स्वतंत्रता संग्राम में बलिदान देने वालों का निरादर है मल्लिकार्जुन खरगे की भाषा
राहुल गांधी के भारतीय सैनिकों की पिटाई वाले बयान पर हंगामा शांत होने के पहले ही मल्लिकार्जुन खरगे ने जिस तरह भाजपा को निशाने पर लेते हुए यह पूछा कि क्या आजादी की लड़ाई में आपके घर से कोई कुत्ता भी मरा, उससे यदि कुछ स्पष्ट हो रहा है
जनता से रिश्ता वेबडेस्क | राहुल गांधी के भारतीय सैनिकों की पिटाई वाले बयान पर हंगामा शांत होने के पहले ही मल्लिकार्जुन खरगे ने जिस तरह भाजपा को निशाने पर लेते हुए यह पूछा कि क्या आजादी की लड़ाई में आपके घर से कोई कुत्ता भी मरा, उससे यदि कुछ स्पष्ट हो रहा है तो यही कि कांग्रेस को भाषा की मर्यादा की कहीं कोई परवाह नहीं। खरगे का यह बयान केवल एक अरुचिकर बयान ही नहीं है, बल्कि स्वतंत्रता संग्राम में कांग्रेस से इतर बलिदान देने वालों का निरादर भी है। निःसंदेह कांग्रेस ने स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व किया, लेकिन इस संग्राम में देश के सभी वर्गों के लोग शामिल थे और उन्होंने भी बलिदान दिया।
पता नहीं क्यों कांग्रेस यह सिद्ध करने पर तुली रहती है कि आजादी की लड़ाई में केवल उसके लोगों का ही योगदान था? यह एक संकुचित दृष्टिकोण है। यह किसी से छिपा नहीं कि कांग्रेस गांधी परिवार के बाहर लोगों को वह मान-सम्मान देने से सदैव कतराती रही है, जिसके वे हकदार हैं। यह विचित्र है कि मल्लिकार्जुन खरगे को देश की एकता के लिए कुर्बानी देने वालों में केवल इंदिरा गांधी और राजीव गांधी का ही नाम याद रहा। वह कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ही नहीं, उसके अध्यक्ष भी हैं। कम से कम उन्हें तो भाषा की मर्यादा का ध्यान रखना ही चाहिए। क्या अलवर में उन्होंने जो कुछ कहा, वह सभ्य-शालीन तरीके से नहीं कह सकते थे?
यह देखना दयनीय है कि मल्लिकार्जुन खरगे अपने आपत्तिजनक वक्तव्य पर अफसोस जताने के बजाय उस पर कायम रहने की बात कर रहे हैं। यदि कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में वह इसी तरह की भाषा का उपयोग करेंगे तो फिर अपने उन नेताओं को प्रोत्साहित ही करेंगे, जिन्होंने चंद दिनों पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की हत्या के लिए तत्पर रहने वाला बयान दिया था। मल्लिकार्जुन खरगे की भाषा से यही स्पष्ट हो रहा है कि कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में वह कोई नया विमर्श खड़ा करने के बजाय राहुल गांधी की शैली वाली राजनीति करना ही पसंद करेंगे।
राहुल गांधी भाजपा-संघ पर निशाना साधने के लिए न केवल स्वतंत्रता सेनानी वीर सावरकर का अपमान करते रहते हैं, बल्कि समय- समय पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भी नीचा दिखाने के लिए उनके विरुद्ध अभद्र भाषा का इस्तेमाल करते हैं। विडंबना यह है कि इसके बाद भी उनकी ओर से यह दावा किया जाता है कि वह नफरत के बाजार में मोहब्बत की दुकान खोल रहे हैं। क्या मोहब्बत की दुकान इस तरह खुलती है कि राजनीतिक विरोधियों के प्रति अशालीन-अपमानजनक भाषा का उपयोग किया जाए? राहुल गांधी हों या मल्लिकार्जुन खरगे, वे अपनी बात मनचाहे तरीके से रखने के लिए स्वतंत्र हैं, लेकिन उन्हें यह आभास हो तो बेहतर कि भाषा की मर्यादा के उल्लंघन से कांग्रेस का भला नहीं होने वाला।