मर्ज़ से अंजान: उच्च रक्तचाप की घातकता के प्रति रहें सचेत

सम्पादकीय

Update: 2022-05-10 06:48 GMT
इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च व नेशनल सेंटर फॉर डिजीज इन्फॉर्मेटिक्स एंड रिसर्च का वह हालिया अध्ययन आंख खोलने वाला है, जिसमें कहा गया है कि 72 फीसदी हाइपरटेंशन पीड़ित अपनी बीमारी के प्रति अंजान रहे। यह बात भी कम चौंकाने वाली नहीं है कि देश में 28 फीसदी भारतीय वयस्क उच्च रक्तचाप से पीड़ित हैं। रिपोर्ट इस मायने में भी सचेतक है कि दिल के रोगों की बड़ी वजह उच्च रक्तचाप है। बेहद चिंता की बात यह भी कि देश में 28 फीसदी मौतें हृदय रोगों के कारण होती हैं। ऐसे में 2025 तक इस बीमारी से निपटने के लक्ष्य को पाना एक बड़ी चुनौती होगी। निस्संदेह आईसीएमआर-एनसीडीआईआर, बेंगलुरू का यह अध्ययन आंख खोलने वाला है और आधुनिक जीवनशैली की विसंगतियों के कारण महामारी का रूप धारण करते उच्च रक्तचाप पर काबू पाने की जरूरत पर बल देता है। अध्ययन में इस घातक रोग के प्रति महज 27 फीसदी लोगों का जागरूक होना बताता है कि हम स्वास्थ्य की इस चुनौती को गंभीरता से नहीं लेते। हम तब जागते हैं जब पानी सिर के ऊपर से गुजरने लगता है। अध्ययन में शामिल लोगों में से महज चौदह फीसदी का इलाज करवाना बताता है कि इस गंभीर चुनौती को लेकर समाज में जागरूकता बढ़ाना वक्त की जरूरत है। रिपोर्ट यह भी बताती है कि उच्च रक्तचाप महानगरीय जीवन शैली की ही देन है क्योंकि रोग का असर ग्रामीण इलाकों में शहरों के 34 फीसदी के मुकाबले 25 फीसदी है। वहीं पीड़ित लोगों का भारतीय चिकित्सा पद्धति व वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों पर विश्वास नहीं जग पाया है क्योंकि 99.6 फीसदी पीड़ित एलोपैथिक दवाएं ले रहे हैं। साथ ही सरकारी चिकित्सा पद्धति पर भी भरोसा नहीं जम पाया क्योंकि उच्च रक्तचाप से पीड़ित 80 फीसदी मरीज प्राइवेट अस्पतालों में इलाज करवा रहे हैं। अच्छी बात यह भी है कि महिलाओं में उच्च रक्तचाप का रोग पुरुषों के मुकाबले कम पाया गया। कमोबेश ऐसी ही स्थिति ग्रामीण क्षेत्रों में भी है।
वहीं भौगोलिक आधार पर देखें तो मध्य भारत में रोग कम प्रभावी है, जबकि उत्तर व दक्षिण भारत में वयस्कों के पीड़ित होने की दर ज्यादा है, जो बताता है कि तापमान व परिवेश केंद्रित जीवनशैली की भी इसमें भूमिका है। चिंताजनक यह है कि उच्च रक्तचाप के पीड़ित रोग के प्रति गंभीर नहीं होते। देखिए कि 47 फीसदी लोगों ने कभी अपने रक्तचाप की जांच ही नहीं करवायी। जबकि पचास से सत्तर आयु वर्ग के लोग जांच के साथ उपचार का सहारा भी ले रहे हैं। सर्वमान्य निष्कर्ष के क्रम में महिलाएं जांच करवाने के मामले में यहां भी पीछे हैं। टकसाली सत्य है कि उच्च रक्तचाप हमारी जीवन शैली की विसंगतियों की देन है। निस्संदेह, वक्त के साथ कार्य परिस्थितियां जटिल हुई हैं। खासकर निजी क्षेत्र में युवा कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना कर रहे हैं। काम की अवधि और कम समय में अधिक हासिल करने की होड़ युवाओं को उच्च रक्तचाप की दलदल में धकेल रही है। वहीं हमारे जीवन में फास्टफूड व तली-भूनी चीजों की प्रचुरता, तीक्ष्ण खानपान-पेय तथा पर्याप्त नींद न लेना भी उच्च रक्तचाप की वजह है। हमारे परिवेश में बहुत कुछ ऐसा है जो हमें आवेश व आवेग की लय में ले जाता है। इंटरनेट व मोबाइल पर देर रात तक लगे रहना हमारी प्राकृतिक नींद में बाधक है। हमारे पूर्वज जो गुणवत्ता का भोजन, समय पर भोजन, समय पर सोने और सूर्योदय से पहले जागने की नसीहत देते थे, उसका सीधा संबंध हमारे शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य से था। हमारी अनियंत्रित इच्छाएं और विलासिता का जीवन भी कालांतर हाइपरटेंशन की वजह बनता है। महत्वपूर्ण यह भी कि हम जीवन में सहजता व सरलता को खोते जा रहे हैं। कृत्रिम व्यवहार हमें कई तरह के तनाव देता है। जो कालांतर उच्च रक्तचाप की वजह बनता है। जीवन में शारीरिक श्रम का विलोपन भी हमारे अस्वस्थ होने की बड़ी वजह है। ऐसे में प्राकृतिक चिकित्सा व नियमित योग से हम उच्च रक्तचाप को नियंत्रित कर सकते हैं। खासकर ध्यान व प्राणायाम इसमें रामबाण औषधि है।
दैनिक ट्रिब्यून के सौजन्य से सम्पादकीय 
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