अब जबकि लद्दाख की पेंगोंग झील से चीन ने अपने सैनिक हटा लिए हैं और फिंगर आठ तक उसके सैनिकों को हटाने की प्रक्रिया पर भारत और चीन के मध्य कमांडर स्तर की बैठक भी हो गई है। इससे पूरे विश्व में यह साबित हो चुका है कि चीन की दादागिरी का मुकाबला उसका डटकर प्रतिरोध करने पर ही हो सकता है। चीन द्वारा गलवान घाटी की झड़पों में अपने पांच सैनिकों के मारे जाने की स्वीकारोक्ति कर सच को कुबूल तो लिया, यद्यपि उसका कुबूलनामा अर्धसत्य ही है। भारतीय सूत्र यह दावा करते रहे हैं कि गलवान घाटी में उसके कम से कम 35-40 सैनिक मारे गए थे। भारतीय जवानों ने चीनी जवानों की गर्दन चटका दी थी।
इसी घटनाक्रम के बीच हिन्द प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते दबदबे को खत्म करने के लिए भारत, अमेरिका, जापान और आस्ट्रेलिया ने मिलकर क्वाड समूह की बैठक हुई। इस बैठक में क्षेत्र में बढ़ते समुद्री खतरे पर चिंता व्यक्त करते हुए क्वाड के सदस्यों ने मुक्त और खुले हिन्द प्रशांत क्षेत्र की प्राप्ति के लिए सहयोग पर चर्चा की गई। विदेश मंत्री डाक्टर एस. जयशंकर ने इस बैठक को सम्बोधित किया। बैठक में शामिल विदेश मंत्रियों ने क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुत्ता, कानून के शासन, पारदर्शिता, अन्तर्राष्ट्रीय समुद्र क्षेत्र में नौवहन की स्वतंत्रता और विवादों के शांतिपूर्ण समाधान के संबंध में एक नियम आधारित अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था बनाए रखने की प्रतिबद्धता दोहराई है। सभी ने राजनीतिक लोकतंत्र, बाजार आधारित अर्थव्यवस्था और बहुलवादी समाज के रूप में अपनी साझा विशेषताओं को रेखांकित किया। सभी ने स्वीकारा कि दुनिया में हो रहे बदलावों को देखते हुए मिलकर काम करने की जरूरत है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने म्यांमार के हाल के घटनाक्रमों पर चर्चा में वहां कानून के शासन और लोकतंत्र बहाली की बात दोहराई है। यह बात किसी से छिपी हुई नहीं है कि म्यांमार की राजनीतिक उथल-पुथल के पीछे चीन का हाथ है। चीन ने जिस तरह से म्यांमार में सेना द्वारा किए गए तख्तापलट का समर्थन किया है, उससे म्यांमार की जनता सड़कों पर है। लम्बे संघर्ष के बाद वहां के लोगों ने लोकतंत्र में सांस लेना शुरू किया था और वहां चीनी हस्तक्षेप के विरुद्ध जनभावनाएं भड़की हुई हैं।
भारत ने म्यांमार पर अपना स्टैंड स्पष्ट कर चीन के सामने एक नई चुनौती फैंक दी है। 1970 के दशक में गुटनिरपेक्ष आंदोलन के नेता के रूप में भारत द्वारा नई अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था के विचार को अपनाया गया, जिसके परिणाम बहुत ही सीमित रहे। शीत युद्ध के बाद भारत के दृष्टिकोण में एक बार पुनः बदलाव देखने को मिला। सोवियत संघ के विघटन के बाद एक ध्रुवीय व्यवस्था, भूमंडलीकरण के पक्ष में वाशिंगटन सहमति का उदय हुआ। क्वाड की अवधारणा