क्या NEET अंग्रेजी माध्यम, अमीरों की परीक्षा है?

कानून को लेकर केंद्र और राज्य के बीच टकराव का एक नया मोर्चा नीट परीक्षा को लेकर खुल गया है

Update: 2021-09-17 07:42 GMT

रवीश कुमार। कानून को लेकर केंद्र और राज्य के बीच टकराव का एक नया मोर्चा नीट परीक्षा को लेकर खुल गया है. केंद्र के नागरिकता कानून, कृषि कानूनों के ख़िलाफ़ कई राज्यों की विधानसभा में प्रस्ताव पास हुए हैं. इस कड़ी में नीट की परीक्षा का मुद्दा भी जुड़ गया है. 13 सितंबर को तमिलनाडु राज्य विधानसभा में जब इसके ख़िलाफ़ बिल लाया गया तब उसका समर्थन विपक्षी दल AIDMK ने भी कर दिया. AIDMK की सहयोगी बीजेपी ने विधानसभा में मतदान का बहिष्कार किया. पूरा राज्य नीट परीक्षा के सिस्टम से अलग होने पर अड़ा है. तमिलनाडु नीट परीक्षा से तभी अलग हो सकेगा जब राष्ट्रपति विधानसभा में पास बिल को मंज़ूरी देंगे. केंद्र सरकार के बनाए कानून से निकलने के लिए यह एक ज़रूरी प्रक्रिया है. इसी से जुड़ा एक किस्सा भी है. 2015 में जब बीजेपी के पास राज्यसभा में बहुमत नहीं था वह भूमि अधिग्रहण बिल का संशोधन नहीं करा सकती थी, तब अरुण जेटली का एक बयान है कि राज्य सरकारें इस बिल को पास करें और केंद्र से मंज़ूरी ले लें मतलब राष्ट्रपति मंज़ूरी दे देंगे. 2017 में भी तमिलनाडु विधानसभा ने इसी तरह का प्रस्ताव पास किया था तब भी मंज़ूरी नहीं मिली थी. 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश जारी कर दिया कि मेडिकल की एक राष्ट्रीय परीक्षा होगी. लेकिन किसी को अंदाज़ा नहीं था कि इस एक आदेश से उस साल के आस-पास मेडिकल की तैयारी कर रहे छात्रों के जीवन पर क्या असर पड़ने वाला था.

एस अनिता, तमिलनाडु में नीट की परीक्षा के विरोध का चेहरा हैं. एक दलित मज़दूर की बेटी अनिता का सपना था डाक्टर बनना. पढ़ने में काफी अच्छी थी. जिस साल पहली बार नीट की परीक्षा हो रही थी उस साल अनिता को राज्य के बोर्ड के परीक्षा में 98 फीसदी नंबर आए थे. इस आधार पर उसे राज्य के किसी भी मेडिकल कालेज में नामांकन मिल सकता था लेकिन नीट के कारण अनिता फेल हो गई. वह सुप्रीम कोर्ट आई कि नीट ग़रीब और गांव के छात्रों के खिलाफ है तो याचिका खारिज हो गई. एस अनिता ने आत्महत्या कर ली. उसके बाद पूरे तमिलनाडु में विरोध प्रदर्शन भड़क उठे थे. किसी परीक्षा प्रक्रिया से अलग होकर भारत के इतिहास का यह प्रखरतम और मुखरतम विरोधों में से एक था. गांव गांव में यह बात फैल गई की नीट की परीक्षा का सिस्टम आएगा तो कोचिंग का उद्योग खुल जाएगा और गांव और ग़रीब घरों के बच्चे डाक्टर बनने का सपना नहीं देख सकेंगे. इस विरोध प्रदर्शन को आप इस नज़र से भी देख सकते हैं कि यह भारत का अकेला ऐसा विरोध प्रदर्शन है जो शिक्षा को पैसे वालों के हाथ में जाने से रोकने के लिए संघर्ष कर रहा है. तब से अनिता तमिलनाडु में नीट की परीक्षा के विरोध का प्रतीक बनी है.
