पर्यटन आर्थिकी में निवेश
पर्यटक स्थल अपनी खूबसूरती को ईंट और मसाले से ढांप पाएंगे
divyahimachal.
विकास और आर्थिकी के बीच फंसे पर्यटन उद्योग के लिए एशियन विकास बैंक से 2095 करोड़ की नई मुलाकात से भविष्य के पैमाने बड़े हो सकते हैं, बशर्ते परियोजनाओं की ईमानदारी और निष्पक्षता कामय की जा सके। पर्यटन विकास की परिधि से कहीं अधिक मूल्यांकन इससे जुड़ी आर्थिक संभावना से होना चाहिए। कुछ अतीत के अधूरे संकल्पों, परियोजनाओं की बंदरबांट और सार्वजनिक धन के अपव्यय के कारण हिमाचल का टूरिज्म मॉडल विकसित नहीं हो पाया है। मसला हिमाचल को पर्यटन राज्य की छवि में उतारने का आज भी है और जिसके लिए एक प्रदेश स्तरीय योजना चाहिए। इसके लिए यह आवश्यक है कि सर्वप्रथम संभावनाओं को परिष्कृत करें और प्रदेश का एक मॉडल विकसित किया जा सके। भले ही पर्यटक सीजन की निगाहों में कुछ डेस्टिनेशन अब भीड़ के परिदृश्य में अपना आकर्षण खो रहे हैं, लेकिन आज भी हाई एंड टूरिज्म की हिस्सेदारी में प्रदेश की आर्थिकी विकसित नहीं हुई है। दूसरी ओर निजी क्षेत्र की पार्टनरशिप में पर्यटन का विकास पूर्ण नहीं हुआ। तीसरे स्थानीय निकायों खासतौर पर शहरी निकायों के साथ पर्यटन विकास का तारतम्य सही बैठाने की कोशिश ही नहीं हुई। ग्राम एवं नगर योजना कानून के तहत पर्यटन विकास को लेकर भी राज्य स्तरीय योजना बनाई जाए, तो सैलानी न तो भीड़ बनेंगे और न ही पर्यटक स्थल अपनी खूबसूरती को ईंट और मसाले से ढांप पाएंगे।
एडीबी बैंक से पर्यटन परियोजनाओं की वित्तीय जरूरतें पूरी हो सकती हैं, लेकिन पर्यटन आर्थिकी विकसित करने के लिए परियोजनाओं की परिकल्पना जब तक अराजनीतिक नहीं होेगी, विकास के खंडहर में उल्लू ही बोलेंगे। ऐसा पहले भी होता रहा है, जब पर्यटन सूचना केंद्र, कैफे तथा होटल इकाइयां तक उजड़ गईं। बेशक पर्यटन को नया ठौर चाहिए, नई मंजिलें चाहिएं, लेकिन संभावनाओं के अक्स को जब तक दुरुस्त नहीं किया गया, कोई विशेष बदलाव नहीं आएगा। सोचना यह होगा कि पर्यटक किन रास्तों से प्रवेश कर रहा है या पर्यटन के ट्रेंड किस तेजी से बदल रहे हैं। पिछले कुछ समय से हिमाचल में केवल सप्ताहांत पर्यटन ही क्यों दिखाई दे रहा है और क्यों नहीं सैलानी यहां आकर ज्यादा दिन रुकना चाहते हैं। पर्यटन विकास का मानचित्र अगर राजनीतिक इच्छाओं की चाकरी करेगा तो अरबों खर्च करके भी हम तमाशबीन बने रहेंगे। प्रदेश में पर्यटन आगमन की रूह को पहचानें तो अस्सी फीसदी लोग धार्मिक स्थानों पर आते हैं और वहीं से आगे बढ़ते हुए नए पर्यटन की खोज कर रहे हैं। दूसरी ओर युवा प्रोफेशनल महानगरीय अशांति से निकल कर सुकून की तलाश में अछूते नजारों व अपरिचित स्थलों में मानसिक शिविर ढूंढ रहे हैं। एक तीसरा वर्ग है जो राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय पैमानों पर हिमाचल के प्रमुख पर्यटन स्थलों को तौल रहा है।
पर्यटकों का यह वर्ग यहां की संस्कृति, खान-पान, लोककलाओं के साथ-साथ उच्च स्तरीय मनोरंजन सुविधाओं व सैरगाहों का निरीक्षण भी कर रहा है। क्या मनाली, डलहौजी, मकलोडगंज या शिमला की वर्तमान स्थिति को हम राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय पर्यटन मानचित्र से जोड़ सकते हैं। आश्चर्य तो यह है कि हिमाचल के प्रदेश द्वारों से डेस्टिनेशन पर्यटक स्थलों तक कोई ऐसा संकेत नहीं मिल रहा कि सारा व्यवसाय करीने से चल रहा है। परवाणू से शिमला, मंडी से मनाली, ऊना से धर्मशाला, कांगड़ा से मनाली, पठानकोट से चंबा या तमाम तीर्थ स्थलों को जोड़ते मार्गों पर अंधाधुंध निर्माण ने तमाम घाटियों, प्राकृतिक नजारों और परिदृश्य के सौंदर्य को छीन लिया है। पूरे प्रदेश में अगर दर्जनों मनोरंजन पार्क, फिल्म सिटी, साइंस सिटी तथा वे साइड सुविधाएं ही जुटा दें तो सैलानियों को सुविधा होगी। अगर प्रदेश के प्रमुख धार्मिक व पर्यटक स्थलों के बस अड्डों को ही आधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित करके निर्मित किया जाए, तो बदलाव आएगा। अगर प्रदेश की प्रमुख झीलों, बर्फाच्छित ढलानों तथा चरागाहों को ही संवार दिया जाए तो परिवर्तन आएगा। केरल, कर्नाटक, राजस्थान व गुजरात जैसे राज्यों ने पर्यटन आर्थिकी के लिए निवेश करते हुए इस क्षेत्र को जिस तरह व्यवस्थित किया, उसकी कहीं अधिक जरूरत है। प्रमुख पर्यटक शहरों की जनता हर बार पर्यटन सीजन की शिकार होती है या शिमला को राजधानी में वीआईपी आगमन से बचाने के लिए पर्यटन विकास से आम जनता को भी राहत देने की योजनाएं बनानी होंगी।