किशन कपूर ने कितना कहा
सांसद किशन कपूर के सार्वजनिक कथन पर उबलते पंचायत सचिवों की पीड़ा समझी जाए या उस यथार्थ को याद किया जाए जिसे देखते
सांसद किशन कपूर के सार्वजनिक कथन पर उबलते पंचायत सचिवों की पीड़ा समझी जाए या उस यथार्थ को याद किया जाए जिसे देखते हुए 73वां संविधान संशोधन 1992 में हुआ था। यहां मसला सांसद बनाम पंचायत सचिव हो जाए, तो जनता को न्याय नहीं मिलेगा और न ही राष्ट्रीय संसाधनों का बेहतर इस्तेमाल हो पाएगा। संशोधन से पहले राष्ट्रीय धन का ग्रामीण सूर्य केवल विधायक या सांसद की इच्छा से ही निकलता था, लेकिन अब परंपरा, प्रक्रिया और पांत बदल गई है। यह सब इसलिए किया गया ताकि जवाबदेह योजनाओं के पक्ष में वातावरण बने और पारदर्शिता को बढ़ाने के लिए जनभागीदारी बढ़े। यह दीगर है कि इतने सालों बाद भी ग्रामीण उत्थान को लगा घुन खत्म नहीं हो रहा, बल्कि भ्रष्टाचार की गलबहियों में कई नए चेहरे आ गए। गांव स्तर में भ्रष्टाचार का तंत्र और संगठित एजेंट ही आधे से ज्यादा संसाधन चट कर रहे हैं, इसकी विवेचना शुुरू हुई है। कर्नाटक राज्य का एक विस्तृत अध्ययन सामने आया है और जहां पाया गया कि पंचायती राज चुनाव में कमीशनखोरी से कमाई गई दौलत किस तरह असर डाल रही है। इधर हिमाचल में भी पंचायती चुनावों में उम्मीदवारों के खर्च का हिसाब और जीत के जश्न में बंटती धाम की अदा, आखिर किन उद्देश्यों को छू रही है।
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