की रक्षा वे सेनानी भी नहीं कर पाएंगे, जो देश के लिए अपने प्राणों की आहुति देते हैं।


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