कैप्टन खून का घूंट पीकर कांग्रेस के साथ बने हुए हैं, लेकिन कैप्टन का पेशेंस अब जवाब देने लगा है. कांग्रेस हाईकमान कैप्टन को दिल्ली बुलाती है और 18 प्वाइंट फॉर्मूला देकर कहती है कि आपका प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा है और काम करके दिखाइए और 15 दिनों में रिपोर्ट दीजिए. सवाल यही है कि साढ़े चार साल बाद कांग्रेस हाईकमान की आंखें क्यों खुल रही हैं जब चुनाव मुहाने पर है. दरअसल अमरिंदर सिंह कांग्रेस के वरिष्ठतम नेताओं में से एक हैं और उन्होनें कई चुनाव जीते हैं और पार्टी को जिताया भी है. उन्हें दो बार दिल्ली बुला के अपने से छोटे क़द के नेताओं के सामने पेश होने को कहना अमरिंदर सिंह जैसे बड़े नेता के लिए ज़लील करने से कम नहीं था.
कैप्टन ने मौके की नज़ाकत को भांपते हुए सब कुछ स्वीकार तो किया. परंतु सिद्धू को अध्यक्ष बनाए जाने के बाद कैप्टन कैंप बुरी तरह अपमानित महसूस कर रहा है. अमरिंदर कैंप के मुताबिक आरपार की लड़ाई पंजाब में टिकट वितरण के दौरान दिखना तय है. अमरिंदर सिद्धू को टिकट वितरण के दरमियान खुली छूट देने वाले नहीं हैं. अमरिंदर कैंप इस बात पर मन बना चुका है कि पार्टी हाईकमान उस दरमियान अगर ज्यादा दवाब डालती है तो अमरिंदर पार्टी तोड़ने से परहेज नहीं करेंगे.
दरअसल माना जाता है कि अमरिंदर सिंह का अपना प्रभाव क्षेत्र है और अगर उन्हें महसूस हुआ कि कांग्रेस अगला सीएम उन्हें नहीं बनाने जा रही है तो अमरिंदर सिंह घुटने टेक भागने वाले नहीं हैं, बल्कि पार्टी में अपनी पकड़ को साबित करने के लिए हर हथकंडे का इस्तेमाल करेंगे. ध्यान रहे अमरिंदर पहले अकाली रह चुके हैं और राजनीति संभावनाओं का खेल है. यहां की राजनीति में अकालियों और अमरिंदर दोनों के लिए सिद्धू के लिए नाराज़गी हद से ज्यादा है.
अमरिंदर सिंह का राजनीतिक कद बड़ा, छोटे नेताओं के सामने पेशी से आहत हैं
कैप्टन अमरिंदर सिहं साल 2014 में जब कांग्रेस के बड़े नेता चुनाव लड़ने से कतरा रहे थे, तब कैप्टन अमरिंदर ने मैदान में उतरकर बीजेपी के बड़े नेता अरुण जेटली को हराने में कामयाबी हासिल की थी. इस समय वो विधायक थे और साल 2017 में बीजेपी के विजय रथ को रोकने वालों में अमरिंदर कामयाब हुए थे जब राज्य में कांग्रेस 117 में 77 सीटों पर चुनाव जीतकर 10 साल बाद सत्ता में वापसी की थी. बीजेपी लगातार महाराष्ट्र, झारखंड, असम, गुजरात, हिमाचल प्रदेश जैसे प्रदेशों में विधानसभा चुनाव जीतकर सरकार बना चुकी थी. लेकिन पंजाब की सत्ता में कांग्रेस की वापसी करा अमरिंदर सिंह ने बीजेपी के विजय रथ को रोकने वाले गिनती के नेताओं में अपना नाम दर्ज करा लिया था.
