ममता पर हमला एक दुर्घटना
इस घटना को किसी साजिश से जोड़ कर देखना सर्वथा अनुचित
प. बंगाल की मुख्यमन्त्री व तृणमूल कांग्रेस की सर्वमान्य नेता सुश्री ममता बनर्जी के विगत 10 मार्च को नन्दीग्राम में जख्मी हो जाने के मामले को चुनाव आयोग ने एक दुर्घटना या हादसा बता कर साफ कर दिया है कि इस घटना को किसी साजिश से जोड़ कर देखना सर्वथा अनुचित है। हां जहां तक ममता दी की सुरक्षा का मामला है तो उसमें अवश्य चूक हुई है। वैसे भी किसी मुख्यमन्त्री द्वारा अपने ऊपर चुनावी माहौल में हमले का आरोप लगाना लोकतन्त्र में असामान्य घटना ही कही जायेगी। क्योंकि चुनावी प्रचार के दौरान किसी भी रूप में हिंसा का प्रयोग पूर्णतः वर्जित है किन्तु बिना ठोस प्रमाणों के विपक्षी पार्टी के ऊपर हिंसा फैलाने का आरोप लगाना भी लोकतन्त्र में सर्वथा अनुचित है। इसे राजनीति से प्रेरित भी कहा जा सकता है। अतः ममता दीदी की पार्टी की तरफ से जिस तरह अपने नेता के जख्मी होने के मामले को साजिश बताया गया और पहले से सोची-समझी रणनीति का हिस्सा कहा गया वह विभिन्न शंकाओं के घेरे में आता था। इसमें कोई दो राय नहीं कि ममता दी जख्मी हुई और उनके पैर में गंभीर चोट भी आयी जिसकी वजह से वह अब व्हीलचेयर पर चुनाव प्रचार कर रही हैं परन्तु यह भी हकीकत है कि 10 मार्च को ममता दी जब एक मन्दिर में पूजा करने के लिए जा रही थीं तो भीड़ ने उन्हें कार से उतरते समय ही घेर लिया था और इस धक्का-मुक्की में उनकी कार का दरवाजा जबरन बन्द करने के चक्कर में उनका पैर बुरी तरह जख्मी हो गया। इसे एक साजिश बताना या भाजपा द्वारा सुनियोजित हमला बताना किसी भी तर्क से गले नहीं उतरता था। चुनावी युद्ध में वह पक्ष हमेशा नुकसान में रहता है जिस पर उत्पीड़न करने का आरोप लगता है जबकि उत्पीड़ित पक्ष लाभ में रहता है। अतः तर्क कहता है कि भाजपा ऐसा खतरा मोल लेकर अपना नुकसान स्वयं क्यों करेगी? यही वजह रही कि रेलमन्त्री पीयूष गोयल के नेतृत्व में भाजपा के एक प्रतिनिधिमंडल ने चुनाव आयोग को ज्ञापन देकर मांग की कि मामले की निष्पक्ष जांच कराई जाये। वहीं दूसरी तरफ तृणमूल कांग्रेस का भी एक प्रतिनिधिमंडल सांसद श्री सौगत राय के नेतृत्व में चुनाव आयोग से मिला और उसने साजिश का आरोप लगाते हुए जांच कराने की मांग की। चुनाव आयोग ने इस मामले की जांच कराई और अपने दो पर्यवेक्षक भेजे तथा राज्य के मुख्य सचिव से भी घटना की रिपोर्ट मांगी।