National Anthem in Madrasa : मुसलमान बगैर विरोध क्यों स्वीकर कर रहे हैं योगी सरकार का हर फैसला?
योगी सरकार ने उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में सभी मदरसों में रोज़ाना दुआ के साथ राष्ट्रगान (National Anthem) गाना अनिवार्य किया है
यूसुफ़ अंसारी
योगी सरकार ने उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में सभी मदरसों में रोज़ाना दुआ के साथ राष्ट्रगान (National Anthem) गाना अनिवार्य किया है. 12 मई से ये फैसला लागू हो गया. मुसलमानों ने बग़ैर किसी विरोध या आपत्ति के इस फैसले को माना. किसी भी संगठन या धर्मगुरु ने इस पर कोई ऐतराज़ नहीं जताया. इससे पहले मस्जिदों से लाउडस्पीकर हटाने और सड़कों पर नमाज़ पढ़ने पर लगाई गई पाबंदी का भी कोई विरोध नहीं हुआ. इसके उलट मुस्लिम संगठनों (Muslim Community) ने आगे बढ़कर इन सभी फैसलों का स्वागत किया. क्या प्रदेश की राजनीति बदल गई है? योगी सरकार और मुसलमानों के बीच तल्खी कम हो रही है? या फिर मुसलमानों ने हालात से समझौता कर लिया है?
ऐसे तमाम सवाल उठने लाज़िमी हैं. सबसे अहम सवाल ये है कि आमतौर पर योगी सरकार का विरोध करने वाले मुसलमान आख़िर उनके दूसरे कार्यकाल में हर फ़ैसला बग़ैर विरोध के क्यों मान रहे हैं? मदरसों में राष्ट्रगान गाने का ज़रूरी बनाने का फैसला 9 मई को लिया गया और 12 मई से लागू कर दिया गया. हालांकि ये फैसला 23 अप्रैल को मदरसा बोर्ड की बैठक में लिया गया था और कहा गया था कि मदरसों की ईद की छुट्टियों के बाद इसे लागू किया जाएगा. ऐसा ही हुआ भी. ये फैसला प्रदेश के सभी 1600 से ज्यादा मदरसों पर लागू हुआ है. मदरसा बोर्ड से मदरसों पर भी और निजी रूप से चल रहे मदरसों पर भी ये फैसला लागू होगा. योगी सरकार के फैसले पर प्रदेश में कहीं से किसी तरह के विरोध का सुर नहीं उठा.
राष्ट्रगान गाते आए हैं, आगे भी गाएंगे
मदरसों में राष्ट्रगान गाने को अनिवार्य किए जाने का उलेमा ने पहल कर स्वागत किया कि इसमें हैरत वाली कोई बात नहीं है. सभी मदरसों में राष्ट्रगान गाया जाता रहा है और आगे भी गाया जाता रहेगा. फर्क़ सिर्फ इतना है कि पहले गणतंत्र और स्वतंत्रता दिवस या अन्य कार्यक्रमों के मौक़े पर राष्ट्रगान गाया जाता था. अब सरकारी आदेश के मुताबिक़ इसे रोज़ गया जाएगा. मदरसा जामिया शेखुल हिंद के मोहतमिम मौलाना मुफ्ती असद कासमी का कहना है कि 26 जनवरी और 15 अगस्त के मौके पर मदरसों में तिरंगा फहराया जाता है और राष्ट्रगान गाया जाता है. अब सरकार की तरफ से मदरसों में राष्ट्रगान को अनिवार्य करने का आदेश आया है तो इससे किसी को कोई आपत्ति नहीं है. जमीयत दावतुल मुसलीमीन के संरक्षक मौलाना कारी इस्हाक़ गोरा का कहना है कि हम लोग मदरसे में पहले से राष्ट्रगान गाते आए हैं, अभी भी गाएंगे इसमें दिक्कत की कोई बात ही नहीं है.
