जन्माष्टमी विशेषः जीवन में धर्म, कर्म और प्रेम का समन्वय करना सिखाते हैं 'श्री कृष्ण'
द्वापर युग में भादों मास की अष्टमी तिथि को काली घनेरी अर्धरात्रि में भगवान विष्णु के आठवें अवतार के रुप में श्री कृष्ण कंस की बहन देवकी के गर्भ से जन्म लिया
शशि सिंह। द्वापर युग में भादों मास की अष्टमी तिथि को काली घनेरी अर्धरात्रि में भगवान विष्णु के आठवें अवतार के रुप में श्री कृष्ण कंस की बहन देवकी के गर्भ से जन्म लिया। इसी उपलक्ष्य में हर वर्ष लोग जन्माष्टमी का त्योहार मनाते हैं। भगवान श्री कृष्ण को देवकी नंदन, बांके बिहारी, नंदलाल, कन्हैंया, गोपाल, केशव, वासुदेव, और द्वारिकाधीश आदि नामों से जाना जाता है।
सनातन धर्म में भगवान कृष्ण को ईश्वर के रूप में पूजा जाता है, लेकिन वे केवल ईश्वर के रूप में पूजनीय नहीं हैं, बल्कि उनका संपूर्ण व्यक्तित्व जीवन में आपको धर्म, कर्म, प्रेम और रिश्तें सभी में समन्वय करना सिखाता है। अगर मनुष्य उनको केवल पूजने के बजाए उनके जीवन से प्रेरणा ले तो वह जीवन में हर क्षेत्र में पार पा सकता है।
श्री कृष्ण एक नाम नहीं अपितु एक कर्मयोगी, आदर्श दार्शनिक, और इस युग के युगपुरुष थे, यही कारण है कि केवल सनातन धर्म नहीं संपूर्ण विश्व में भगवान कृष्ण के अनुयायी हैं।
सच्चे अर्थों में लोकनायक हैं भगवान श्री कृष्ण
भगवान कृष्ण एक विलक्षण महानायक हैं, उन्होंने अपने बाल्यकाल से ही लीलाएं दिखाना आरंभ कर दी थी। उनकी हर एक लीला में विरोधाभास नजर आता है, जो साधारणतः समझ से परे है।
जहां ज्ञानी से परम ज्ञानी भी उनको वेद-पुराणों और ऋचाओं में नहीं खोज पाते हैं तो वहीं साधारण मनुष्य केवल प्रेम भावना से उन्हें प्राप्त कर लेता है। यही तो उनके व्यक्तित्व की विलक्षणता है कि उन्होंने संपूर्ण मानवजाति को जो शिक्षण केवल अपनी मोहक लीलाओं और उपदेशों से जो अमूल्य ब्रह्म ज्ञान दिया, उसे किसी भी महान लेखनी द्वारा भी नहीं बांधा जा सकता है।
वे ईश्वर होते हुए भी सभी के अत्यधिक करीब हैं, वे अत्यंत मानवीय हैं। उनका पूरा जीवन अद्भुत लीलाओं से भरा हुआ था लेकिन सही मायने में उनका व्यक्तित्व सदैव एक सखा की तरह रहा। वे यमुना किनारे गइया चराते, ग्वालों के संग शरारते करते और गोपियों संग रास भी रचाते। दैवीय शक्तियों से परिपूर्ण होते हुए वे सच्चे अर्थों में लोकनायक हैं।
धर्म का मार्ग दिखाते हैं श्री कृष्ण
भगवान श्री कृष्ण के चरित्र का वर्णन उनके समकालीन ऋषि वेदव्यास द्वारा रचित महाभारत में मिलता है जिसका एक भाग श्रीमद्भगवद गीता के रूप में उद्धृत हैं। श्रीमद्भगवतगीता में भगवान कृष्ण और अर्जुन के बीच का संवाद है जो ने केवल महाभारत के युग में बल्कि आज युगों के बाद कलयुग के समय में भी मनुष्यों को धर्म के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है। यही कारण है कि भगवान के श्री मुख से निकले इन शब्दों श्रीमद्भगवदगीता में पिरोया गया है, न केवल सनातन धर्म में बल्कि संपूर्ण विश्व में इसे महान ग्रंथ के रूप में जाना जाता है।
