सामाजिक, राजनीतिक तथा शैक्षिक स्तर का ह्रास हुआ है। दोष केवल शिक्षा जगत तथा शिक्षकों के माथे मढ़ दिया जाता है। शिक्षा व्यवस्था, शिक्षा अधिकारियों, शिक्षा प्रशासन तथा शिक्षकों को पतन तथा स्तरहीनता के लिए जिम्मेदार ठहरा दिया जाता है। हालांकि सामाजिक मूल्यों में गिरावट के अन्य के कारण भी निश्चित रूप से रहते हैं जिसमें समग्र जीवन में मूल्यों का पतन हुआ है। ऐसा इसलिए होता है कि समाज शिक्षकों से बहुत ही अपेक्षा रखता है। शिक्षक के ऊपर समाज निर्माण तथा राष्ट्र निर्माण की जिम्मेदारी रहती है। जीवन परिवर्तनशील है। सामाजिक, राजनीतिक आर्थिक, सांस्कृतिक, भौतिक, वैचारिक परिवर्तन सभी पर समान रूप से प्रभाव डालते हैं। स्वाभाविक है कि शिक्षक भी इन परिवर्तनों के प्रभाव से नहीं बच सकता। व्यावसायिक दृष्टि से शिक्षा उत्तरदायित्व तथा एक गंभीर विषय तथा का विषय है। शिक्षा क्षेत्र जनता के कल्याण के साथ बच्चों, अभिभावकों, समाज, राष्ट्र तथा मानवता के लिए जवाबदेह हैं। शिक्षक कभी भी अपने उद्देश्यों की प्राप्ति से विमुख नहीं हो सकता। शिक्षक की कोई भी लापरवाही भविष्य निर्माण पर भारी पड़ सकती है, इसलिए शिक्षा को एक गंभीर व्यवसाय माना जाता है।
शिक्षकों से सामाजिक अपेक्षाएं बढ़ चुकी हैं। वर्तमान में ज्ञान प्रेषण के माध्यम बदल चुके हैं। संचार तथा तकनीकी क्रांति ने दुनिया के ज्ञान का आकार सीमित कर दिया है। ज्ञान पुस्तकों से निकलकर संचार यंत्रों में प्रवेश हो चुका है। वर्तमान में जो ज्ञान शिक्षक बच्चों को दे रहा है, हो सकता है संचार क्रांति के कारण बच्चों को पहले से ही पता हो, इसलिए शिक्षकों को वर्तमान परिस्थितियों में जागरूक तथा दुनिया की घटित हो रही जानकारियों से प्रत्येक क्षण परिचित रहना होगा। यह सत्य है कि कोई भी संचार माध्यम शिक्षा का विकल्प नहीं हो सकता। शिक्षण-प्रशिक्षण में कक्षा कक्ष, पाठशाला के शैक्षिक वातावरण तथा शिक्षक के अनुभव की एक महत्त्वपूर्ण भूमिका रहती है। एक कुशल शिक्षक को यह भी जानना होगा कि इस ज्ञान की तीव्र प्रेषण गति में वह कहीं पीछे न रह जाए। शिक्षक को अपने ज्ञान, अनुभव एवं जागरूकता से विद्यार्थियों, अभिभावकों तथा समाज पर अपना प्रभाव बनाकर श्रेष्ठ रूप में प्रस्तुत करना ही होगा। शिक्षक समाज में नेतृत्व प्रदान करता है। यह नेतृत्व राजनीतिक नहीं, बल्कि ज्ञान का नेतृत्व होता है। शिक्षक को अपने चरित्र तथा आचरण से व्यवसाय के लिए लोगों में विश्वास पैदा करना चाहिए। अध्यापक का चरित्र उदाहरणीय एवं अनुकरणीय होना चाहिए। उसका वार्तालाप, आचरण, व्यवहार, परिधान, चरित्र, ज्ञान तथा नेतृत्व उच्च श्रेणी का होना चाहिए।
शिक्षक को विद्यार्थियों, उनके अभिभावकों तथा समाज में अपने प्रति मान-सम्मान व श्रद्धा का भाव पैदा करना चाहिए। यह तभी संभव है जब वह कर्मठता, ईमानदारी तथा समर्पित भाव से अपना शिक्षण कार्य करेगा। शिक्षण एक बहुत ही पुनीत व्यवसाय है। शिक्षक विद्यार्थियों का शिक्षण, प्रशिक्षण तथा मार्गदर्शन से जीवन निर्माण करता है। शिक्षक होना सौभाग्य की बात है। इस व्यवसाय को अपनाकर गौरवान्वित महसूस करना चाहिए। वर्तमान समय में शिक्षकों के लिए चुनौतियां भी कम नहीं हैं। समाज की हर व्यक्ति तथा वर्ग की दृष्टि हर समय शिक्षक पर रहती है। समय-समय पर उसे कई तानें, फब्तियां, बातें सुनने पड़ती हैं। उस पर कटाक्ष किए जाते हैं। उसके ऊपर व्यंग्य बाण चलाए जाते हैं जिससे कई बार उसका मनोबल भी टूटता है। शिक्षक की भूमिका बहुत ही विशाल होती है। उसे कक्षा से बाहर निकलकर कई कार्य करने पड़ते हैं। विशेष परिस्थितियों में उसे शिक्षण के अतिरिक्त चुनाव कार्य, जनगणना, टीकाकरण, सर्वेक्षण, ठीकरी पहरे आदि अनापेक्षित कार्य करने पड़ते हैं। शिक्षक को हर समय, स्थान तथा स्थिति में कई कसौटी पर अपने आप को खरा साबित करना पड़ता है।
समाज के सभी वर्गों से यह आशा की जा सकती है कि वे अपने बच्चे के जीवन निर्माता पर विश्वास कर उनका सम्मान करें, तभी कल्याण संभव है। शिक्षक दिवस महान तपस्वियों, ऋषि-मुनियों, गुरुओं तथा दार्शनिकों को याद करने का दिन होता है। शिक्षक दिवस मात्र एक दिन की औपचारिकता का उत्सव नहीं है, बल्कि जीवन में शिक्षकों की भूमिका, समर्पण एवं त्याग को अनुभूत कर उनके प्रति धन्यवाद तथा कृतज्ञता ज्ञापित करने का अवसर है। शिक्षक दिवस आत्ममंथन, आत्मचिंतन, आत्म-विश्लेषण करने का दिन होता है। शिक्षकों को अपने अमूल्य व्यवसाय पर गौरवान्वित महसूस करना चाहिए। शिक्षक दिवस शिक्षा की ज्योति को निरंतर प्रकाशित करने का संकल्प दिवस होता है। शिक्षकों को कर्मठता, ईमानदारी तथा समर्पित भाव से कार्य करने का संकल्प लेकर महान गुरुओं की परंपरा को अपने व्यवहार तथा कार्यों से श्रेष्ठता के शिखर पर स्थापित करने का प्रयास करना चाहिए। ज्ञान का व्यवहार तो अनवरत सृष्टि काल तक चलता रहेगा, परंतु शिक्षा के आदर्शों तथा मानकों को तो शिक्षक ही स्थापित कर सकता है।
प्रो. सुरेश शर्मा
लेखक घुमारवीं से हैं