मध्यप्रदेश : नगरीय निकाय के चुनाव में दोहरी चुनाव प्रणाली, बीजेपी की राजनीतिक मजबूरी या मजबूत रणनीति
मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) में पहली बार नगरीय निकाय के चुनाव एक ही समय में दो अलग-अलग प्रणाली से होंगे
दिनेश गुप्ता |
मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) में पहली बार नगरीय निकाय के चुनाव एक ही समय में दो अलग-अलग प्रणाली से होंगे. नगर निगम का महापौर वोटर सीधे चुनेंगे और नगर पालिका के अध्यक्ष का चुनाव निर्वाचित पार्षदों के वोटों से होगा. पिछले चुनाव में जनता ने सीधे ही अध्यक्ष और महापौर का चुनाव किया था. निकाय चुनाव (Civic Elections) में दो अलग-अलग प्रणाली लागू किए जाने को बीजेपी (BJP) की रणनीति के तौर पर देखा जा रहा है. जिन शहरों में नगर निगम है, वहां बीजेपी चुनावी दृष्टि से मजबूत स्थिति में मानी जाती है. लेकिन, छोटे शहरों में राजनीतिक समीकरण बदलते रहते हैं. बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती उन नेताओं को साधे रखने की है जो ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आए हैं.
तीन साल से प्रशासक संभाल रहे हैं नगरीय निकाय
मध्यप्रदेश में नगरीय निकाय के चुनाव 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद होना था. निकायों का कार्यकाल समाप्त होने के बाद कमलनाथ के नेतृत्व वाली तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने चुनाव को टाल दिया था. निकाय में प्रशासक नियुक्त कर दिए गए थे. मार्च 2020 में 28 विधायकों के दलबदल किए जाने के कारण कांग्रेस सरकार का पतन हो गया था. कांग्रेस सरकार ने नगरीय निकायों के नए परिसीमन के साथ-साथ चुनाव अप्रत्यक्ष प्रणाली से कराए जाने का फैसला लिया था. भारतीय जनता पार्टी ने इस फैसले का खुलकर विरोध भी किया था. निर्वाचन प्रणाली में परिवर्तन के बाद कमलनाथ पर बीजेपी नेताओं ने यह आरोप भी लगाए थे कि वे निकायों में जोड़तोड़ की राजनीति का प्रश्रय दे रहे हैं.
राज्य में कुल सोलह नगर निगम, 98 नगर पालिका तथा 294 नगर पंचायत हैं. संविधान के 74वें संशोधन के अनुसार राज्य में निकाय चुनाव कराने की व्यवस्था वर्ष 1994 में शुरू हुई थी. चुनाव दलीय आधार पर कराया जाता है. 1999 तक नगरीय निकाय के अध्यक्ष और महापौर का चुनाव निर्वाचित पार्षदों के द्वारा किया जाता था. 22 साल बाद नगर पालिका में अध्यक्ष चयन की जिम्मेदारी फिर पार्षदों को दी जा रही है. नई व्यवस्था में वोटर के पास अध्यक्ष को वापस बुलाने का अधिकार भी नहीं रहेगा. पार्षद अविश्वास प्रस्ताव के जरिए अध्यक्ष को हटा सकते हैं. लेकिन, महापौर को वापस बुलाने का अधिकार उसके क्षेत्र वोटर के पास बना रहेगा. वोटर इसका उपयोग दो साल बाद ही कर सकेंगे.