तो जार्ज डब्ल्यू बुश के दौर में भी थी परन्तु परमाणु कार्यक्रम और कश्मीर मुद्दे पर अमेरिकी विरोध के भय से भारत ने अमेरिका को नियंत्रित करने और एक बहुध्रुवीय वैश्विक अर्थव्यवस्था की स्थापना के उद्देश्य से रूस तथा चीन का समर्थन किया जिसके बाद ब्रिक्स समूह का गठन हुआ। परमाणु मुद्दा और कश्मीर मुद्दा भारत और चीन के बीच बढ़ते तनाव का प्रमुख कारण बन गए। भारत को भी अहसास हुआ कि चीन पर अंकुश लगाना ब्रिक्स समूह के वश से बाहर है। एशिया में एक स्थिर शक्ति संतुलन स्थापित करने में क्वाड की भूमिका महत्वपूर्ण होगी। जब बराक ओबामा अमेरिका के राष्ट्रपति बने तो उन्होंने चीन खतरे को भांप लिया और रणनीति को अंजाम देना शुरू किया। ट्रंप प्रशासन ने भारत-प्रशांत महासागर को स्वतंत्र बनाने के लिए 2017 में क्वाड को पुनर्जीवित कर दिया।
चीन के बुहान शहर से कोरोना वायरस के फैलने के बाद और चीन की आक्रामकता के चलते क्वाड देशों से उसके संबंध बिगड़ते चले गए। पूर्ववर्ती यूपीए शासन भी क्वाड से परहेज करता रहा और अमेरिका से संबंध मजबूत बनाने में हिचकिचाता रहा। इसका कारण अमेरिकी सरकारों द्वारा पाकिस्तान की मदद करना भी रहा। 2014 में नरेन्द्र मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद ऐतिहासिक हिचकिचाहट खत्म हो गई। 2017 से लेकर 2020 तक भारत को सीमाओं पर चीनी आक्रामक का सामना करना पड़ा और इस बात की जरूरत महसूस हुई कि चीन की दादागिरी का विरोध करने के लिए क्वाड देशों को एकजुट करने की जरूरत है। क्वाड की बैठक से पहले इस बार खास बात यह रही कि पैंटागन ने भारत को एक महत्वपूर्ण सांझीदार बताया। पैंटागन ने अमेरिका और भारत की सेनाओं के बीच महत्वपूर्ण द्विपक्षीय संबंधों का उल्लेख किया। भारत और अमेरिका के सैनिक इन दिनों राजस्थान में युद्धाभ्यास भी कर रहे हैं। समय-समय पर क्वाड देशों के सैनिक युद्धाभ्यास भी करते हैं। चीन दक्षिण चीन सागर को अपना बताता है। उसने वहां क्रूज मिसाइलें और एंटी मिसाइल सिस्टम तैनात कर रखी हैं। इस सागर को लेकर चीन का वियतनाम, मलेशिया, ब्रूनेई, ताइवान, फिलीपींस से विवाद है। यह सभी देश इस क्षेत्र के अलग-अलग हिस्सों पर अपना अधिकार जताते रहे हैं।
एक तरफ भारत चीन से परेशान है तो अमेरिका का सच यह भी है कि वह हिन्द प्रशांत सागर में अपने उखड़ते पांव मजबूत करने के लिए भारत का इस्तेमाल करना चाहता है। अमेरिकी अपने हित हमेशा सर्वोपरि मानते हैं। भारत-चीन के बीच जारी तनाव का व्यापक फलक है। हिन्द महासागर और हिन्द प्रशांत में जारी वैश्विक शक्तियों की प्रतिद्वंद्विता भी बड़ी वजह है। चीन दक्षिण चीन सागर पर अपना विशेषाधिकार मानता है जबकि भारत उसे नौवाहन और वहां के आकाश को मुक्त क्षेत्र मानता है। भारत को बड़ी सतर्कता से बढ़ना होगा। उसे अमेरिका द्वारा अपना कंधा इस्तेमाल करने की छूट भी नहीं देनी होगी, साथ ही अपने हितों की रक्षा भी करनी होगी।