मोदी जो गहरी छाप छोड़ रहे हैं

भारतवर्ष की पावन धरा ज्ञान, विज्ञान, कला, अध्यात्म एवं महानतम संस्कृतियों की जननी है

Update: 2021-12-13 18:30 GMT

श्री एम ,आध्यात्मिक गुरु। भारतवर्ष की पावन धरा ज्ञान, विज्ञान, कला, अध्यात्म एवं महानतम संस्कृतियों की जननी है। सदियों से इस भूमि ने मानवता को राह दिखाई है और वसुधैव कुटुंबकम के संकल्प के साथ संपूर्ण विश्व के कल्याण का संदेश दिया है। भारतीय संस्कृति का मूल इतना गहरा और व्यापक है कि इसके प्रवाह में आई बड़ी-बड़ी रुकावटें भी कभी बाधा न बन सकीं। नमन है इस भूमि को, जिसने ऋषियों-मुनियों के साथ-साथ ईश्वर को भी अपनी गोदी में खिलाकर चिरंतन संस्कृति की निरंतर गंगा बहाई।

मुस्लिम परिवार में जन्म होने के बावजूद शायद पुनर्जन्म के किसी प्रयोजन से मात्र अठारह वर्ष की आयु में मैं हिमालय चला गया। मुझे शुरू से ही सत्य व सनातन को समझने और अध्यात्म की ऊर्जा को अपने में आत्मसात करने की प्रबल लालसा थी। सत्य की खोज और ज्ञान की प्राप्ति के लिए ही मैंने हिमालय को अपना रास्ता बनाया। उस यात्रा के दौरान मैंने बाबा केदार के दर्शन किए और पहली बार मुझे मराठा साम्राज्य की प्रसिद्ध महारानी देवी अहिल्याबाई होल्कर के बारे में जानकारी मिली, जिन्होंने आतताइयों द्वारा खंडित सनातनी प्रतीकों, मठ-मंदिरों की पुनस्र्थापना और पुनर्निर्माण के लिए ऐतिहासिक कार्य किया।
देश भर के भ्रमण के दौरान मैं कई मंदिरों में गया और हर जगह मुझे असीम ऊर्जा की अनुभूति हुई। जीवन को एक अलग रूप में जानने का अवसर भी मिला। अध्यात्म की गहराई में उतरने, अपने को जानने, पहचानने और कुछ सीखने की लालसा में मैं बाबा काशी विश्वनाथ के चरणों में पहुंचा, जहां आध्यात्मिक ऊर्जा के नए आयामों से मेरा परिचय हुआ। मैं तब सोचता था कि जिस तरह समग्र संसार के कल्याण के लिए देश के कोने-कोने में स्थापित आध्यात्मिक ऊर्जा के इन सशक्त केंद्रों को आक्रांताओं द्वारा पददलित किया गया, उसके जीर्णोद्धार का कार्य लोकमाता अहिल्याबाई होल्कर की तरह आगे कौन करेगा? क्योंकि ये केवल मिट्टी, पत्थर-धातु के ढांचे नहीं हैं, ये हमारी संस्कृति, सभ्यता व सनातनी मानस के प्रतीक हैं। ये जीवंत और जागृत पावर हाउस हैं, जिन्हें हमारे मनीषियों ने अपने तपोबल से संजोकर रखा।
अब, जब मैं बाबा काशी विश्वनाथ धाम के प्रथम चरण का लोकार्पण देख रहा हूं, तब यह विश्वास भी बना है कि महान सनातन परंपरा के प्रतीक इन आध्यात्मिक शक्ति केंद्रों से असीम ऊर्जा के प्रवाह में कभी कमी नहीं आएगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हमारी इस आशा और विश्वास के प्रतिबिंब बनकर आगे आए हैं। उनके नेतृत्व में भारत आजादी के अमृत काल में आत्मनिर्भर और परिपक्व कदमों से हर दिशा में मजबूती से आगे बढ़ रहा है। यह सोचना ही रोमांच से भर देता है कि अब काशी विश्वनाथ धाम के मंदिर से ही प्रत्यक्ष जीवनदायिनी और मोक्षदायिनी मां गंगा के दुर्लभ दर्शन हो पाएंगे। निस्संदेह यह ऐतिहासिक क्षण है। अपने जीवन में अनेक चुनौतियों और अड़चनों का सामना करते हुए भी लोकमाता ने जिस तरह भारतीय संस्कृति की नींव को मजबूत करने में अपना सर्वस्व अर्पित कर दिया, उन्हीं प्रेरणामूर्ति के कदमों पर चलते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने देश के आध्यात्मिक केंद्रों के जीर्णोद्धार और उनको भव्य स्वरूप देने का बीड़ा उठाया है। इसे धार्मिक पक्ष से कहीं अधिक सभ्यता, संस्कृति और सनातनी प्रतिमानों के संरक्षण के रूप में देखना चाहिए।
