क्या राज है कि गांधी परिवार संसद में चुप और सरकार से सिर्फ जनता के बीच ही सवाल करती है

गांधी परिवार संसद में चुप

Update: 2021-06-14 06:02 GMT

अजय झा। गांधी परिवार इन दिनों प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (PM Modi) से प्रश्न करने में व्यस्त है. कांग्रेस पार्टी (Congress Party) के दो सबसे बड़े नेता लगातार प्रश्नों के गोले दागते दिखते हैं. जहां सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) सोशल मीडिया पर कम ही दिखती हैं, राहुल गांधी (Rahul Gandhi) और प्रियंका गांधी (Priyanka Gandhi) प्रतिदिन प्रश्नों से मोदी सरकार को घेरने की कोशिश करते दिखते हैं. प्रियंका गांधी का तो मानो एक सीरियल चल रहा है "ज़िम्मेदार कौन" नाम से, और राहुल गांधी उसी अंदाज़ में कटाक्ष करते दिखते हैं जिस तरह वह एक बार लोकसभा में मुस्कुराते हुए आंख मारते दिखे थे.


सवाल करना विपक्ष का हक़ है, पर गांधी परिवार के सवालों में दम कम ही दिखता है. उन्हीं घिसे पिटे विषयों पर, करोना महामारी में सरकार की तथाकथित विफलता, डीजल और पेट्रोल के कीमत, कृषि कानून और उत्तर प्रदेश में कानून और व्यवस्था पर सवाल पूछे जाते हैं. रोज नया सवाल आये भी कहां से? इन सवालों में गंभीरता कम दिखती है.

संसद में गांधी परिवार की उपस्थिति निराशाजनक
गांधी परिवार के दो सदस्य लोकसभा में सांसद है. सांसदों का एक प्रमुख काम होता है सरकार से जनता का सवाल करना. सांसद चाहे वह सरकारी पक्ष का हो या विपक्ष का, वह जनता और सरकार के बीच की कड़ी होता है. पर क्या वही गांधी परिवार जो रोज सोशल मीडिया के जरिए सरकार को सवालों के कटघरे में खड़ा करने की कोशिश करती दिखती है, संसद में भी ऐसा ही करती है? सोनिया गांधी 1999 से सांसद हैं और राहुल गांधी 2004 से. पिछले 12 वर्षों का अगर रिकॉर्ड देखें तो गांधी परिवार की संसद में उपस्थिति निराशाजनक ही कही जा सकती है. 15वें लोकसभा में जिसकी अवधि 2009 से 2014 तक थी, राहुल गांधी की उपस्थिति दर 43 प्रतिशत थी और सोनिया गांधी की 47 प्रतिशत. माता और पुत्र ने कोई भी सवाल नहीं पूछा, शायद वह सवाल पूछ कर अपनी ही पार्टी की सरकार के लिए मुसीबत पैदा नहीं करना चाहते थे.

2014 में मोदी के नेतृत्व के चलते बीजेपी सत्ता में आई. चूंकि अब कांग्रेस विपक्ष में थी, उम्मीद की जानी चाहिए थी कि सोनिया और राहुल सांसद के तौर पर ज्यादा चुस्त और जागरुक दिखें. पर एक बार फिर से निराशा ही हाथ लगी. राहुल गांधी की उपस्थिति दर में मात्र नौ प्रतिशत का इजाफा दिखा, यानि 52 प्रतिशत और सोनिया गांधी की 60 प्रतिशत. राहुल गांधी ने 16वें लोकसभा में पूरे पांच साल में सरकार से फिर से कोई प्रश्न नहीं पूछा, ना ही सोनिया गांधी ने कोई सवाल पूछा.