2019 के जून में तमिलनाडु में तीन छात्रों ने नीट की परीक्षा के बाद आत्महत्या कर ली थी. तीनों लड़कियां थीं. ऋतु के पिता कपड़ा फैक्ट्री में दिहाड़ी मज़दूरी करते थे. एम मोनिषा और वैशिया के पिता मछुआरे थे. चारों लड़कियां ग़रीब घरों की थीं. मेधावी थीं लेकिन कोचिंग और सोल्वर गिरोह की जाल में फंसे नीट ने उनकी ज़िंदगी लील ली. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार पिछले कुछ वर्षों में तमिलनाडु में 15 छात्रों ने इस हताशा में आत्महत्या कर ली है कि वे नीट की परीक्षा पार नहीं कर सकते.
नीट परीक्षा को लेकर तमिलनाडु का विरोध केवल राजनीतिक नहीं है. इसके पहले वहां मेडिकल में प्रवेश बोर्ड की परीक्षा के आधार पर मिलता था जिसके लिए ग़रीब छात्रों को महंगी कोचिंग के जाल में नहीं फंसना पड़ता था. वे अपनी प्रतिभा के दम पर डॉक्टर बन सकते थे. लेकिन नीट ने उनकी दुनिया बदल दी है. अक्तूबर 2019 में टाइम्स आफ इंडिया के चेन्नेई ब्यूरो के ए रघु रमन ने लिखा था कि राज्य में नीट के कारण कोचिंग के दस हज़ार से अधिक ट्रेनिंग सेंटर शुरू हो गए हैं. 500 करोड़ से भी अधिक का कारोबार बन गया है. इसी जाल से तमिलनाडु के छात्र खुद को बचाना चाहते थे और उनका विरोध सभी राजनीतिक दलों के घोषणापत्र में पहुंच गया. आज हालत यह है कि केंद्र सरकार के पास इसका डेटा नहीं है कि नीट की परीक्षा में पास करने वाले कितने छात्रों ने कोचिंग की है. यह कितनी अहम जानकारी है लेकिन तत्कालीन शिक्षा मंत्री निशंक ने लोकसभा में बयान दिया है कि इस तरह का कोई डेटा नहीं है. इस तरह के डेटा होने चाहिए ताकि नीट की परीक्षा को लेकर व्यापक बहस हो सके.
खबरों में आपने देखा होगा कि मुख्यमंत्री रहते हुए नरेंद्र मोदी ने नीट की परीक्षा की कल्पना का विरोध किया था, जिस तरह से जीएसटी का किया था लेकिन यह तस्वीर 2017 के साल की है. उस साल गुजराती माध्यम के छात्रों के माता पिता भी सड़कों पर उतरे थे. उनकी मांग थी कि राज्यों के मेडिकल कालेज में गुजराती माध्यम के छात्रों और सीबीएसई के छात्रों का अलग मेरिट लिस्ट बने. हर जगह सीबीएसई स्कूल के ही छात्र भर गए हैं. उस साल गुजराती, ओड़िया, बंगाली, मराठी तेलुगू तमिल के छात्रों के लिए अलग-अलग प्रश्न पत्र बने थे कुछ के प्रश्न ज्यादा ही कठिन हो गए थे तब यह मांग उठी थी कि हर भाषा के सवाल का एक ही स्तर होना चाहिए. तेलंगाना के 120 छात्रों को अंग्रेज़ी और हिंदी माध्यम के प्रश्न पत्र दे दिया गया था जबकि उन्होंने तेलुगू माध्यम से परीक्षा का फार्म भरा था. नीट के सवाल अलग अलग भाषाओं में आते हैं लेकिन अलग अलग से कोई डेटा नहीं मिलता कि किस भाषा के कितने छात्रों ने परीक्षा पास की है.
