कोरोना वैक्सीन की मिक्स डोज!

किसी भी महामारी को विज्ञान के माध्यम से ही मात दी जा सकती है।

Update: 2021-08-10 02:00 GMT

किसी भी महामारी को विज्ञान के माध्यम से ही मात दी जा सकती है। कोई भी टोना-टोटका महामारी से हमारी रक्षा नहीं कर सकता। महामारी से निजात पाने के लिए अनुसंधान एवं अध्ययन बहुत जरूरी है। विज्ञान ने बड़े से बड़े चमत्कार अनुसंधान के बल पर ही किए हैं। कोरोना महामारी की वैक्सीन ईजाद कर लिए जाने के बाद यह बहस छिड़ गई थी कि कौन सी वैक्सीन बढ़िया है, कौन सी वैक्सीन कितनी प्रतिरोधक क्षमता पैदा करती है। इस संबंध में लगातार ट्रायल किए गए। महामारी से निपटने के लिए भारत में वैक्सीन अभियान शुरू किया गया। इस दौरान कुछ गलतियां भी हुई हैं। किसी ने पहली डोज एक वैक्सीन की ली और दूसरी डोज मानवीय भूल के चलते दूसरी वैक्सीन लगा दी गई। भगवान का शुक्र है कि ऐसी मानवीय भूलों से किसी की जान नहीं गई।

अब कोरोना वायरस के खिलाफ जंग में एक अच्छी खबर मिली है। कोवैक्सीन और कोविडशील्ड टीकों की मिश्रित डोज पर अध्ययन के परिणाम काफी सुकून देने वाले हैं। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के अध्ययन में पाया गया है कि कोवैक्सीन और कोविशील्ड की मिक्सिंग और मैचिंग स्टडी में बेहतर परिणाम देखने को मिले हैं। अध्ययन में इन दोनों वैक्सीन के मिलाने से यह न सिर्फ वायरस के ​खिलाफ सुरक्षित पाया गया बल्कि इससे बेहतर इम्यूनोजेनेसिटी भी प्राप्त हुई है। यह अध्ययन उत्तर प्रदेश में 98 लोगों पर किया गया, जिनमें से 18 ने अनजाने में टीकों की पहली खुराक कोविशील्ड की और दूसरी खुराक कोवैक्सीन ले ली थी। अध्ययन में यह भी पाया गया है कि दोनों टीकों की एक-एक खुराक लेना सुरक्षित है और इसके प्रतिकूल प्रभाव भी एक ही टीके की दोनों खुराक के समान पाये गए हैं। अध्ययन को एक प्रीप्रिंट सर्वर मेडआरमिक्स पर अपलोड किया गया। अगर स्टडी की फाइनल रिपोर्ट में परिणाम बेहतर मिलते हैं तो और सरकार अगर कोवैक्सीन और कोविशील्ड मिश्रित खुराकों को मंजूरी देती है तो कोरोना वायरस के खिलाफ टीकाकरण अभियान पर इसका सकारात्मक असर पड़ेगा।
बीते दिनों भारत के केन्द्रीय औषधि प्राधिकरण की एक विशेषज्ञ समिति ने इस बात की सिफारिश की थी कि वेल्लोर स्थित क्रिश्चियन मेडिकल कालेज को दोनों टीकों के मिश्रण के क्लिनिकल ट्रायल की अनुमति दी जाए। जिसके बाद इसकी मंजूरी मिली थी। विशेषज्ञ समिति ने काफी चिन्तनमंथन के बाद वेल्लोर के सीएमसी को चौथे चरण का ट्रायल करने की अनुमति की सिफारिश की थी। इस अध्ययन का मकसद यह पता लगाना है कि क्या एक व्यक्ति को पूर्ण टीकाकरण के लिए दो अलग-अलग टीकों की डोज दी जा सकती है। विशेषज्ञ समिति ने 5 से 17 वर्ष की उम्र की आबादी पर अपने कोविड-19 टीके का दूसरे और तीसरे चरण के क्लिनिकल ट्रायल परीक्षण के लिए दिए गए आवेदन पर भी विचार किया गया। अब जबकि बच्चों के लिए वैक्सीन अगले माह में आने वाली है। अब जबकि कुछ राज्यों में स्कूलों को खोल दिया गया है, हालांकि अब भी कई अभिभावक कोरोना की संभावित तीसरी लहर को देखते हुए अपने बच्चों को स्कूल भेजने के लिए तैयार नहीं। अभिभावकों को बच्चों की महामारी से सुरक्षा को लेकर पूरा विश्वास नहीं आ पा रहा। यदि सितम्बर माह तक बच्चों के लिए कोरोना वैक्सीन उपलब्ध हो जाती है तो फिर कोरोना महामारी से मुक्ति मिल सकती है। कोवैक्सीन के बच्चों पर हो रहे क्लिनिकल ट्रायल के शुरुआती डेटा काफी उत्साहित करने वाले हैं। कोवैक्सीन का बच्चों पर ट्रायल चल रहा है। जाइडस कैडिला ने 12-18 आयु वर्ग के लिए अपने डीएनए आधारित वैक्सीन का क्लिनिकल ट्रायल समाप्त कर लिया है और यह निकट भविष्य में उपलब्ध हो सकता है। भारत में फाइजर बायोएनटेक को हरी झंडी मिल जाती है तो वह भी बच्चों के लिए एक विकल्प हो सकता है। यूरोप में 12 से 17 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए माडर्ना के कोरोना वायरस वैक्सीन के इस्तेमाल को मंजूरी मिल गई है। यह देखना होगा कि भारत में यह वैक्सीन आती है तो कब तक उपलब्ध हो सकेगी।
देश में अब तक 50 करोड़ से ज्यादा लोगों को कोविड वैक्सीन लगाई जा चुकी है। यह भी अपने आप में बड़ी उपलब्धि है। देश की आधी से अधिक आबादी का टीकाकरण होने पर एक विश्वास जागेगा कि अब हम सुरक्षित हैं। यदि भारत में कोरोना केस कम हो रहे हैं लेकिन केरल और कुछ अन्य राज्यों में कोरोना केस बढ़ रहे हैं। चीन के वुहान में फिर कोरोना का डेल्टा वैरिएंट फिर से प्रकोप बढ़ा रहा है। 50 फीसदी से ज्यादा आबादी का टीकाकरण हो जाने के बावजूद अमेरिका में भी कोरोना संक्रमण बढ़ रहा है इसलिए हम किसी भी तर्क से तीसरी लहर के खतरे को कम करके आक नहीं सकते। तमाम बाधाओं के बीच साल के अंत तक पूरी वयस्क आबादी को टीकाकरण के दायरे में लाने का लक्ष्य पूरा करना है। इसलिए बचाव का सबसे भरोसेमंद तरीका अभी भी मास्क पहनना, दूरी बनाये रखना और सावधानी बरतना ही उचित होगा।


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