कई मदरसों में रोज़ाना होता है राष्ट्रगान
उत्तर प्रदेश में बहुत से मदरसों में पहले से ही रोज़ाना दुआ के बाद राष्ट्रगान गाया जाता है. लिहाजा सरकार के नए फैसले से इन पर कोई असर पड़ने वाला नहीं है. जिला बिजनौर के नूरपुर में पिछले एक दशक से मदरसा निदामत एकेडमी के संचालक फारुक अहमद कहते हैं कि पहले दिन से हमारे मदरसे में हर रोज़ दुआ के बाद राष्ट्रगान होता है. आसपास के कई और मदरसों में भी यह प्रथा कई दशकों से चली आ रही है. लिहाजा सरकार के इस फैसले से हमें ना कोई हैरानी है और ना ही किसी तरह का कोई ऐतराज है. हमारे यहां स्कूल और मदरसों में पहले से ही रोजाना राष्ट्रगान होता चला आया है. इससे बच्चों में देश प्रेम की भावना जागृत होती है और देश के प्रति उनके समर्पण की भावना मज़बूत होती है. लिहाज़ा सरकार का यह फैसला स्वागत योग्य है.
ओवैसी को क्यों है एतराज
प्रदेश के किसी भी दारुल उलूम मजार उलूम मदरसा संगठन के धर्मगुरु ने योगी सरकार के इस फैसले एतराज नहीं जताया है. एतराज जताया है तो हैदराबाद के सांसद और ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन पार्टी के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने. ओवैसी ने योगी सरकार के इस फैसले के राजनीतिक मायने निकालने की कोशिश की है. उन्होंने कहा है कि हमें यानी मुसलमानों को बीजेपी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से देशभक्ति का प्रमाण पत्र नहीं चाहिए. जब स्वतंत्रता संग्राम लग जा रहा था तो इसमें संघ परिवार ने हिस्सा नहीं लिया था जबकि मदरसे अंग्रेजों के खिलाफ खड़े हो गए थे. हमें किसी से भी प्रमाण पत्र नहीं चाहिए. ओवैसी ने कहा है कि मदरसों में देशभक्ति का पाठ पढ़ाया जाता है. लेकिन बीजेपी और संघ परिवार से जुड़े लोग मदरसों को संदेह की नजरों से देखते हैं. इसीलिए इस तरह के आदेश जारी किए जा रहे हैं.
लाउडस्पीकर पर फैसले की सराहना
इससे पहले मुसलमानों की तरफ से योगी आदित्यनाथ से सरकार की लाउडस्पीकर नीति को लेकर काफी सराहना की गई. हालांकि जब योगी सरकार की ये नीति सामने आई थी उसी समय सोशल मीडिया पर ये बहस शुरू हो गई थी कि इससे लाउडस्पीकर से अज़ान पर पाबंदी लग जाएगी. इसके बावजूद कई मुस्लिम धार्मिक संगठनों ने बढ़-चढ़कर इस फैसले का स्वागत किया था. बाद में जब सरकार की तरफ से लाउडस्पीकर हटाने की मुहिम हुई तो कई मस्जिदों से लोग खुद ही हटाते नज़र आए. इसको लेकर कुछ जगहों पर स्थानीय स्तर पर ज़रूर पुलिस के साथ नोकझोंक हुई. लेकिन प्रदेश में कहीं कोई विरोध का बड़ा सुर नहीं सुनाई दिया. इस फैसले के बाद फैसले के बाद एक लाख से ज्यादा धार्मिक स्थलों से लाउडस्पीकर हटाए गए. कई हजार धार्मिक स्थलों पर तय मानकों के अनुसार साउंड स्पीकरों की आवाज़ कम भी की गई. बाद में आए इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले में भी यह बात कहा कि यह बात कही गई कि मस्जिद में लाउडस्पीकर लगाना मौलिक अधिकार नहीं है.
सड़क पर नमाज़ पर पाबंदी भी क़ुबूल
रमज़ान में अलविदा जुमे से ठीक पहले सड़कों पर नमाज़ होने पर लगाई गई पाबंदी के फैसले का भी मुसलमानों की तरफ से कोई विरोध नहीं हुआ. बल्कि इसका स्वागत ही किया गया. इसका नतीजा यह हुआ कि सभी मस्जिदों में अलविदा जुमा और ईद की नमाज़ पढ़ी गई. जहां जरूरी हुआ एक मस्जिद में दो-दो बार नमाज़ हुई. मुस्लिम संगठनों ने इस फैसले को भी बगैर बगैर विरोध एतराज और ना-नुकुर के कुबूल किया. दरअसल उत्तर प्रदेश में सड़कों पर नमाज़ पिछले कई साल से बड़ा मुद्दा बना हुआ था. दो साल पहले इसे लेकर नोएडा में भी कई जगह विवाद हुआ था. तब से इस पर पाबंदी लगाने की मांग उठ रही थी. हालांकि इससे पहले कुछ मुस्लिम संगठनों ने आगे आकर इस प्रथा को ग़लत बताते हुए इसे इसमें काफी सुधार कर लिया था. लेकिन अब सरकार ने इस पर पाबंदी लगा दी है तो मुसलमानों की तरफ से इस फैसले का भी कमोबेश स्वागत ही किया गया है.