हमने आपदा के बाद नए रूप में विकसित होती केदारपुरी और आस्था के प्रतीक केदारनाथ धाम से विश्व को जोड़ने वाले पूज्य आदि शंकराचार्य से देश की नई पीढ़ी का परिचय होते देखा है। हममें से किसी ने भी अयोध्या में भगवान श्रीराम की जन्मभूमि से जुड़े मुद्दे के इस तरह शांति के साथ समाधान हो जाने की कल्पना नहीं की थी। आज भगवान राम की जन्मभूमि पर उनका भव्य मंदिर बन रहा है। धर्म के प्रति आस्था के साथ-साथ सामाजिक सद्भाव का वातावरण एक बड़ी जिम्मेदारी है, जिसे प्रधानमंत्री बखूबी निभा रहे हैं। कहा जा रहा है कि देश ही नहीं, उन्होंने विदेश में भी आध्यात्मिक और आस्था के ऐसे केंद्रों के जीर्णोद्धार में रुचि दिखाई है, जिसका स्वागत किया जाना चाहिए।
यहां भारत की महान सांस्कृतिक परंपरा की चर्चा जरूरी है। शरीर, मन और आत्मा को एकाकार करने वाला विज्ञान 'योग' हमारे ऋषि-मुनियों द्वारा मानव जाति के लिए असीम उपहार है। जो लोग अध्यात्म और आस्था संबंधी बातों में रुचि नहीं रखते, उनके लिए भी योग बेहतर शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य की ओर जाने का एक सही रास्ता है। आधुनिक विज्ञान ने भी इसे स्वीकार किया है। लंबे कालखंड के बाद प्रधानमंत्री के सतत व अथक प्रयासों के बल पर योग एक बार पुन: प्रतिष्ठित हुआ है। कोरोना महामारी के दौरान योग के महत्व को पूरी दुनिया ने स्वीकार किया है।
वाकई, प्रधानमंत्री के नेतृत्व में भारतवर्ष में सही मायनों में आध्यात्मिक और सांस्कृतिक पुनर्जागरण हो रहा है। वह अपने 'मन की बात' कार्यक्रम में ब्राजील के जोनस मसेटी का जिक्र करते हैं, तो प्रवासी भारतीयों को भी एक कर विश्व कल्याण में अपनी भूमिका निभाने के लिए प्रेरित करते हैं। जिस तरह लोकमाता ने जीवन में सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ लड़ाई लड़ी और आध्यात्मिक केंद्रों के पुनर्जागरण का मंत्र लेकर जीवन को समर्पित किया, ठीक उसी तरह प्रधानमंत्री भी तमाम चुनौतियों और बाधाओं को पार करते हुए हमारी महान सभ्यता, संस्कृति और अध्यात्म के संस्कार को पुनर्जीवित करने का प्रयास कर रहे हैं। इसके साथ ही खुले में शौच से मुक्ति, स्वच्छ भारत अभियान, उज्ज्वला योजना, बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ, जल संरक्षण और नमामि गंगे जैसे अभियानों के जरिये समाज को आगे बढ़ने का रास्ता तैयार किया जा रहा है। ये सभी अभियान पुनर्जागरण और लोक-कल्याण की दृष्टि से देखे जाने चाहिए।
जाहिर है, करोड़ों हिंदुओं की आस्था के केंद्र बाबा विश्वनाथ के मंदिर का विहंगम दृश्य मात्र एक भवन का नवीनीकरण नहीं है। यह हमारी मान्यताओं, प्रतीकों और संस्कृति के संरक्षण का ऐतिहासिक उत्सव है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)


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