जैसे पेड़ों को रंग नहीं सकते, वैसे ही बच्चों को अच्छा बनाने के लिए उन्हें सिर्फ सजा नहीं सकते; उन्हें देखभाल के जरिए अच्छा इंसान बनाने की जरूरत है
इस सोमवार मैं एक स्कूल गया जहां सभी शिक्षक पंक्ति में खड़े होकर बच्चों का स्कूल के पहले दिन स्वागत कर रहे थे
एन. रघुरामन इस सोमवार मैं एक स्कूल गया जहां सभी शिक्षक पंक्ति में खड़े होकर बच्चों का स्कूल के पहले दिन स्वागत कर रहे थे। वास्तव में शिक्षक बच्चों को सजा रहे थे। कुछ ने उंगलियों से बच्चों की कंघी की, कुछ ने उनकी टाई की गांठ ठीक की, तो कुछ ने शर्ट को सलीके से स्कर्ट में डाला। वे अपने जीवित खिलौनों को सजा रहे थे। दूर से एक वीडियोग्राफर इसे कैमरे में कैद कर रहा था। शायद सोशल मीडिया पर पोस्ट करने या प्रबंधन की वाहवाही लूटने के लिए।
अपने सहपाठियों से पहली बार मिल रहे कुछ बच्चे एक-दूसरे से बात नहीं कर रहे थे। कुछ ने मुस्कुराने की कोशिश की तो कुछ शर्माते रहे। आमतौर पर बच्चे बातूनी होते हैं लेकिन यहां वे चुप्पी साधकर दोस्तों से दूरी बनाए हुए थे। खासतौर पर बच्चियां, जो इन 19 महीनों में परिपक्व हो गई थीं।
एक भी शिक्षक ऐसा नहीं था, जिसने इसपर काम किया हो और संबंध मजबूत बनाने में मदद की हो। जब एक नए शिक्षक ने छठवीं के छात्र से साधारण-सा सवाल पूछा कि वह किस सेक्शन में है, तो वह जवाब नहीं दे पाया। उसे शायद सोशल एंग्जायटी थी। मुझे पता चला कि स्कूल में ऐसा शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम नहीं है जो बच्चों के शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य तथा सामाजिक-भावनात्मक कौशल पर केंद्रित हो और न ही शिक्षकों की बच्चों से जुड़ने की क्षमता जांची जाती है।
दरअसल स्कूल ने ऑनलाइन क्लास में कुछ एडवायजरी पीरियड रखे थे, जिनमें विशेषज्ञों ने जीवन कौशल विकसित करने संबंधी विषयों पर बात की, लेकिन विशेषज्ञ स्कूल के नहीं थे, इसलिए शिक्षकों को इस क्षेत्र में प्रशिक्षण नहीं मिला। लेकिन याद रखें, अगर बच्चे सहपाठियों और शिक्षकों से संबंध मजबूत नहीं करेंगे, तो वे शायद निराशावादी बन जाएं और पेड़ों की तरह न खुलें।
पेड़ों की तरह? जी हां, पेड़ों के तनों पर सफेद लेटेक्स पेंट करने से उनका तना शाखाएं बनाने के लिए फैलता और खुलता नहीं है। बार-बार पेंट करने से उसका नसों का तंत्र खराब हो जाता है। क्या आप सोच रहे हैं कि यह कौन कर रहा है और इसका बच्चों से क्या संबंध है?
एक-एक कर जवाब देता हूं। इस हफ्ते पुणे के पास पिंपरी-चिंचवाड़ म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन ने पेड़ के तनों और शाखाओं को एक्रिलिक और आर्टिफिशियल पेंट से रंगना शुरू किया। बरगद और अन्य पेड़ों की शाआखों पर ग्रैफिटी (चित्र) बन रही हैं। वे प्रकृति को 'सुंदर बनाना' चाहते हैं, लेकिन इससे पेड़ों पर रहने वाले कई जीवों का प्राकृतिक बसेरा छिन जाएगा।
पांच करोड़ रुपए का प्रोजेक्ट 70 पेड़ों पर लाल, बैंगनी, नीला, सफेद आदि रंग कर चुका है। हर पेड़ में कई कीड़े और पक्षी रहते हैं। पेंट से वे पेड़ों की मौजूदगी नहीं सूंघ पाएंगे। गिरगिट और छिपकली जैसे सरीसृप भ्रमित होंगे। पेंट की बदबू से पक्षी भी घोंसला बनाना बंद कर देंगे।
मेरे लिए हमारे बच्चे इन खूबसूरत पेड़ों की तरह हैं। पेड़ों का तना फटता है और उससे नई शाखाएं निकलती हैं। बच्चे भी बड़े होकर विभिन्न बिजनेस बनाते हैं। पेड़ विभिन्न जीवों को आसरा देता है। बच्चे बेरोजगारों को नौकरियां देंगे। पेड़ जलवायु बेहतर बनाते हैं। बच्चे पेशेवर बन वित्तीय मौसम बेहतर करते हैं। क्या होगा जब पेंट की वजह से पेड़ों की सांस उखड़ने लगेगी? आप सुंदरता के नाम पर आने वाला पारिस्थितिकी विध्वंस को देख सकते हैं।