नीदरलैंड की रेडबाउंड यूनिवर्सिटी के जेम्स ट्रुजिलो ने कई प्रतिभागियों के हाव-भाव व बातचीत के पहलू पर निगरानी

सुबह सैर में मेरे साथ ऐसा कई बार हो चुका है

Update: 2022-04-16 10:37 GMT

एन. रघुरामन 

सुबह सैर में मेरे साथ ऐसा कई बार हो चुका है। मुझे याद नहीं कि कितनी बार मैंने राह चलते किसी को कहा हो, 'आपको फोन की जरूरत क्या है? सिर्फ बोलिए, आपकी आवाज इतनी तेज और अच्छी है कि इस ओर कन्याकुमारी और दूसरी ओर कश्मीर तक चली जाएगी।'
चहलकदमी करते हुए मैं पक्षियों की आवाज या प्रकृति से आ रही अनजानी-अनसुनी ध्वनियों पर ध्यान देता हूं। पर अपने फोन से ऐसे लोग मेरी योजना बिगाड़ देते हैं। और हर बार मेरी टिप्पणी सुनकर पहले तो वो शख्स अपनी बड़ी-बड़ी आंखें दिखाएगा और फिर मुझे नजरअंदाज करने के बाद दूर जाते हुए उतनी ही ऊंची आवाज में बात करना जारी रखेगा।
अगर आपको मेरी बात पर भरोसा नहीं तो पहले माले पर घर की बालकनी से राह चलते किसी को फोन पर बात करते हुए देखिए। आप उसका हर शब्द सुनेंगे, जब वो कहता है कि 'किसी को मत कहना कि मैंने तुम्हें बताया है!' मैंने तो युवकों को सिर्फ उन्हें परेशान करने के लिए कमेंट करते सुना है कि 'मुझे पता है कि तुम्हीं ने बात उजागर की है।'
दिलचस्प रूप से अब वैज्ञानिकों ने पता लगा लिया है कि फोन पर बात करते हुए हम क्यों ऊंचा बोलते हैं या अपने हाव-भाव बदलते हैं, फिर चाहे बात कांफ्रेस कॉल की हो या ऑफिस की ऑनलाइन मीटिंग या निजी बातचीत हो। जाहिर तौर पर ये खराब वीडियो क्वालिटी से भरपाई की एक कोशिश होती है। चूंकि किसी भी संवाद में, दूसरे दृश्य संकेत जैसे चेहरे के भाव या इशारे महत्वपूर्ण होते हैं और संवाद से जुड़े पहलू होते हैं। इन भावों में कोई कमी की पूर्ति के लिए हम आवाज बढ़ाते हैं।
अमूमन पहले के समय में भी लोग तेज बोलते थे, पर तब जब लोग दूर खड़े होते थे या लगता था कि सामने वाला उन्हें नहीं सुन सकता। नीदरलैंड की रेडबाउंड यूनिवर्सिटी के जेम्स ट्रुजिलो ने कई प्रतिभागियों के हाव-भाव व बातचीत के पहलू पर निगरानी रखी। इस नई रिसर्च में उजागर हुआ कि जब वीडियो क्वालिटी बहुत अच्छी थी, तो बोलने वाले के हाथों व शरीर की गतिविधि बहुत कम थी और क्वालिटी खराब होने के साथ गतिविधि बढ़ी।
खराब वीडियो की भरपाई के लिए बोलने वाला हमेशा अपने हाव-भाव से चीजें बढ़ा-चढ़ाकर बताता है, ताकि दूसरी ओर मौजूद शख्स भाव पहचान सके, तब भी जब वे उन्हें देख न सकें। ट्रुजिलो कहते हैं, 'हालांकि तेज बोलना मददगार नहीं होता, लोगों का ऐसा करना दिखाता है कि चेहरे के भाव और ये चीजें किस तरह जुड़ी हैं। संवाद करने वाला जानता है कि ये भाव-भंगिमाएं सामने वाले को अर्थ समझने के लिए जरूरी हैं, इसलिए ऐसे में दूसरा सिग्नल (वीडियो) फेल होने पर पहले सिग्नल (आवाज) की ताकत बढ़ा देते हैं।
कोई ताज्जुब नहीं कि अपनी किचन टेबल और बेडरूम में बनाए अस्थायी ऑफिस से बात करते हुए हम सब थक रहे होते हैं क्योंकि वर्क फ्रॉम के बीच कई बार नेटवर्क जाने की स्थिति में हम अपने हाव-भाव पर कुछ ज्यादा ही जोर देते हैं।
महामारी के दिनों को याद करें कि कैसे हम फ्रीज हो गई स्क्रीन पर म्यूट करके बेखबर बैठे व्यक्ति से अपनी आवाज ऊंची करके निपटते थे। और इस सबसे ऊपर शुरुआत में अपनी निजता की फिक्र करने वाले ये युवा अब तेज बोलने वाले दल में शामिल हो गए हैं।
इंस्टाग्राम रील बनाने के बहाने सड़क पर चलते हुए ये वीडियो ऑन रखते हैं और फोन की स्क्रीन को देखते हुए सामने से कमेंट्री करने लगते हैं। जैसे ही आसपास शोर बढ़ता है, उनकी आवाज भी तेज हो जाती है फिर शोर और बढ़ा देती है। फंडा यह है कि अगर कोई घर पर या सड़क पर तेज आवाज में बात कर रहा है, तो जरूरी नहीं कि वो बेअदब हो, वो ऐसा इसलिए कर रहे हैं क्योंकि तकनीक मदद नहीं कर रही और माहौल भी अनुकूल नहीं है।

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