2019 के लोकसभा चुनाव में हर तरफ़ मोदी लहर की ही चर्चा थी. लेकिन मोदी लहर के बावजूद कांग्रेस पंजाब की 13 लोक सभा सीटों में से 8 सीटें जीतने में कामयाब रही और अमरिंदर सिंह का कद बढ़ता गया. लेकिन हाल में वैसे नेताओं के सामने इन्हें हाजिरी लगानी पड़ी जो हाईकमान के चहेते तो हैं परंतु चुनाव जीतने में नाकामयाब रहे हैं. अब जरा सोचिए अमरिंदर सिंह हरीश रावत और खड़गे और जेपी अग्रवाल जैसे नेताओं के सामने पेश हुए, जिनका राजनीतिक कद अमरिंदर सिंह के सामने कितना छोटा है.
कैप्टन की सिद्धू से अदावत पुरानी है और हाईकमान का सिद्धू के साथ जाना कैप्टन को नागवार गुजरा है. सिद्धू का कांग्रेस में प्रवेश गांधी परिवार के आशीर्वाद से हुआ था और 2017 का चुनाव जीतने पर अमरिंदर सिंह को सिद्धू को कैबिनेट मंत्री बनाना पड़ा. सिद्धू का प्रधानमंत्री इमरान ख़ान के शपथ ग्रहण समारोह का हिस्सा बनने के लिए पाकिस्तान जाना कैप्टन को नागवार गुजरा था. मामला खराब तब और हो गया जब अमरिंदर ने पाकिस्तानी सेना प्रमुख क़मर जावेद बाजवा के साथ सिद्धू के गले मिलने की जमकर आलोचना कर डाली. वहीं सिद्धू बादल परिवार के टीवी व्यवसाय को नुकसान पहुंचाने के लिए कानून बनाना चाहते थे लेकिन उन्हें अमरिंदर सरकार से समर्थन नहीं मिला. साल 2018 में रोड रेज मामले में सिद्धू के खिलाफ पंजाब सरकार ने कोर्ट के फैसले का समर्थन किया था
यहां तक कि अमरिंदर ने सिद्धू को एक नॉन-परफ़ॉर्मर तक कह डाला और उनसे स्थानीय निकाय विभाग वापस ले लिया. सिद्धू ने कांग्रेस पार्टी के सुप्रीमों से अपनी नज़दीकी का इस्तेमाल कर गांधी परिवार के सामने सारी बातें सामने रखीं लेकिन उन्हें 2019 में अमरिंदर कैबिनेट से इस्तीफ़ा देना पड़ा.
कांग्रेस हाई कमान के रुख पर निर्भर करेगा पार्टी में टूट
एक्सपर्टस के मुताबिक पंजाब कांग्रेस में अंदरूनी कलह पार्टी हाई कमान की बेवक़ूफ़ी का नतीजा है. अमरिंदर अभी सिद्धू को पार्टी अध्यक्ष मान भी लें तो वह सिद्धू की अहमियत को बढ़ने नहीं देंगे. कैप्टन को लगने लगा है कि पार्टी हाईकमान उन्हें नाकामयाब साबित करने की कोशिश में लगा है और सिद्धू के आरोपों को प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से मान चुका है, इसलिए उन्हें कभी हटाने की कोशिश कर सकता है. इसलिए कैप्टन की टीम आरपार की योजना में जुट चुकी है और राजनीतिक वर्चस्व की लड़ाई में कांग्रेस का नुकसान हो भी जाए तो इसकी परवाह भला किसे है.
कांग्रेस वैसे भी केरल, असम में हार के बाद बंगाल में शून्य पर पहुंच गई है. लेकिन समस्याओं को सुलझाने की बजाय उसे लंबे समय तक अटकाए रखना कांग्रेस की फितरत बन चुकी है. पंजाब में कांग्रेस की आसान जीत हार में तब्दील हो जाए इसकी चिंता कई कांग्रेसियों को सताने लगी है. वहीं अमरिंदर सरीखे नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया और जतिन प्रसाद की तरह राहें बदल लें इसके आसार पूरी तरह से दिखाई पड़ने लगे हैं. अमरिंदर कैंप अब पूरी तरह से आर पार करने के मूड में है बस उन्हें सही मौके का इंतज़ार है.