चुनाव में ओबीसी का मुद्दा हावी रहने के आसार
नगरीय निकाय के चुनाव के लिए अधिसूचना अगले सप्ताह जारी होने की संभावना है. शुक्रवार को राज्य निर्वाचन आयोग ने ग्रामीण निकाय के चुनाव की अधिसूचना जारी कर दी है. पिछले दिनों निकाय में ओबीसी आरक्षण मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम आदेश जारी किया था. इस आदेश में ही निकाय चुनाव कराने की अधिसूचना दो सप्ताह के भीतर जारी करने के लिए कहा था. निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण के चलते ही पिछले साल चुनाव प्रक्रिया पूरी नहीं हो पाई थी. सरकार और विपक्ष दोनों ही निकाय चुनाव में ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण देने के पक्ष में है. लेकिन, सुप्रीम कोर्ट की ट्रिपल टेस्ट की शर्त के चलते यह लागू नहीं हो पा रहा है. मध्यप्रदेश में ओबीसी को चौदह प्रतिशत आरक्षण पहले से ही दिया जा रहा था. यह आरक्षण पचास प्रतिशत की सीमा में है. इस कारण सुप्रीम कोर्ट ने अभी आरक्षण को बरकरार रखा है. निकाय चुनाव में बड़ा मुद्दा भी आरक्षण ही बनता दिखाई दे रहा है. सुप्रीम कोर्ट द्वारा चौदह प्रतिशत आरक्षण को जारी रखने को बीजेपी अपनी बड़ी राजनीतिक जीत मान रही है.
दोहरी व्यवस्था से बड़े शहरों में जीत का भरोसा ज्यादा
नगरीय निकाय के चुनाव में दोहरी प्रणाली लागू किए जाने को लेकर भारतीय जनता पार्टी के नेताओं के पास बताने के लिए कोई ठोस कारण नहीं है. लेकिन, बीजेपी ने दोहरी व्यवस्था का जोखिम पिछले विधानसभा चुनाव के नतीजों को ध्यान में रखकर उठाया है. पिछले विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी लगातार चौथी बार सरकार बनाने से चूक गई थी. कांग्रेस की पंद्रह साल बाद सरकार में वापसी हुई थी. कांग्रेस की सरकार में वापसी के लिए छोटे शहरों की भूमिका महत्वपूर्ण रही थी. राज्य में विधानसभा की कुल 230 सीटें हैं. जबकि लोकसभा की 29 सीटें हैं. बीजेपी ने लोकसभा 28 सीटें जीती थीं. जबकि विधानसभा चुनाव में उसे 109 सीटों से संतोष करना पड़ा था. राज्य के जिन सोलह शहरों में नगर निगम अस्तित्व में है, उनके लोकसभा चुनाव के परिणाम अक्सर भारतीय जनता पार्टी में रहते हैं. इन शहरों में भोपाल, इंदौर ग्वालियर, जबलपुर, उज्जैन, मुरैना, खंडवा, बुरहानपुर, देवास, सागर आदि का शहरी वोटर मजबूती से बीजेपी के पक्ष में रहता है. जबकि नगर पालिका और नगर पंचायत में स्थिति बदलती रहती है.
सिंधिया समर्थक की दावेदारी कमजोर करने की रणनीति?
नगर पालिका के लिए अलग और नगर निगम के लिए अलग कानून की दोहरी व्यवस्था को लागू करने से पहले बीजेपी में लंबा विचार मंथन चला. भारतीय जनता पार्टी की चिंता नगर पालिका और नगर पंचायत चुनाव के टिकट वितरण के बाद उभरने वाले असंतोष को लेकर ज्यादा दिखाई दे रही है. बीजेपी का आंतरिक अनुमान यह है कि नगर पालिका और पंचायत चुनाव में टिकट के दावेदार अपेक्षाकृत अधिक होगें. वे लोग भी अध्यक्ष पद के लिए टिकट की दावेदारी जताएंगे जो कि ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आए हैं. ऐसे लोग नगर पालिका और नगर पंचायत क्षेत्र में अधिक हैं.
नगर निगम क्षेत्र में डैमेज कंट्रोल करना भी आसान है. नगर पालिका और नगर पंचायत क्षेत्र में अप्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली का रास्ता अपनाकर बीजेपी ने सीधे अध्यक्ष पद की दावेदारी जताने वाले लोगों की संख्या सीमित कर दी है. नई व्यवस्था में अध्यक्ष बनने के लिए पहले पार्षद बनना जरूरी है. परिषद में पार्टी का बहुमत आने के बाद अध्यक्ष तय करना ज्यादा मुश्किल नहीं होगा. बहुमत के लिए कहीं दलबदल भी कराना पड़ा तो अध्यक्ष पद का प्रस्ताव भी दिया जा सकता है. राज्य में विधानसभा के चुनाव अगले साल के अंत में होना है.
सोर्स -tv9hindi.com