प्रकाश प्रेरणा का महापर्व मकर संक्रांति

‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ का उदघोष करने वाली भारतीय संस्कृति में मकर संक्रांति का विशेष महत्त्व है

Update: 2022-01-12 19:07 GMT

'तमसो मा ज्योतिर्गमय' का उदघोष करने वाली भारतीय संस्कृति में मकर संक्रांति का विशेष महत्त्व है। यह पर्व मुख्यतः सूर्य पर्व के रूप में मनाया जाता है। इस दिन सूर्य धनु राशि छोड़कर मकर राशि में प्रवेश अथवा विस्थापन करते हैं। सूर्य की इसी संक्रमण की क्रिया के कारण इस पर्व को मकर संक्रांति कहा गया है। इस दिन सूर्य दक्षिणायन से अपनी दिशा बदलकर उत्तरायण हो जाते हैैं। इसी कारण मकर संक्रांति को उत्तरायण के नाम से भी जाना जाता है। इस पर्व से दिन लंबे व रातें छोटी होना शुरू हो जाती हैं। हमारा देश यूं भी पृथ्वी के उत्तरी गोलार्द्ध में स्थित है, इसलिए इस पर्व का हमारे लिए और भी अधिक महत्त्व बढ़ जाता है। यही नहीं विश्व की 90 फीसदी आबादी उत्तरी गोलार्द्ध में ही स्थित है। यही वजह है कि यह दिन संपूर्ण विश्व के लिए सकारात्मकता, ऊर्जा, उत्साह, नवजीवन व अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने के लिए विशेष महत्त्व रखता है। संपूर्ण विश्व के सभी उत्सवों में संभवतः मकर संक्रांति ही एक ऐसा उत्सव है जो बिना किसी स्थानीय परंपरा, मान्यता या विश्वास से संबंधित नहीं, अपितु यह एक खगोलीय घटना है जो वैश्विक भूगोल व संपूर्ण जीवन प्रणाली यानी मनुष्य, पशु-पक्षी, पेड़-पौधों को आनंद देने वाला है। संभवतः यही एक ऐसा त्योहार है जो अंग्रेजी कैलेंडर के एक ही दिन 14 जनवरी को आता है। विश्व बंधुत्व, विश्व कल्याण और 'सर्वे भवन्तु सुखिनः' की उदात्त भावना केवल भारतीय संस्कृति की विशेषता है और इस नाते हर पर्व की तरह यह पर्व भी हर्षोल्लास के साथ देश में भिन्न-भिन्न रूपों में मनाया जाता है। विभिन्नता में एकता लिए हमारे देश में इस पर्व में भी विविधता है। उत्तर भारत में लोहड़ी, मध्य भारत में संक्रांति, असम में बिहू, दक्षिण भारत में इस त्योहार को पोंगल के रूप में मनाया जाता है। बहुत से क्षेत्रों में इसे उत्तरायण, खिचड़ी, माघी आदि के नामों से भी जाना जाता है। भारत के साथ नेपाल में भी इस पर्व को नई फसलों के आगमन की खुशी में मनाया जाता है। इस दिन किसान नई फसल से बने भोग ईश्वर को चढ़ाकर उसके प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हैं।

