दूध का दाम

इसी बीच दूध के दाम एक बार फिर बढ़ गए। दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में दूध उपलब्ध कराने वाली मदर डेयरी ने अपने मलाई वाले दूध की कीमत में एक रुपया प्रति लीटर और टोकन के जरिए बेचे जाने वाले खुले दूध की कीमत में दो रुपए की बढ़ोतरी कर दी। स्वाभाविक ही इसका असर आर्थिक रूप से कमजोर तबके के दैनिक खर्च पर पड़ेगा।

Update: 2022-11-22 04:50 GMT

Written by जनसत्ता: इसी बीच दूध के दाम एक बार फिर बढ़ गए। दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में दूध उपलब्ध कराने वाली मदर डेयरी ने अपने मलाई वाले दूध की कीमत में एक रुपया प्रति लीटर और टोकन के जरिए बेचे जाने वाले खुले दूध की कीमत में दो रुपए की बढ़ोतरी कर दी। स्वाभाविक ही इसका असर आर्थिक रूप से कमजोर तबके के दैनिक खर्च पर पड़ेगा।

मदर डेयरी का कहना है कि चूंकि किसानों से दूध अधिक कीमत पर खरीदना पड़ रहा है, इसलिए इसकी कीमत में बढ़ोतरी उसकी विवशता हो गई थी। किसानों को पशु चारा आदि पर अधिक खर्च करना पड़ रहा है, इसलिए वे दूध के दाम बढ़ा कर दे रहे हैं। मदर डेयरी ने इस साल चौथी बार दूध के दाम बढ़ाए हैं। दूध उपलब्ध कराने वाली दूसरी कंपनियों ने भी इसी तरह समय-समय पर दूध की कीमतें बढ़ाई हैं। लागत बढ़ने से वस्तुओं की कीमत में बढ़ोतरी स्वाभाविक है, मगर दूध जैसी रोजमर्रा इस्तेमाल होने वाली चीजों के दाम बढ़ने से इसलिए चिंता अधिक बढ़ जाती है कि इसकी जरूरत गरीब से गरीब बच्चे को होती है और इसके उपलब्ध न हो पाने से उनके पोषण पर असर पड़ता है।

भारत पहले ही दुनिया भर के देशों में स्वास्थ्य और पोषण के पैमाने पर काफी नीचे के पायदान पर है और हर साल कुछ और नीचे खिसक जाता है। ऐसे में नवजात शिशुओं के पोषण का समुचित प्रबंध करना एक बड़ी चुनौती है। खाद्यान्न सुरक्षा संवैधानिक वचनबद्धता है, उसमें गर्भवती महिलाओं और बच्चों को उचित पोषाहार उपलब्ध कराने के लिए दूध की उपलब्धता सुनिश्चित करना भी व्यवस्था की जिम्मेदारी है।

आर्थिक रूप से कमजोर तबके को ध्यान में रखते हुए ही टोकन के जरिए खुला दूध उपलब्ध कराने की व्यवस्था की गई थी। कई देश भारत में दुग्ध उपलब्धता बढ़ाने के मकसद से मदद भी करते हैं। टोकन वाले खुले दूध की बिक्री उसी योजना के तहत होती है। मगर ढुलाई आदि का खर्च बढ़ जाने की वजह से उनकी कीमत पर काबू पाना कठिन होता गया है। जबकि मलाई वाले दूध की तुलना में खुले दूध की कीमत अधिक बढ़ना इसलिए उचित नहीं माना जा रहा कि इसका वितरण आमतौर पर गरीब लोगों को ध्यान में रख कर किया जाता है। सरकार अगर इसकी कीमत पर काबू पाना चाहती, तो कुछ रियायत दे सकती थी।

पर हकीकत यह है कि महंगाई पर काबू पाने में सरकार का दम फूलने लगा है। रिजर्व बैंक रेपो दरों में बढ़ोतरी कर इस पर काबू पाने का प्रयास कर रहा है, जबकि इससे रोजमर्रा उपभोग की खाने-पीने की चीजों के दाम पर लगाम कसना संभव नहीं हो पा रहा। खाने-पीने की वस्तुओं के दाम बढ़ने के पीछे दो वजहें प्रमुख होती हैं। एक तो ढुलाई पर खर्च बढ़ना और दूसरा कृषि क्षेत्र पर मौसम की मार।

इस समय ये दोनों स्थितियां एक साथ उपस्थित हैं। पेट्रोल-डीजल की कीमतों में संतुलन न बनाए जा सकने की वजह से माल ढुलाई पर खर्च बढ़ा है और दूसरी तरफ मौसम का मिजाज ठीक न रहने की वजह से कृषि उत्पाद की बर्बादी बहुत हुई है। ऐसी स्थिति में पशुओं के चारे आदि पर खर्च भी बढ़ा है। मगर जो दूध विशेष योजना के तहत गरीबों को पहुंचाने के लिए आता है, उस पर काबू पाने का प्रयास तो होना ही चाहिए।


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