छोड़ने होंगे पूर्वाग्रह
भारत ने संयुक्त राष्ट्र में अपने स्थायी प्रतिनिधि के जरिए यह बात मजबूती से उठाई कि रिलीजियोफोबिया को लेकर दोहरा मानदंड नहीं चल सकता। मौका इंटरनैशनल डे ऑन काउंटरिंग हेट स्पीच की पहली सालगिरह का था।
नवभारत टाइम्स; भारत ने संयुक्त राष्ट्र में अपने स्थायी प्रतिनिधि के जरिए यह बात मजबूती से उठाई कि रिलीजियोफोबिया (धार्मिक भय) को लेकर दोहरा मानदंड नहीं चल सकता। मौका इंटरनैशनल डे ऑन काउंटरिंग हेट स्पीच की पहली सालगिरह का था। इसका सही इस्तेमाल करते हुए भारत ने साफ तौर पर कहा कि रिलीजोफोबिया के खिलाफ जो अंतरराष्ट्रीय मुहिम चलाई जा रही है, वह कारगर तभी होगी जब इसे अब्राहमिक धर्मों तक सीमित न रखते हुए हिंदू, सिख, बौद्ध आदि धर्मों को भी इसमें शामिल किया जाएगा। यह बयान भारत के उस स्टैंड के अनुरूप है, जो इसी साल संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 15 मार्च को इंटरनैशनल कॉम्बैट इस्लामोफोबिया डे के रूप में मनाने का प्रस्ताव पारित किए जाते समय लिया गया था। उस वक्त भी भारत ने कहा था कि रिलीजियोफोबिया को इस्लामोफोबिया तक सीमित कर देना उचित नहीं होगा। यह बात इससे भी सही साबित होती है कि बामियान में ऐतिहासिक बुद्ध प्रतिमा गिराने की बात हो या अफगानिस्तान में सिख गुरुद्वारा पर आतंकियों द्वारा मार्च 2020 में की गई बमबारी की, (जिसमें 25 श्रद्धालु मारे गए थे) हाल के वर्षों में हुई ऐसी तमाम घटनाओं को रिलीजियोफोबिया विरोधी मुहिम में शामिल नहीं किया जाता।
इससे स्वाभाविक ही यह संदेह पैदा होता है कि कथित इस्लामोफोबिया के नाम पर चलाई जा रही मुहिम कहीं किसी खास अजेंडे से प्रेरित तो नहीं। संयोग है कि भारत के इस बयान के कुछ घंटे बाद ही अफगानिस्तान के काबुल स्थित गुरुद्वारा कार्ते परवान पर भीषण आतंकी हमला किया गया। बहरहाल, चाहे किसी भी धर्म या धर्मावलंबियों के खिलाफ हो, इस तरह की घटनाओं के खिलाफ एक समान कड़ा रुख अपनाने की जरूरत है। इस लिहाज से भारत का यह कहना बिल्कुल सही है कि नॉन अब्राहमिक धर्मों को भी इस अंतरराष्ट्रीय मुहिम रिलीजियोफोबियामें शामिल किए जाने की जरूरत है। मगर इसी बिंदु पर यह भी याद करने की जरूरत है कि सही या गलत, पर पिछले कुछ समय से भारत में हो रही घटनाओं को लेकर सरकार के रुख पर देश-विदेश में सवाल भी उठे हैं। पिछले दिनों बीजेपी के दो पूर्व प्रवक्ताओं के बयानों के बाद कई देशों से आई तीखी प्रतिक्रिया का इस संदर्भ में उल्लेख किया जा सकता है। जैसा कि संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि ने भी दोहराया कि भारत में विभिन्न धर्मावलंबी सदियों से साथ-साथ रहते आए हैं। यह विविधता और इससे उपजी सहिष्णुता न केवल हमारे समाज की सबसे बड़ी ताकत है, बल्कि विश्व में हमारा विशिष्ट स्थान भी सुनिश्चित करती है। ऐसे में अंतरराष्ट्रीय मुहिमों को पूर्वाग्रहमुक्त रखने का अपना आग्रह जारी रखते हुए हमें इस बात को लेकर भी सतर्क रहना चाहिए कि विदेशों में सक्रिय भारत विरोधी लॉबीज इसे यहां दिख रहे कथित धार्मिक पूर्वाग्रहों की किसी धारा से जोड़ने में कामयाब न हो जाएं।