सरकार को बताना चाहिए कि नीट की परीक्षा में पास होने वाले कितने छात्रों ने कोचिंग की है, कितने छात्र गुजराती, तमिल, तेलुगु और मराठी माध्यमों के हैं. यह परीक्षा किस तरह की खाई पैदा कर रहा है. 2019 में तत्कालीन शिक्षा मंत्री निशंक के एक जवाब से साफ होता है कि नीट की परीक्षा में किस तरह सीबीएसई के छात्र आगे निकल चुके हैं.
CBSE से इस परीक्षा में भाग लेने वाले छात्रों में से 75.9 प्रतिशत छात्र पास हो गए. राज्य बोर्ड से नीट में भाग लेने वाले 50.5 प्रतिशत छात्र ही पास हो सके.
तमिलनाडु की आशंका हवा हवाई नहीं है. वहां बहस का मुद्दा यही है कि नीट के कारण जो पैसा खर्च करेगा परीक्षा वही पास करेगा. इस परीक्षा में बराबरी का अवसर नहीं है. जून महीने में तमिलनाडु सरकार ने हाईकोर्ट के रिटार्यड जस्टिस ए के राजन की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई कि वह अध्ययन करे कि नीट की परीक्षा का क्या असर पड़ता है खासकर पिछड़ी जाति के छात्रों पर. उनकी रिपोर्ट बता रही है कि यह परीक्षा किस तरह गांव और गरीब के छात्रों के खिलाफ है और नीट का जो मुख्य मकसद था कि करोड़ों रुपये की कैपिटेशन फीस खत्म हो जाएगी वो रेगुलर फीस के तौर पर ली जा रही है. बल्कि अब तो पचास लाख की जगह एक करोड़ लिए जा रहे हैं. जस्टिस राजन इस धारणा को भी ध्वस्त करते हैं कि नीट से केवल प्रतिभाशाली छात्रों का ही चयन होता है.
जस्टिस राजन ने बार बार ज़ोर दिया है कि नीट के कारण ज़्यादातर पैसे वाले छात्रों को बढ़त मिलती जा रही है जो महंगी कोचिंग और कई साल तक कोचिंग का लाभ ले सकते हैं. सवाल यह भी है कि पहले भी राज्य में ट्यूशन सेंटर का जाल बिछा हुआ था. उसके कारण भी गरीब छात्र पिछड़ रहे थे. जस्टिस राजन का कहना है कि दूसरे राज्यों में विरोध इसलिए नहीं है कि उन्हे इसके खतरनाक परिणामों की जानकारी नहीं है. यही नहीं आज तक इस परीक्षा में घोटाले और धांधली की खबरें आ रही हैं. हर साल नीट की परीक्षा में सॉल्वर गिरोह के पकड़े जाने की ख़बर आती है. किसी छात्र के बदले कोई तेज़ तर्रार मेडिकल छात्र परीक्षा देता है और किसी को पास करा देता. केंद्र सरकार आज तक सौ फीसदी सुरक्षित परीक्षा छात्रों को नहीं दे पाई.
इसी महीने की ये खबरे हैं. वाराणसी पुलिस ने एक सॉल्वर गिरोह को पकड़ा है. मेडिकल अंतिम वर्ष का छात्र ओसामा शाहिद पकड़ा गया है. अभय कुमार मेहता पकड़ा गया है. बीएचयू में बीडीएप की छात्रा जूली और उनकी मां को भी गिरफ्तार किया है. जूली ने दो साल पहले नीट की परीक्षा पास की थी. जूली किसी और छात्रा के बदले परीक्षा देने जा रही थी. खबरों के मुताबिक परीक्षा पास कराने के 5 लाख रुपये लिए गए थे. 2019 में मद्रास हाईकोर्ट को आदेश देना पड़ा था कि राज्य के मेडिकल कालेज में एडमिशन ले रहे 4250 छात्रों की फिंगर प्रिंट ली जाएगी ताकि सत्यापित हो सके कि जो छात्र एडमिशन ले रहे हैं, उन्होंने ही परीक्षा दी थी. उस साल छह ऐसे छात्र पकड़े गए थे. नेशनल टेस्टिंग एजेंसी न तो नीट और न ही आईआईटी की परीक्षा को धांधली से बचा पा रही है.