संसद में सवाल पूछने के मामले में राहुल गांधी पीछे हैं
वर्तमान लोकसभा में जिसका गठन 2019 में हुआ, अभी तक राहुल गांधी की उपस्थिति दर 51 प्रतिशत रही है और सोनिया गांधी की 60 प्रतिशत. सोनिया गांधी ने पिछले दो वर्षो से एक बार फिर कोई प्रश्न नहीं पूछा है, जबकि राहुल ने अब तक रिकॉर्ड तोड़ते हुए सरकार से 60 सवाल पूछ डाले हैं. पर यह राष्ट्रीय दर 77 से यह काफी कम है. जहां अन्य सांसदों ने औसतन 77 सवाल पूछे, राहुल गांधी अभी भी पीछे ही चल रहे हैं. राहुल गांधी अब केरल से सांसद हैं. और केरल के अन्य सांसदों की तुलना में वह काफी पीछे हैं, क्योंकि केरल के सांसदों का प्रश्न पूछने का औसत अभी तक 109 प्रतिशत रहा है. सबसे दिलचस्प है कि पिछले साल मानसून सत्र में वह एक बार भी सदन में आये ही नहीं.

यहां एक बात स्पष्ट कर दें कि उपस्थिति का ब्योरा संसद के रजिस्टर में हुई एंट्री से लिया जाता है. सांसदों को डेली भत्ता तब ही मिलता है जब वह रजिस्टर में हस्ताक्षर करते हैं. इसमें इसबात का कहीं भी ब्योरा नहीं होता कि कोई सांसद कितनी देर तक सदन में उपस्थित था. गांधी परिवार के सदस्य जब आते भी हैं तो अक्सर सिर्फ शुरू के एक या दो घंटे तक ही सदन में दिखते हैं. भोजन अवकाश के बाद उन्हें बहुत कम ही संसद में देखा गया है.

रक्षा सम्बंधित संसदीय कमिटी में कभी नहीं पूछा राफेल का सवाल
अगर सोनिया गांधी और राहुल गांधी किसी यूनिवर्सिटी में छात्र होते तो इतनी कम उपस्थिति के कारण उन्हें परीक्षा भी नहीं देने दिया जाता. हर एक सांसद कम से कम किसी एक संसदीय कमिटी का सदस्य होता है जहां वह मंत्री और अधिकारीयों से जितने चाहे प्रश्न पूछ सकता है. राहुल गांधी रक्षा से सम्बंधित संसदीय कमिटी के सदस्य हैं. अभी तक इस कमिटी की बैठक 11 बार हो चुकी है और राहुल गांधी राफेल पर सवाल पूछने एक बार भी नहीं आए. उनकी उपस्थिति शून्य है. हालांकि संसद से बाहर वह राफेल लड़ाकू विमान के मुद्दे पर सरकार पर लगातार आरोप लगाते रहे हैं.

यह है लेखा जोखा गांधी परिवार का जो संसद में सरकार से सवाल नहीं करते और सिर्फ जनता में ही सवाल करते हैं. वो भी चुनावों के दौरान और सोशल मीडिया के द्वारा. शायद इसलिए कि उन्हें भी पता है कि तथ्यों से परे आरोप को संसद में प्रश्न के रूप में नहीं पुछा जा सकता. फिलहाल प्रियंका गांधी सांसद नहीं हैं. अगर होतीं भी तो एक सांसद के रूप में उनका प्रदर्शन सोनिया और राहुल गांधी से अलग नहीं होता, क्योंकि दोनों भाई-बहन के प्रश्न भी एक जैसे ही होते हैं.

आरोप लगा कर राहुल और प्रियंका सरकार से जवाब तलब करना शायद कांग्रेस पार्टी की रणनीति का हिस्सा हो सकता है. पर सबसे बड़ा सवाल है कि क्या कांग्रेस पार्टी ने कभी यह जानने की कोशिश की है कि गांधी परिवार का सोशल मीडिया पर पोस्ट कितने लोग पढ़ते हैं और क्या जनता पर इसका कोई असर होता भी है? शायद नहीं, क्योंकि अगर होता तो हाल ही में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी को देश की जनता ऐसे एक बार फिर से नकार नहीं देती.
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