अर्जुन को भगवान कृष्ण ने जीवन का रहस्य और धर्म व कर्म को इतनी सरलता से समझाया जो कोई और महापुरुष नहीं कर सकता। श्री कृष्ण एक आलौकिक और अद्भुत व्यक्तित्व के धनी थे।
जन्माष्टमी के अवसर पर भगवान कृष्ण के लिए उपवास कर या फिर केवल फल, फूल और नैवेद्य अर्पित कर उन्हें नहीं पूजना चाहिए अपितु उनके दिखाए मार्ग को अपनाना चाहिए।
प्रेम की प्रतिमूर्ति हैं श्री कृष्ण
प्रेम का सही अर्थ और सच्चे प्रेम की अनुरक्ति क्या होती है ये भगवान कृष्ण के संपूर्ण व्यक्तित्व से छलकता है। जहां भगवान कृष्ण ने देवकी की कोख से जन्म लेकर उन्हें धन्य किया तो वहीं ईश्वर होते हुए भी मां यशोदा के वात्सल्य को हमेशा के लिए अमर कर दिया। उन्होंने अपनी लीलाओं से ब्रज को धन्य किया, तो अपनी मित्रता से ग्वाल-बालों और सुदामा को धन्य किया।
अपनी नटखट लीलाओं से ब्रज की सभी माताओं को मातृप्रेम से सरावोर किया, तो वहीं रासलीला रचाकर गोपियों को प्रेम की बयार से धन्य किया। वे मटकी फोड़ने वाले नटखट तो गोपियों के चितचोर हैं।
जहां अर्जुन के लिए मार्गदर्शक हैं तो वहीं द्रोपदी के लिए एक सखा और भ्राता भी हैं। जहां कृष्ण गहराई में ब्रह्म ज्ञान हैं, तो वे सरलता में केवल भाव हैं, जिन्हें ज्ञानी-ध्यानी महापुरुष खोजते हुए पराजय स्वीकार कर लेते हैं तो वहीं वे ब्रजभूमि में राधारानी के चरणों के दबाते हुए भी प्राप्त हो जाते हैं।
जहां प्रेमी के रुप में भगवान कृष्ण ने राधारानी के प्रेम को अमर कर दिया तो वहीं पति के रुप में उन्होंने रुक्मणी के जीवन को धन्य किया। ये उनके प्रेम की अनुरक्ति ही तो थी जो मीरा उनकी दीवानी हो गई।
कलयुग में भी हर रूप में प्रेम बरसाते हैं कृष्ण
कलयुग में भी जहां कृष्ण को बाल रुप में पूजा जाता है तो माताएं मातृत्व का सुख प्राप्त करती हैं। तो वहीं उन्हें युवा एक सखा के रुप में पूजते हैं, तो वहीं राधा कृष्ण को प्रेमी प्रेम की भावना को मन में लेकर पूजते हैं।
विलक्षण व्यक्तित्व हैं कृष्ण
भगवान कृष्ण की तुलना संसार के किसी भी महापुरुष से नहीं की जा सकती। संसार के कल्याण के लिए उन्होंने पृथ्वी पर जन्म लिया। वे मृत्यु से परे हैं फिर भी उन्होंने मृत्यु का वरण किया।
सर्वशक्तिमान और सभी बंधनों से परे हैं फिर भी बंदी गृह में जन्में हैं। उनका व्यक्तित्व बहुआयामी, बहुरंगी है। उनमें बुद्धिमत्ता, आकर्षण और प्रेम भाव सबकुछ है। जहां वे युद्धनीति के कुशल, तो राजनीति और कूूूटनीति के ज्ञाता थे तो वहीं दूसरी ओर वे दर्शन के प्रकांड पंडित भी थे। ज्ञान, कर्म, भक्ति, प्रेम और धर्म के समन्वयक हैं 'श्री कृष्ण'.
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