कौमी एकता के प्रवर्तक थे मजहरुल हक

आजादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर हमें इतिहास के पन्नों से स्वतंत्रता सेनानियों के सघर्षों तथा कुर्बानियों को याद करना चाहिए.

Update: 2022-12-22 09:27 GMT

फाइल फोटो 

जनता से रिश्ता वेबडेस्क |  आजादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर हमें इतिहास के पन्नों से स्वतंत्रता सेनानियों के सघर्षों तथा कुर्बानियों को याद करना चाहिए.आजादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर हमें इतिहास के पन्नों से स्वतंत्रता सेनानियों के सघर्षों तथा कुर्बानियों को याद करना चाहिए. इन्हीं में से एक हैं मौलाना मजहरुल हक. उनका जन्म 22 दिसंबर, 1866 को पटना, मनेर स्थित बहपुरा गांव में हुआ था. उन्हें प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही मिली. हक साहब ने पटना कॉलेज और लखनऊ के कैनिंग कॉलेज में आगे की पढ़ाई की थी. साल 1888 में लॉ की शिक्षा के लिए वे इंग्लैंड चले गये. सामाजिक तथा राजनीतिक रूप से जागरूक होने में इंग्लैंड प्रवास उनके लिए फायदेमंद रहा. वहीं उनकी मुलाकात महात्मा गांधी से हुई.

उनके आदर्शों का अनुसरण कर मौलाना ने इंग्लैंड में 'अंजुम इस्लामिया' का गठन किया, जिसका नाम बाद में 'पंजाब इस्लामिया सोसाइटी, लंदन' कर दिया गया. तीन वर्ष बाद वे भारत आ गये, पर वकालत में अपेक्षित सफलता नहीं मिली, तो न्यायिक सेवा में मुंसिफ बन गये. लेकिन वहां अंग्रेजों की मनमानी तथा दुर्व्यवहार देख 1896 में उन्होंने पद छोड़ दिया और छपरा में वकालत करने लगे. साल 1897 में अकाल से निपटने के लिए हक साहब ने दिन-रात एक कर दिया था.
बंगाल से अलग कर बिहार को राज्य के रूप में गठित करने में मौलाना मजहरुल हक की महत्वपूर्ण भूमिका रही थी. साल 1906 में डॉ राजेंद्र प्रसाद, डॉ सच्चिदानंद सिन्हा, महेश नारायण तथा अन्य नेताओं के नेतृत्व में 'बिहारी छात्र सम्मेलन' हुआ, जिसमें छात्रों की एक समिति बनी. अगले वर्ष मौलाना मजहरुल हक, ब्रह्मदेव नारायण, हसन इमाम, अली इमाम आदि के जुड़ने से इस आंदोलन को और अधिक बल मिला.
उसी साल मार्ले-मिंटो सुधारों के अंतर्गत हुए चुनाव में डॉ सच्चिदानंद सिन्हा के साथ मौलाना मजहरुल हक मुसलमानों के प्रतिनिधि के रूप में विधान परिषद के लिए निर्वाचित हुए. बिहार का विधिवत गठन 22 मार्च, 1912 को हुआ. हक साहब को दिसंबर, 1916 में बिहार होमरूल लीग का अध्यक्ष बनाया गया. इस आंदोलन ने भारत में स्वशासन के विचार को और सुदृढ़ किया तथा संवैधानिक रूप से स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए भारत को बल दिया.
वर्ष 1917 में चंपारण सत्याग्रह आंदोलन के जरिये महात्मा गांधी भारतीय राजनीति में सक्रिय हुए. उसमें उन्होंने पहली दफा सत्याग्रह का प्रयोग राजनीतिक हथियार के रूप में किया. इस आंदोलन को सफल बनाने में मौलाना मजहरुल हक के अलावा राजकुमार शुक्ल, राजेंद्र प्रसाद, ब्रजकिशोर प्रसाद, अनुग्रह नारायण सिन्हा, नरहरि पारिख, आचार्य कृपलानी, महादेव देसाई आदि ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी.
मौलाना मजहरुल हक इसके बाद महात्मा गांधी के हर आंदोलन में उनके साथ दिखे. असहयोग आंदोलन के समय बिहार के कई नेताओं ने विधायिका के चुनाव से अपनी उम्मीदवारी वापस ली. हक साहब, राजेंद्र प्रसाद, ब्रजकिशोर प्रसाद, मोहम्मद रफी आदि उनमें अग्रणी थे. असहयोग आंदोलन के समय बिहार के छात्रों ने सरकारी अनुदान पर चल रहे शिक्षण-संस्थानों का जब बहिष्कार कर दिया, तो उनकी शिक्षा के लिए मौलाना मजहरुल हक ने पटना में जमीन खरीद कर बिहार विद्यापीठ की स्थापना की.
हक साहब बिहार विद्यापीठ के कुलपति, ब्रज किशोर बाबू प्रतिकुलपति तथा डॉ राजेंद्र प्रसाद प्राचार्य बनाये गये. पटना इंजीनियरिंग स्कूल के विद्यार्थी जब असहयोग आंदोलन में कूद पड़े, तो उनके लिए उन्होंने अपने मित्र खैरू मियां द्वारा दान दी गयी जमीन पर सदाकत आश्रम का निर्माण करवाया, जहां उनकी शिक्षा का उचित प्रबंधन स्वयं के पैसों से किया. हक साहब अपना फ्रेजर रोड (पटना) स्थित घर छोड़ वहीं विद्यार्थियों के साथ रहने चले गये. उन्होंने असहयोग आंदोलन के दौरान पटना से 'द मदरलैंड' पत्र का प्रकाशन भी प्रारंभ किया था.
स्वतंत्रता आंदोलन में 1926 से मौलाना मजहरुल हक की सक्रियता स्वास्थ्य ठीक न रहने की वजह से कम हो गयी. वे पटना छोड़ फरीदपुर (सीवान) में रहने लगे. वहां भी देशभर के सामाजिक एवं राजनीतिक कार्यकर्ता तथा आंदोलनकारी उनसे मिलने आते रहे. लंबी बीमारी के बाद दो जनवरी, 1930 को मौलाना मजहरुल हक इस दुनिया से कूच कर गये.
बिहार सरकार ने उनके सम्मान में 1998 में मौलाना मजहरुल हक अरबी व फारसी विश्वविद्यालय की स्थापना पटना में की, जो आज उनके विचारों को नयी पीढ़ी तक पहुंचा रहा रहा है. हक साहब के देहांत के पश्चात महात्मा गांधी ने कहा था, 'मौलाना मजहरुल हक एक सच्चे देशभक्त, मुसलमान तथा कौमी एकता के सबसे बड़े प्रवर्तक थे.'

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