'जिन्दे की बात ना पूछै-मरे कू धर- धर पीटै'।
मृत्यु के इस गरिमापूर्ण कृत्य को ही 'सत्य से साक्षात्कार' की अनुभूति भी माना जाता है। अतः बेवजह नहीं है कि भारत में आदमी की अन्तिम क्रिया की पद्धति को किसी अनुष्ठान से कम नहीं समझा जाता। कहने का मतलब सिर्फ इतना सा है कि कोरोना ने सभी मानवीय संवेदनाओं से जुड़ी प्रतिबद्धताओं को जिस तरह लहू-लुहान किया है उससे स्वयं भारत ही 'सकते' में है। अतः इतने दर्दनाक मंजर को बदलने के लिए देश की सरकार को हर स्तर पर ऐसी कारगर योजना बनानी होगी जिससे भारत की उस पहचान और अस्मिता पर सवाल न खड़े हो सकें जिनका सम्बन्ध विशुद्ध रूप से जीवन के हर क्षेत्र मे मानवीयता से रहा है। कोरोना का मुकाबला करने का एकमात्र अस्त्र वैक्सीन है जिसकी भारी कमी फिलहाल देश में चल रही है। हमारे पास 18 वर्ष से 45 वर्ष तक के लोगों के लिए वैक्सीन का भंडार नहीं है। लगभग हर राज्य सरकार इसकी गुहार लगा रही है। हमने राज्य सरकारों को अन्तर्राष्ट्रीय बाजार से सीधे वैक्सीन खरीदने की इजाजत दी है मगर इन्हें बनाने वाली कम्पनियां हाथ खड़े कर रही हैं और कह रही हैं कि वे जुलाई के बाद ही इस बारे में कुछ कह सकतीं हैं क्योंकि तब तक उनके उत्पादन का पहले ही सौदा हो चुका है।
दूसरी तरफ भारत में कोरोना संक्रमण के मामले तो पिछले पांच दिन से कम हो रहे हैं मगर मौतों की संख्या बढ़ रही है। यह विरोधाभास इसलिए हो सकता है कि जो लोग पहले ही मरीज हो चुके हैं उनके उपचार की समुचित व्यवस्था करने में कोताही हुई है या फिर गांवों में जिस तरह दूसरी लहर ने अपना प्रकोप फैलाया है वह लोगों को निगल रही है। ऐसी स्थिति को देखते हुए केन्द्र सरकार ने विदेशमन्त्री श्री एस. जयशंकर की 24 से 28 मई तक चार दिवसीय यात्रा का कार्यक्रम बनाया है जहां वह वैक्सीन उत्पादक कम्पनियों से बात करने के साथ ही अमेरिका के उच्चस्थ अधिकारियों से भी मदद के लिए बातचीत करेंगे।
भारतीय उपमहाद्वीप के बांग्लादेश से लेकर मालदीव व श्रीलंका जैसे देश भी भारत की तरफ ऐसे संकट काल में उम्मीद भरी नजरों से देख रहे हैं और चाहते हैं कि श्री जयशंकर उनके लिए भी कुछ मदद का इन्तजाम करें। उनकी अपेक्षा जायज है क्योंकि भारत इस उपमहाद्वीप का सबसे बड़ा और शक्तिशाली देश है। श्री जयशंकर की अमेरिका यात्रा इस हकीकत की तरफ भी इशारा करती है कि केन्द्र सरकार अपनी वैक्सीन नीति में संशोधन करना चाहती है और विदेशी कम्पनियों से स्वयं वैक्सीन खरीद कर उन्हें राज्यों को वितरित करने पर विचार कर रही है। यदि ऐसा है तो इसका स्वागत किया जाना चाहिए। भारत के कोरोना संकट पर श्री जयशंकर राष्ट्रसंघ के महासचिव से भेंट करने के साथ ही अमेरिका के विदेशमन्त्री श्री अंटोनी ब्लिंकेन से भी बात करेंगे और वहां के राष्ट्रपति जो बाइडेन के मुख्य चिकित्सा सलाहकार डा. अंथोनी फाउची से विचार-विमर्श करेंगे। राष्ट्रपति बाइडेन ने हाल ही में घोषणा की थी कि अमेरिका के पास जानसंन एंड जानसन, फाइजर और माडरेना की वैक्सीनें अतिरिक्त हैं जबकि कोविडशील्ड की छह करोड़ वैक्सीने हैं। वह इन्हें जरूरतमन्द देशों आगामी जून महीने से देना शुरू करेगा। ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि श्री जयशंकर इन वैक्सीनों का बड़ा हिस्सा भारत को देने की प्रार्थना करेंगे। इसके साथ ही वह इन कम्पनियों के मालिकों के साथ बैठक करके उन्हें भारत की तरफ से वैक्सीन के आर्डर देने का प्रयास भी करेंगे। जाहिर है कि केन्द्र सरकार की यह कोशिश सकल रूप से भारत के लिए ही होगी जिसका लाभ विभिन्न राज्यों को होगा। वैक्सीन की कमी को पूरा करने की दिशा में मोदी सरकार का यह निर्णायक कदम होगा। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि युवा आबादी को वैक्सीन लगाने के बाद हमें बच्चों के भी वैक्सीन लगाने की शुरूआत जल्दी ही करनी पड़ेगी क्योंकि स्कूल-कालेज बन्द होने से इनका भविष्य लगातार अधर में झूल रहा है। पूरा भारत यह दुआ कर रहा है कि जयशंकर की अमेरिका यात्रा सफल हो।