मुसलमानों के रवैये पर हैरानी
उत्तर प्रदेश के राजनीतिक हलकों में इस बात को लेकर हैरानी जताई जा रही है कि आखिर मुसलमानों की सरकार के धार्मिक रीति-रिवाजों से जुड़े इस तरह के फैसले को बगैर विरोध और एतराज के क्यों स्वीकार कर रहे हैं. उत्तर प्रदेश में चुनाव नहीं हैं. इन फैसलों पर विरोध करके या एतराज़ जता कर किसी मुस्लिम संगठन को फायदा हासिल होने वाला नहीं है. मुस्लिम समाज में बड़ा तबका सामाजिक सुधारों के हक़ में रहा है. इसकी कोशिश भी करता रहा है. सड़क पर नमाज़ का मामला मामला हो या फिर लाउडस्पीकर का या मदरसों में राष्ट्रीय पर्व और मनाने और राष्ट्रगान गाने का मामला हो, मुस्लिम समाज के बड़े हिस्से में बहुत पहले से ही इन मुद्दो पर सकारात्मक सोच रही है. लिहाज़ा इन पर योगी सरकार के फैसलों पर मुस्लिम समाज की तरफ से विरोध नहीं हुआ. मुस्लिम समाज में अब ये सोच बढ़ रही है कि हर मुद्दे पर सरकार से टकराव सही नहीं है.
बीजेपी के प्रति नरम हुए मुसलमान?
योगी सरकार के प्रचंड बहुमत से जीत का दोबारा सत्ता में आने के बाद ऐसा लगने लगा है कि बीजेपी बरसों उत्तर प्रदेश की सत्ता से बाहर होने वाली नहीं है. बीजेपी का विरोध करने वाली समाजवादी पार्टी और बीएसपी जैसी पार्टियां बीजेपी को चुनाव में हरा पाए इसकी उम्मीद कम ही है. लिहाज़ा मुसलमानों का इन पार्टियों से अब मोह भंग होने लगा है. बीजेपी को लेकर मुस्लिम समाज में अब तल्खी कम हो रही है. हाल ही में हुए प्रदेश के विधानसभा चुनाव में 10 फीसदी मुस्लिम वोट बीजेपी को मिला है. केंद्र और प्रदेश सरकार की तरफ से चलाई जा रही जनकल्याणकारी योजना में मुसलमानों की अच्छी खासी हिस्सेदारी है. ऐसा माना जाता है कि जन कल्याणकारी योजनाओं के लाभार्थियों ने बीजेपी को वोट दिया है. विधानपरिषद के चुनाव में भी बीजेपी को बड़े पैमाने पर मुसलमानों का वोट मिला है. ये बीजेपी के प्रति मुसलमानों के नरम पड़ते तेवरों का सबूत है.
कई मुस्लिम संगठनों की तरफ से मुसलमानों को इस तरह की हिदायत दी गई है कि वो सियासत में किसी एक पार्टी के पल्लू से बंध कर न रहें बल्कि विकल्प तलाशें. इनमे बीजेपी भी एक विकल्प है. मुस्लिम समाज के भीतर इस तरह की हलचल से बीजेपी के प्रति उनके तल्ख़ी में कुछ नरमी दिख रही है. इसी का सबूत है योगी सरकार के फैसलों पर मुसलमान या तो विरोध बिल्कुल नहीं कर रहे हैं और कर भी रहे हैं तो सांकेतिक रूप से. इस बदले राजनीतिक परिदृश्य में मुसलमानों को योगी सरकार का हर फैसला कुबूल है. ये चर्चा और रिसर्च का विषय हो सकता है कि मुसलमान ऐसा क्यों कर रहे हैं. उन्होंने हालात से समझौता कर लिया है या वाक़ई बीजेपी के प्रति उनकी सोच बदल रही है?