नीट की परीक्षा हो रही है और सॉल्वर गिरोह किसी के बदले किसी और को परीक्षा देने के लिए भेज रहा है. लाखों रुपये के लेन देन होंगे तो छात्रों के मन में आशंका और गहरी होगी कि यह परीक्षा पैसे देकर कोचिंग करने वालों और पैसे देकर चोरी करने वालों के लिए ही है. अभी तक इसकी विश्वसनीयता को पुख़्ता नहीं किया जा सका है. बुधवार को हमने पटना यूनिवर्सिटी के बारे में बताया था कि शिक्षकों के कई सौ पद खाली हैं. शिक्षकों के बग़ैर छात्रों के कई साल यूं ही गुज़र जाते होंगे और उनका विकास नहीं होता होगा. जानबूझ कर छात्रों को पीछे रखने का यह जुगाड़ लगता है. जिसके लिए सरकार से लेकर वहां का समाज दोनों काफी मेहनत कर रहे हैं कि हमारे बच्चे आगे नहीं जा पाएं.
हमारे सहयोगी हबीब आज भी पटना यूनिवर्सिटी गए. बिहार के छात्रों का सपना होता था साइंस कालेज में पढ़ना, आज भी यहां पढ़ने के लिए वही सपना देखा जाता है लेकिन अब वो साइंस कालेज नहीं रहा. इसकी ख़ूबसूरत इमारतें किसी भव्य संस्थान का इशारा देती हैं लेकिन भीतर की हालत बता रही है कि सरकार ने तय कर लिया है कि साइंस कालेज को भी डंप कर देता है. साइंस कालेज के केमिस्ट्री डिपार्टमेंट का कितना नाम था लेकिन आज इसकी प्रयोगशाला में छात्रों को सिखाने के लिए कोई शिक्षक नहीं है. छात्र खुद से ही कुछ कुछ कर लेते हैं बाकी प्रयोगशाला की छत जर्जर हो चुकी है और ज़रूरी चीज़ें भी नहीं मिलती हैं. नई यूनिवर्सिटी के नाम पर युवाओें में सांप्रदायिक जोश फैला देने वाले नेता कभी इन युवाओं को अपने साथ इन जगहों पर नहीं लाते जिन्हें थोड़ी सी मदद में बेहतर किया जा सकता था. साइंस कालेज में 1800 छात्र पढ़ते हैं. आधी लड़कियां हैं. कितनी मेहनत से ये लड़कियां पटना और पटना के साइंस कालेज तक पहुंची होंगी. उन्हें पता भी नहीं होगा कि इस कालेज का साइंस खत्म हो चुका है. यहां पर शिक्षकों के मंज़ूर पदों की संख्या 91 है लेकिन हैं 29 टीचर. 61 टीचर नहीं हैं. इनकी जगह 16 गेस्ट फैकल्टी से काम चलाया जा रहा है. हबीब की मुलाकात अभय कुमार से हुई जो केमिस्ट्री विभाग में काम करते हैं और पटना विश्व विद्यालय के शिक्षक संघ के महासचिव हैं. इनका कहना है कि 70 प्रतिशत शिक्षक नहीं हैं. जितने नए आए उससे कहीं अधिक रिटायर हो चुके हैं.मुझे ठीक ठीक पता है कि ऐसी रिपोर्ट दिखाने से न तो समाज पर असर पड़ता है और न सरकार पर. अगर बिहार सरकार एक साइंस कालेज नहीं चला सकती तो फिर उसे पूरी तरह बंद ही कर देना चाहिए.