मकर संक्रांति का ऐतिहासिक व धार्मिक महत्त्व भी है। कहते हैं कि इस दिन गंगा नदी धरती पर अवतरित हुई थी। इसी दिन गंगा नदी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होते हुए गंगा सागर पहुंची थी। इस दिन गंगा सागर में स्नान का बड़ा महत्त्व है। कहते हैं 'सारे तीर्थ बार-बार गंगा सागर एक बार'। महाभारत के आठवें अध्याय में इस बात का वर्णन है कि भीष्म पितामह ने शीर शैया पर अत्यंत पीड़ा सहन करने के बावजूद प्राण त्यागने के लिए सूर्य के उत्तरायण होने का इंतजार किया था। हमारे शास्त्रों में यह कहा गया है कि जो प्राणी उत्तरायण में देह त्याग करता है उसे मृत्युलोक से मुक्ति मिल जाती है और वह मोक्ष को प्राप्त हो जाता है और जो दक्षिणायन में देह त्याग करता है, उसे पुनः मृत्यु लोक में जन्म लेना पड़ता है। यही नहीं मां यशोदा ने इसी दिन श्रीकृष्ण को पुत्र रूप में कामना हेतु व्रत लिया था जब सूर्य उत्तरायण हो रहे थे। कहते हैं इस दिन सूर्य सारे रोष त्यक्त कर अपने पुत्र शनि से मिलने उनके घर गए थे। इसलिए यह पर्व सौहार्द व भाईचारे के रूप में मनाया जाता है। शनि क्योंकि मकर राशि के स्वामी हैं, इसलिए इसे मकर संक्रांति कहा गया है। मकर संक्रांति के दिन माघ मास का आरंभ होता है। इससे एक दिन पहले यानी पौष माह के आखिरी दिन लोहड़ी मनाई जाती है जो हिंदू वर्ष का अंतिम त्योहार है। इस दिन नदी स्नान का बड़ा महत्त्व है। इसी दिन से हिंदुओं की महा तीर्थ स्थली प्रयागराज में मेला आरंभ होता है। हम जानते ही हैं कि तीर्थराज प्रयाग का कुंभ मेला विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन है। मकर संक्रांति के दिन यहां प्रथम पवित्र स्नान शुरू होता है। हमारी हिंदू संस्कृति व पर्व, इन सबके पीछे ऐतिहासिक व धार्मिक महत्त्व तो है ही, साथ में इन पर्वों के मनाने के पीछे वैज्ञानिक आधार भी हैं। मकर संक्रांति के दिन नदियों में वाष्पन प्रक्रिया बहुत अधिक होती है जिसमें स्नान करने से कई तरह के रोगों का निवारण होता है। इस दिन तिल, गुड़ का सेवन किया जाता है।
मकर संक्रांति के दिन पूरे उत्तर भारत में शिशिर ऋतु चरम सीमा पर होती है। ऐसे में तिल, गुड़ चिकित्सा विज्ञान के हिसाब से सेहत के लिए अच्छा माना जाता है। इस दिन खिचड़ी का सेवन किया जाता है जो सुपाच्य होने के साथ इसमें अदरक के सेवन से शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है। मकर संक्रांति के दिन जप, तप, दान का भी बहुत महत्त्व है। मान्यता है कि मकर संक्रांति से सूर्य तिल-तिल अपना स्वरूप बदलता है। इसलिए इस दिन तिल के साथ घी, कंबल आदि दान का बड़ा महत्त्व है। मान्यता है कि इस दिन दान करने से मनुष्य को दान का सौ गुणा प्रतिफल मिलता है। इस दिन पतंग उड़ाने की प्रथा भी है। रामचरितमानस के बालकांड में मकर संक्रांति के दिन श्री रामचंद्र जी के पतंग उड़ाने का उल्लेख मिलता है। गुजरात में मकर संक्रांति के दिन अंतरराष्ट्रीय पतंग उत्सव मनाया जाता है। इस दिन पतंग उड़ाने के पीछे धूप में अधिक समय बिताने के चिकित्सा विज्ञान का आधार जुड़ा है ताकि शरद ऋतु में हम अधिक से अधिक धूप लेकर शरीर को ऊर्जावान बना सकें। इस तरह से मकर संक्रांति प्रकाश की अंधकार पर, ऊष्मा की शिशिर पर विजय का प्रतीक है। यह पर्व सूर्य का पर्व है और सूर्य निरंतरता, जीवंतता, ऊर्जा, गतिशीलता का प्रतीक है जिसका एकमात्र ध्येय संपूर्ण सृष्टि का कल्याण है। पर्वों की यह शाश्वत संस्कृति पीढ़ी दर पीढ़ी विश्व कल्याण के लिए पोषित की जाए, यही भारतीय संस्कृति का मूल उद्देश्य है।
कंचन शर्मा
लेखिका शिमला से हैं
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