सुनो, बांके बिहारी जी
बांके बिहारी जी का मुहल्ला आपके मुहल्ले की ही तरह एक से एक घाघ स्मार्ट सिटीजनों से भरा पड़ा है खचाखच
बांके बिहारी जी का मुहल्ला आपके मुहल्ले की ही तरह एक से एक घाघ स्मार्ट सिटीजनों से भरा पड़ा है खचाखच। जितने गड्ढे उनके मुहल्ले की सड़क में नहीं, उससे अधिक स्मार्ट सिटीजन उनके मुहल्ले में हैं, बरसात न होने के बाद भी कीचड़ से भरे चकाचक गड्ढों की तरह। वैसे जबसे देश आजाद हुआ है, तबसे देश के सिटीजन तो शरीफ लोगों को छोड़ कर कुत्ते सियार, गीदड़ भी हो गए हैं जनाब! अब जब उन्हें गलती से जो दुत्कारने लगो तो वे भी इधर-उधर शेखी बघारते अपना असली वाला आधार कार्ड बताते इतराते अपनी कमर मटकाते कहते हैं, काहे को डिस्टर्ब कर रहे हो हमें? जितना हक तुम्हारा इस मुहल्ले पर है बांके बिहारी जी, उससे कहीं अधिक हक हमारा है। हम न हों तो आपका चोरी चोरी दूसरों के घर के आगे फेंका कूड़ा आपके द्वार तक आ जाए। असल में जब किसी को रंच भर भी आजादी मिलती है तो वह सबसे पहले सभ्य नागरिक से स्मार्ट सिटीजन बनता है। उसके बाद उसे कुछ और बनने की जरूरत नहीं होती। सुनो बांके बिहारी जी! औरों को तो छोडि़ए, जिन्हें कल तक हम घुसपैठिए कह कर बदनाम किया करते थे, आज वही सिटीजन होकर गलियों कूचों में सम्मान पा रहे हैं। गर्व से सिर ऊंचा किए सगर्व इधर उधर मुस्कुराते हुए अघिया पदिया रहे हैं। जैसे पूरे मुहल्ले में बसियाने का मौलिक अधिकार केवल उनके कंधों पर ही हों। अरे स्मार्ट सिटीजनों जी! आप ही यत्र तत्र सर्वत्र कूड़ा पाओगे क्या? आप ही मुहल्ले में होने वाले थोड़े बहुत विकास को बड़ी स्मार्टनेस से अपने घर के आगे ही बिछाओगे क्या? कुछ तो असली मुहल्लेवासियों को भी पाने को छोड़ दो। बड़ी मेहरबानी होगी आपकी। वैसे बांके बिहारी जी! जिधर देखो, ऐसे स्मार्ट सिटीजन साधारण सिटीजनों से अधिक ऊंची आवाज में मुंह में स्ट्रेपसिल घुमाते मुहल्ले का मुहल्ला गीत गा रहे हैं।
एक ही छत के नीचे रहकर बड़ी स्मार्टनेस के साथ एक ही परिवार को दो टुकड़ों में कर दो-दो राशनकार्डों पर अंधी सरकार का पीसा खा रहे हैं। और पूरी ईमानदारी से कदम कदम पर कहते फिरते हैं- हम तो इस मुहल्ले के मॉडल सिटीजन हैं जनाब! हम न होते तो ये मुहल्ला मुहल्ला न होता। ये देश देश न होता। भगवान बचाए ऐसे सच्चे सिटीजनों से इस देश को तो उसकी थाली में भी उसके पेट के लिए कुछ रूखा सूखा बचे। वैसे बांके बिहारी जी! आप भरे पूरे आदमी होने के बाद भी मानिएगा या नहीं, पर आज का जमाना कोरे सिटीजनों का जमाना नहीं, स्मार्ट सिटीजनों का जमाना है। मारधाड़ का जमाना है। उठाक पछाड़ का जमाना है। हेराफेरी का पता लगने पर दांत निपोरने के बदले हाथ निचोडऩे का जमाना है। अत: देश हित में आप अपना दिल तलैय्या बनाए सबको पेंट की जिप खोल खोल दिखाते रहिए और जभी दांव लगे तो उसके हकदारों को उसकी खबर की भनक लगने से पहले ही उसका सारा माल खाते रहिए।
सुनो बांके बिहारी जी! आज का देशकाल अपनी इंसानियत छुपाने का नहीं, अवसर मिलते ही अपनी औकात बताने का है। वह स्मार्ट सिटीजन ही क्या जो मुंह से मुहल्ले की बेहतरी की दूसरों पर थूक थूक कर बात न करे और जब मुहल्ले में बेहतरी गलती से होने लगे तो उसे अपने घर ले जाए। जैसे मुहल्ले भर के गड्ढे मुहल्ले की सड़कों में नहीं, उसके घर के गड्ढे के भीतर हुए अब इन समार्ट सिटीजनों को कौन समझाए कि अपने आसपास की सफाई तो अपनी पूंछ हिलकार कुत्ते भी कर लेते हैं तो फिर…जो स्मार्ट नहीं, वह सिटीजन पचासियों बार हो, उसे गधा भी नहीं पूजना तो दूर, नहीं पूछता। समाज में स्मार्टों की इतनी महत्ता के बाद भी बांके बिहारी जैसे गधे स्मार्ट तो क्या, बेसिक से सिटीजन भी न हुए। पता नहीं क्यों?
अशोक गौतम
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