हाथ कभी नहीं दिखते। इसीलिए अदृश्य कहे जाते हैं। पर जो दिखते हैं, काट दिए जाते हैं। आपको मेरी बात पर यक़ीन नहीं तो रमेश सिप्पी निर्देशित सन् 1975 की ब्लॉक बस्टर फिल्म 'शोले' देख लीजिए। गब्बर सिंह ने किस तरह अपने अड्डे पर ठाकुर के हाथ बांध कर काट दिए थे। फिल्म के अंत में भले ठाकुर ने गब्बर को मार दिया था। लेकिन वास्तविकता में न गब्बर मरते हैं, न ठाकुर के हाथ कटते हैं। गब्बर अमर हैं। वे पहले भी थे, आज भी हैं। बस उनका ताना-बाना बदलता है। वे कल भी थे, आज भी हैं,जब तक दुनिया है, गब्बर लोगों को लूटते रहेंगे। फक़ऱ् इतना है कि असली जीवन में कालिया और उसके साथियों की तरह जय-वीरू भी मारे जाते हैं। गब्बर और ठाकुर दोनों हाथों में हाथ डाले चार्टेड हवाई जहाज़ में गाना गाते घूमते रहते हैं, 'ये दोस्ती हम नहीं छोड़ेंगे।' न दिखने वाले हाथों के बारे में सबसे पहले अर्थशास्त्र के पितामह कहे जाने वाले एडम स्मिथ ने अपनी पुस्तक 'वेल्थ ऑव द नेशन' में 'इनविजि़बल हैंड' के बारे में बताया था। लेकिन ये अदृश्य हाथ सदियों से अर्थशास्त्र से बाहर राजनीति, धर्म सहित सभी शोबों को प्रभावित करते आ रहे हैं।
'इनविजि़बल हैंड' रूपक उन्होंने उन अनदेखी ताक़तों के बारे में इस्तेमाल किया था, जो बाज़ार को प्रभावित करती हैं। स्मिथ कहते हैं कि उन्होंने यह कभी नहीं जाना कि जनता की भलाई के लिए व्यापार करने वालों ने कितना बेहतर किया है। लेकिन लोगों की जान पर तब बन आती है, जब ये हाथ सत्ता में काम करने लगते हैं। ये अदृश्य हाथ ख़ून से रंगे होने के बावजूद कभी पकड़ में नहीं जाते, क्योंकि दिखते नहीं। उन पर भ्रष्टाचार का कोई आरोप भी नहीं लगता, क्योंकि ख़ून से रंगे होने के बावजूद उनके ख़ून में भ्रष्टाचार नहीं होता। उनका चेहरा दिखता है, शरीर दिखता है, पाँव चलते हुए दिखते हैं, वे नंगे नहीं कहे जा सकते। क्योंकि उन्होंने कपड़े पहने हैं। पर उनके हाथ नहीं दिखते। एडम स्मिथ ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि अर्थशास्त्र के ये अदृश्य हाथ आने वाले समय में राजनीति को सत्ता में परिवर्तित कर देंगे। कल्याणकारी राज्य में भलाई का व्यापार करने वाले जब सत्ता में होते हैं तो अपराधों और साम्प्रदायिक दंगों की संख्या नगण्य हो जाती है। अदृश्य हाथों को मालूम है कि आम आदमी को नून-तेल के खेल में डुबोए रखने से उसका ध्यान अदृश्य हाथों की ओर कभी नहीं जाएगा। इसीलिए आम आदमी को मुफ़्तखोरी के खेल का सट्टा खिलाया जाता है ताकि उसका ध्यान अपनी आकांक्षाओं की गऱीबी पर कभी न जाए। साथ ही लोगों को यह बता कर शर्मिंदा करते रहते हैं कि उन्हें कितनी सब्सिडी दी जा रही है। अदृश्य हाथ समाज को धर्म, ज़ात और सम्प्रदाय की अफीम चटा कर सुलाए रखते हैं।
हर आदमी की नब्ज़ टटोलने वाले हाथ कभी अपनी नब्ज पर उंगली नहीं रखते। ये चाहें तो मालेगाँव जैसे केस में किसी निर्दोष को लपेट सकते हैं या उम्र क़ैद काट रहे गैंगस्टर को माफ कर सकते हैं। चकला चलाने वाली को सच्चरित्रता प्रमाणपत्र प्रदान कर सकते हैं या किसी सहेली को संसद सदस्य या कमीशन का चेयरमैन बना सकते हैं। बाज़ार और सत्ता के अदृश्य हाथ वस्तुओं की कीमतों को इस प्रकार नियोजित करते हैं कि उनके पक्ष में लाभ का मीटर तो अडानी के सालाना आय के चक्रवृद्धि ब्याज़ की तरह घूमे, पर मज़दूरी के मीटर की गति भारतीय बैंकों के साधारण ब्याज़ की तरह हर साल गिरती रहे। रूसो के कथन, 'मनुष्य स्वतंत्र पैदा होता है परंतु सर्वत्र जंज़ीरों में जकड़ा रहता है' पर विचार करने से लगता है कि राजनीति को मछली की आँख मानने वाले धनुर्धरों के अदृश्य हाथ सत्ता रूपी द्रौपदी को पाने के लिए आम आदमी की भौतिक स्वतंत्रता को निरंतर निशाने पर रखते हैं, परन्तु उस स्वतंत्र नागरिक समाज की सुरक्षा के लिए कोई काम नहीं करते जिसकी सौगन्ध उठा कर वे सत्ता में आते हैं।
पी. ए. सिद्धार्थ
लेखक ऋषिकेश से हैं
By: divyahimachal