हमारे शहरों में जीवन

चमकदार भारतीय शहरों में शुमार बेंगलुरु में जीवन का सबसे सुगम होना जितना सुखद है, उतना ही अनुकरणीय भी।

Update: 2021-03-05 00:40 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेसक | चमकदार भारतीय शहरों में शुमार बेंगलुरु में जीवन का सबसे सुगम होना जितना सुखद है, उतना ही अनुकरणीय भी। गुरुवार को जारी 'ईज ऑफ लिविंग इंडेक्स' अर्थात सुगम जीवन सूचकांक 2020 में पुणे को दूसरा और अहमदाबाद को तीसरा स्थान मिला है। इस बार देश के 111 शहरों में जीवन की सुगमता का आकलन किया गया। इस आकलन में जीवन की गुणवत्ता, सेवाओं की स्थिति, स्थिरता, आर्थिक क्षमता, प्रशासन, योजना, तकनीक और लोगों की राय को आधार बनाया गया था। दस लाख से ज्यादा आबादी के शीर्ष 10 शहरों में क्रमश: चेन्नई, सूरत, नवी मुंबई, कोयम्बटूर, वडोदरा, इंदौर, ग्रेटर मुंबई भी शामिल हैं। 10 लाख से ज्यादा आबादी के सुगमतम शहरों में उत्तर भारत के शहरों का न होना अगर किसी को चुभता हो, तो आश्चर्य नहीं। हालांकि, 10 लाख से कम आबादी के सुगम शहरों की सूची में शिमला ने शीर्ष पर रहते हुए और गुरुग्राम ने आठवें स्थान पर रहकर उत्तर भारत के मान की रक्षा की है। कुल मिलाकर, 10 लाख से कम आबादी वाले शहरों में भी उत्तर भारत के हमारे शहर पिछड़ गए हैं। साफ है, शहरों के विकास के लिए उपयोगी यह सूचकांक एक मूल्यांकन उपकरण है, जो जीवन की गुणवत्ता व शहरी विकास के प्रयासों का मूल्यांकन करता है। इस सूचकांक में आखिर कहां रह गए हमारे शहर? दिल्ली 13वें स्थान पर रही, तो उत्तर प्रदेश में लखनऊ 26वें, वाराणसी 27वें, कानपुर 28वें, गाजियाबाद 30वें और प्रयागराज 32वें स्थान पर रहा। पटना 33वें स्थान पर रहा, तो रांची 42वें पर। मतलब, उत्तर भारत के ये शहर जीवन की सुगमता के मामले में एक-दूसरे के आसपास ही हैं। रांची के लिए तो विशेष प्रयास की जरूरत है और उस धनबाद के लिए भी, जो 48वें स्थान पर है। यह बात बिल्कुल सही है कि उत्तर भारत के शहरों को आबादी की मार कुछ ज्यादा ही झेलनी पड़ती है और उसी हिसाब से सुविधाओं पर भी असर पड़ता है, लेकिन यह बात प्रथम दृष्टि में ही सही है। जीवन की सुगमता के मामले में जो शहर अव्वल आए हैं, उन पर भी तो आबादी का बोझ है, तो वास्तव में, उत्तर भारत के शहरों के सामने शहरी विकास सीखने के लिए बहुत से पहलू हैं। सूचकांक में इस्तेमाल पैमानों को देखें, तो उत्तर भारत के शहरों की सबसे बड़ी कमी उनकी कमजोर आर्थिक क्षमता है। मिसाल के लिए, देश के शीर्ष शहर बेंगलुरु का आर्थिक क्षमता अंक 78.82 हैै, जबकि रांची का महज 6.88, लखनऊ का 10.05 और पटना का 24.61 है। कमजोर आर्थिक क्षमता संकेत है कि ये शहर न पर्याप्त रोजगार दे पा रहे हैं और न धन-संसाधन के मामले में तेजी से आगे बढ़ पा रहे हैं। पर्याप्त रोजगार सृजन से जीवन का स्तर सुधरता है और शहरों में जीवन आसान भी होता है। गौरतलब बात है कि जीवन की गुणवत्ता में लखनऊ, पटना, रांची भी बेंगलुरु से बहुत पीछे नहीं हैं। कुल मिलाकर, हमारे शहरों के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है, बुनियादी सेवाओं और आर्थिक क्षमता में सुधार। दिलचस्प बात है कि उत्तर भारत के लोगों की अपने शहरों के बारे में धारणा बहुत अच्छी है, लेकिन लोगों की राय मात्र से हमारे शहर सुगम जीवन सूचकांक में ऊपर नहीं आ जाएंगे। अपने शहर में सबके लिए जीवन को आसान बनाना है, जो हर एक शहरवासी को अपना दायित्व निभाना होगा।


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