Kolkata: बंगाल की अस्मिता से जुड़ा है कोलकाता, भारत की सांस्कृतिक राजधानी भी कहा जाता है
पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता को भारत की सांस्कृतिक राजधानी कहा जाता रहा है। हालांकि कितने लोग आज भी इसे यह विशेषण देंगे, कहना मुश्किल है। मगर, यहां कुछ चीजें ऐसी हैं, जिसके बारे में टिप्पणी करने से पहले काफी सोच-विचार करना चाहिए। ये हैं बंगाल की पांच 'होली काउ' (पवित्र गायें)- रवींद्रनाथ टैगोर, कोलकाता, सत्यजित राय, सुभाष चंद्र बोस और फुटबॉल टीम मोहन बागान।
आज से 17 साल पहले दिवंगत खुशवंत सिंह ने शिलांग में एक कार्यक्रम में कहा था कि रवींद्रनाथ टैगोर की महानता का पता उन्हें तब चला, जब उन्होंने उनके साहित्य का अंग्रेजी अनुवाद पढ़ा। यह बयान बोलने की आजादी के खांचे में आता है, पर इसे लेकर बहुत बवाल हुआ। लोगों के बयानों को छोड़िए, विधानसभा और राज्यसभा में आम राय से निंदा प्रस्ताव पारित किया गया। उस समय राज्य में वाम मोर्चा और केंद्र में यूपीए की सरकारें थीं।
अब एक दूसरी गाय को बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने छेड़ दिया है। वैसे उनके और राज्य सरकार के बीच बहुत सारे मुद्दों पर विवाद चल रहा है, पर हाल में उन्होंने कहा कि कोलकाता, जिसे सिटी आफ जॉय के रूप में जाना जाता है, अब सेवानिवृत्त लोगों का शहर बन गया है। उनके मुताबिक लोग वस्तुतः सांविधानिक शासन की चट्टान पर लटके हुए हैं और उन्हें पीड़ा हो रही है। बयान के अंतिम वाक्य ने सरकार को जैसे वेध दिया, क्योंकि उनका यह बयान राज्य में कानून का शासन नहीं, शासक का कानून चल रहा है, की ओर इंगित करता है। यह टिप्पणी हाई कोर्ट के आदेश पर बंगाल में चुनाव बाद हिंसा की जांच करने आई राष्ट्रीय मानवाधिकार की टीम ने अपने निष्कर्ष में कही थी। महामहिम ने कहा कि महान प्रतिभा, विशेषज्ञता और तकनीकी ज्ञान वाले कोलकातावासी अन्य स्थानों में जाने के लिए मजबूर हैं।
तृणमूल सांसद शांतनु सेन ने राज्यपाल को भाजपा का मुखपत्र बताते हुए कहा कि उन्हें लगता है कि शहर रहने लायक नहीं है, तो उन्हें राज्य छोड़ देना चाहिए और वह अपनी पसंद की जगह जा सकते हैं, मगर कोलकाता को बदनाम न करें। अभिनेता कौशिक सेन ने राज्यपाल से अपनी टिप्पणी वापस लेने की मांग की, क्योंकि यह राजनीतिक बयान है और इससे कोलकाता के लोगों का अपमान होता है। बात कोलकाता की हो रही है, जिसे पहले कलकत्ता कहा जाता था। यह वर्ष 1772 में ब्रिटिश शासन के दौरान भारत की राजधानी था। 24 अगस्त, 1686 को जॉब चारनॉक, जिसे कलकत्ता का संस्थापक माना जाता है, पहली बार एक कारखाना स्थापित करने के लिए ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के प्रतिनिधि के रूप में सुतानटी गांव आया था। अंग्रेजों ने 1911 में राजधानी को कलकत्ता से दिल्ली स्थानांतरित कर दिया। अनुमान है कि आज इस शहर की आबादी 50 लाख से अधिक है। इस बोझ के कारण शहर की बुनियादी सुविधाओं पर दबाव बढ़ा है।
2011 में सत्ता में आने के बाद मुख्यमंत्री ममता ने कोलकाता को लंदन जैसा खूबसूरत बनाने का वादा किया। काम भी शुरू हुआ। दीदी ने दशकों की लड़ाई के बाद लाल दुर्ग गिराया था और यह रंग खटक रहा था। उन्होंने पुलों की रेलिंगों व सरकारी भवनों को नील-सादा रंग से रंगने का काम शुरू किया। आज लगभग यह काम पूरा हो गया है। हुगली नदी के किनारे मिलेनियम पार्क बना है, पर बाकी तटों का सुंदरीकरण बाकी है। मानसून कोलकाता को डुबा देता है, क्योंकि सीवर लाइनें अंग्रेजों के जमाने की हैं। इसमें भी राजनीति होती है। सुरक्षा का आलम यह है कि दो जुलाई की रात करीब एक बजे मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के कालीघाट वाले आवास की रेलिंग फांदकर एक अनजान आदमी घुस गया। रविवार की सुबह उसे एक खड़ी गाड़ी के पास सोते हुए पाया गया!
हाल ही में तृणमूल के एक विधायक निर्मल मांझी ने ममता बनर्जी को मां शारदा का अवतार बता दिया। उनके मुताबिक मां शारदा की मृत्यु से कुछ दिन पहले स्वामी विवेकानंद ने संन्यासियों से कहा था कि वह कालीघाट मंदिर जा रहे हैं। हरीश चटर्जी स्ट्रीट पर जिस सड़क पर दीदी का घर है, वह उसी रास्ते से जाते थे। निर्मल मांझी के बयान से रामकृष्ण मठ और मिशन नाराज हो गया और कहा कि इस बयान से शारदा देवी का अपमान हुआ है। दरअसल कोलकाता के मशहूर मेडिकल कॉलेज अस्पताल में कार्डियोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉक्टर भवानी प्रसाद ने पत्र लिखकर तृणमूल विधायक और रोगी कल्याण समिति के चेयरमैन निर्मल मांझी पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया था। आरोप है कि अस्पताल से 202 स्टेंट गायब हैं और निर्मल मांझी उन पर दबाव बना रहे हैं कि इसकी जिम्मेदारी लें। इसके बाद दीदी ने मांझी को चेयरमैन पद से हटा दिया।
इधर हालात बदले हैं, इसमें कोई शक नहीं। जो ममता जय श्रीराम के नारे से चिढ़कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी वाले समारोह में भाषण देने से इनकार कर देती हैं, वही अब विधानसभा में यह नारा नियमित सुनती हैं। कोलकाता आज भी एक खूबसूरत गांव लगता है। गांव जैसी जिंदादिली दिखती है, यहां आज भी। भोजपुरी व अवधी लोकगीतों में कोलकाता को सौत के रूप चित्रित किया गया है, जो सुहागिनों के बालम को बुला लेती थी। बाबू घाट की बैठकियां जस की तस हैं। राजीव गांधी ने एक बार कोलकाता को मरता हुआ शहर कहा था, पर मैं इसमें अमरत्व जितना जीवन देख रहा हूं।
सोर्स: अमर उजाला