मिल्खा सिंह
यों हर खेल जोश, जुनून और जिद से जीता जाता है, मगर इनके बल पर मिल्खा सिंह ने दौड़ में जो इतिहास रचा, वह उनकी पीढ़ी के लिए एक सबक बन गया।
यों हर खेल जोश, जुनून और जिद से जीता जाता है, मगर इनके बल पर मिल्खा सिंह ने दौड़ में जो इतिहास रचा, वह उनकी पीढ़ी के लिए एक सबक बन गया। बचपन बहुत विषम परिस्थितियों में गुजरा। बंटवारे के वक्त हुए दंगों में मां और पिता कत्ल कर दिए गए। फिर मिल्खा वहां से भारत वाले हिस्से में आ गए। मगर अपनी जड़ों से उखड़ कर दूसरी जगह खाद-पानी ले पाना भला कहां आसान होता है। जो उम्र बच्चों के पढ़ने-लिखने, खेलने-कूदने की होती है, उसमें मिल्खा सिंह को हर चीज के लिए संघर्ष करना था। बेहतर जीवन जीने के लिए उन्होंने बहुत से सहारे तलाशे, कभी ढाबे पर बर्तन धोए तो कभी छोटे-मोटे दूसरे काम किए। बेटिकट रेल यात्रा करते पकड़े गए, तो जेल भी गए। उन्हें लगता रहा कि फौज में जाकर जिंदगी बेहतर हो सकती है। उसके लिए कई बार प्रयास किया। आखिरकार भर्ती हो गए। फिर वहीं से उनकी जिंदगी ने करवट ली। उनके अफसर ने उन्हें दौड़ प्रतिस्पर्धा में हिस्सा लेने के लिए उकसाया। अब तक जिंदगी की दौड़ में भागते आए मिल्खा के लिए यह करना कोई मुश्किल काम नहीं था। अभ्यास किया, दौड़े और कीर्तिमान बना डाला।