जय जवान, जय किसान

Update: 2022-10-21 18:46 GMT
भारत के दूसरे प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री जी ने 1965 में जब देश पर युद्ध और अकाल का खतरा इक_ा बन आया था, देश की सीमाओं पर बाहरी मुल्क ने हमला कर दिया था जिससे देश की सुरक्षा के लिए खतरा पैदा हो गया था और दूसरी तरफ भारत के अंदर इतना भयानक अकाल पड़ा था कि लोग पैसा होने के बावजूद दो वक्त का खाना खाने जितना अन्न नहीं खरीद सकते थे क्योंकि जितनी जरूरत थी उतना अनाज पैदा ही नहीं हो सका था। उस वक्त शास्त्री जी ने आह्वान किया कि आज भारत की सीमाओं की रक्षा करने के लिए जवान आगे बढ़ें तथा भारत वासियों का पेट भरने के लिए किसान खेतों में मेहनत करें। इन दो भयानक आपदाओं से मुक्ति पाने के लिए उन्होंने 'जय जवान, जय किसान' का नारा दिया था।
उसके बाद सरकार ने इन दो क्षेत्रों पर विशेष महत्व दिया, जिसके अंतर्गत एक तरफ लगातार सेना को सशक्त करने के फैसले लिए गए, तो दूसरी तरफ अनाज की पैदावार बढ़ाने के लिए भी वह सब सुविधाएं तथा योजनाएं बनाई गई जिससे हर भारतवासी न केवल अपना पेट भर सके बल्कि दुनिया के बाकी देशों के लिए भी अनाज भेज सकें। हरित क्रांति, दुग्ध क्रांति यह सब उसके बाद आने वाले मुख्य अभियान थे जो किसानों द्वारा फसल की पैदावार बढ़ाने के लिए चलाए गए। शास्त्री जी के आह्वान के बाद जब एक तरफ किसानों ने फसल की पैदावार बढ़ाई तो दूसरी तरफ जवानों ने भी 1965 और 1971 में दुश्मन सेना को जानदार टक्कर देकर परखचे उड़ाते हुए, देश की सुरक्षा में किसी भी तरह की कोई आंच नहीं आने दी। शास्त्री जी के समय से जवानों और किसानों को मजबूत करने की चली यह रीत पिछले 55 साल से दिन पर दिन मजबूत होती रही, पर पिछले दिनों मौजूदा सरकार जिसे ज्यादातर भारतीय देश को दुनिया की सबसे बड़ी विश्व ताकत बनाने के लिए सक्षम मान रहे थे, उनके द्वारा बनाए गए कृषि कानून तथा जवानों की सेवा अवधि के अनुसार पेंशन में कटौती का प्रपोजल तथा सेना अवधि मात्र चार वर्ष करके उसको अग्निवीर का नाम जिससे जवान और किसान दोनों ही परेशान दिख रहे हैं।
किसी तरह की बंदिश में न आने की वजह से किसानों ने तो अपना विरोध दर्ज करवाने के लिए सडक़ों पर डेरा लगा दिया था, पर खाकी के कानूनों में बंधा जवान यह भी नहीं कर सकता, पर अगर जवानों के प्रति लाया गया प्रपोजल कानून बनता है तो वर्दीधारी नहीं, पर कम से कम भूतपूर्व सैनिक सडक़ पर आने को मजबूर हो जाएंगे। मेरा मानना है कि सरकार द्वारा बनाए जाने वाला हर कानून लोगों के कल्याण के लिए होना चाहिए, न कि उनको दुखी या दुविधा में डालने के लिए। भारत एक कल्याणकारी, गणतंत्र राज्य है जिसमें देशवासियों का हित पहले तथा पूंजीपतियों का सशक्तिकरण तथा विश्व ताकत बनने का सपना बाद में आता है। शायद सरकार को हमारे संविधान की मूल संरचना को समझ कर ही सही निर्णय लेते हुए सही कानून बनाने चाहिए, अपितु यह अलगाव और बेचैनी का माहौल देश की तरक्की में वेफालतू की बाधा ही बनता है जो एक विकासशील देश के लिए ठीक नहीं है।
कर्नल (रि.) मनीष
स्वतंत्र लेखक
By: divyahimachal

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