पटना यूनिवर्सिटी में 18000 छात्र पढ़ते हैं. यूनिवर्सिटी में मंज़ूर पदों की संख्या 850 से अधिक है लेकिन 300 से कम शिक्षक पढ़ा रहे हैं. शिक्षक संघ के नेता ने बताया कि यहां सबसे अधिक छात्र इतिहास विभाग में हैं लेकिन वहां एक भी शिक्षक नहीं है. कई विभागों में पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई के लिए एक भी शिक्षक नहीं हैं. अभय कुमार ने कहा कि कुछ शिक्षकों की नियुक्तियां हुई हैं लेकिन उससे अधिक रिटायर हो गए हैं. हबीब पटना यूनिवर्सिटी के कई हिस्सों से गुज़रते हुए भूगोल विभाग पहुंचे. पता चला कि यहां सिर्फ एक ही प्रोफेसर हैं और दो गेस्ट फैकल्टी पढ़ाते हैं. प्रो अनुराधा सहाय ने पिछले साल ही वीसी को लिखा था कि तमाम पद खाली हैं. छात्रों के अनुभव सुनकर लगा कि भारत में छात्रों का भविष्य सरकारी तौर पर बर्बाद किया जा सकता है और फिर उन्हीं छात्रों को बेवकूफ बनाया जा सकता है कि भारत विश्व गुरु बन गया या बनने वाला है. कई साल इसी तरह बैच के बैच बिना टीचर के पास हो रहे हैं. वे भी पास कर जाएंगे. यह तस्वीरें बता रही हैं कि बिहार जैसे राज्य ने उच्च शिक्षा को बीच मंझधार में छोड़ दिया है. धारा 370, मंदिर और जाति की चपेट में हिन्दी प्रदेश के युवाओं को पता तक नहीं कि ठीक से पढ़ाई नहीं करने का क्या मतलब होता है, दुनिया के दूसरे छात्र इस उम्र में उनसे कितने आगे निकल चुके हैं.
पटना यूनिवर्सिटी की ऐसी हालत पहले भी दिखा चुका हूं. इस बार इसलिए दिखा रहा हूं ताकि आपको बता सकूं कि इस यूनिवर्सिटी की हालत अब भी खराब है. इसका इतिहास ही अब गाने लायक रह गया है. वर्तमान में कुछ दिखाने लायक नहीं है. पटना यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर इसी यूनिवर्सिटी के छात्र हैं. उनसे बेहतर कौन देख सकता होगा पतन को. लेकिन मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि वीसी के कमरा देखकर नहीं लगेगा कि आप किसी खंडहर हो चुकी यूनिवर्सिटी को देख रहे हैं. जिस तरह से यूनिवर्सिटी के बर्बाद होने से फर्क नहीं पड़ता उस तरह से आपको इस बात से भी नहीं फर्क पड़ता कि न्यूज़लौंड्री न्यूज़क्लिक के दफ्तरों में छापे पड़ रहे हैं. गरीबों के लिए काम करने वाले हर्ष मंदर के दफ्तर, घर पर छापे पड़ रहे हैं. फर्क तो पड़ता ही होगा आपको लेकिन आप बोल नहीं पाते हैं
तमाम सामाजिक मानवाधिकार संगठनों ने हर्ष मंदर के यहां पड़े छापों की निंदा की है और उनसे समर्थन में खड़े होने की प्रतिज्ञा. 2020 के अप्रैल मई में जब पैदल चलते लोगों के लिए सोनू सूद आए तो सबने देखा कि सोनू ने कितनी मदद की. जैसे ही सोनू सूद दिल्ली सरकार के एक कार्यक्रम के ब्रांड एंबेसडर बने हैं, उनके घर भी छापेमारी हो गई. अगर आप अब भी यकीन करते हैं कि कानून अपना काम कर रहा है, किसी और का नहीं तो आप काफी स्मार्ट है, उस स्मार्ट सिटी से भी स्मार्ट जो कहीं दिखती नहीं है.


Tags:    

Similar News

-->