बीते समय में ट्विटर ने राष्ट्रपति ट्रंप को प्रतिबंधित कर दिया था। हाल में उसने भारत में भाजपा नेताओं की कुछ खबरों को गुमराह करने वाली सूचना बता दिया। विषय यह नहीं कि ऐसा करके सही किया या गलत? विषय यह है कि इन खबरों के सच अथवा झूठ होने का निर्णय ट्विटर अपने वाणिज्यिक स्वार्थों की दृष्टि से करेगा अथवा देश की जनता? इस दृष्टि से सरकार ने इन इंटरनेट मीडिया कंपनियों पर जो नियम लगाए हैं, वे पूर्णतया सही हैं। सरकार ने कहा है कि इन्हेंं एक शिकायत निवारण अधिकारी और सरकार से संबंध स्थापित करने के लिए एक विशेष अधिकारी नियुक्त करना होगा। इसी क्रम में सरकार ने वाट्सएप से कहा है कि वह किसी सूचना का मूल स्रोत पता लगाने की व्यवस्था करे।
जिस प्रकार कोरियर वाले को मालूम नहीं होता कि पैकेट में क्या है, पर वह बता सकता है कि पैकेट किसने भेजा, उसी प्रकार वाट्सएप भी बताए कि संदेश कहां से शुरू हुआ? आइआइटी मद्रास के प्रोफेसर कामकोटी के अनुसार यह संभव है कि वाट्सएप बिना कंटेंट खोले, उसके मूल स्रोत का पता लगा सकता है। सरकार द्वारा बनाया गया नियम तो ठीक है, पर इस नियंत्रण की जिम्मेदारी सरकारी अधिकारियों के हाथ में देने से दूसरा संकट पैदा होगा। ध्यान रहे कि चीन ने वुहान में कोरोना वायरस पनपने की खबरों पर रोक लगा दी। इसी तरह म्यांमार के शासक जनता के दमन की खबरों पर रोक लगा रहे हैं। हमारे सामने दो परस्पर विरोधी उद्देश्य हैं। एक तरफ इंटरनेट मीडिया कंपनियों को जनता के प्रति जवाबदेह होना चाहिए और दूसरी तरफ उन्हेंं सरकार के नियंत्रण से बाहर रखा जाना चाहिए। इस दिशा में फेसबुक ने एक ओवरसाइट बोर्ड की स्थापना की है, जो उसके द्वारा लिए गए निर्णयों की समीक्षा करता है। खबरों के अनुसार अपील किए गए मामालों में फेसबुक के पांच में से चार निर्णयों को ओवरसाइट बोर्ड ने गलत ठहराया। इसके बाद फेसबुक ने बोर्ड की सलाह का अनुपालन भी किया। ओवरसाइट बोर्ड सही दिशा में कार्य करता दिख रहा है, लेकिन यह बोर्ड फिर भी भारत की जनता के प्रति जवाबदेह नहीं है और भारत की संप्रभुता के बाहर है। ऐसे में यह जरूरी है कि ऐसी व्यवस्था बनाई जाए कि इंटरनेट मीडिया कंपनियां देश की जनता के प्रति तो जवाबदेह हों, पर सरकार के पूर्णतया अधीन न हों।
उक्त दोनों परस्पर विरोधी उद्देश्यों को हासिल करने के तीन उपाय दिखते हैं। पहला यह कि सभी इंटरनेट मीडिया कंपनियों को आदेश दिया जाए कि वे भारत में एक नई कंपनी गठित करें और अपनी गतिविधियों को उसी के तत्वाधान में क्रियान्वित करें। इस कंपनी में भारत सरकार द्वारा स्वतंत्र निदेशकों को नियुक्त किया जा सकता है, जैसे कंपनियों में स्वतंत्र निदेशक नियुक्त किए जाते हैं। छोटे निवेशकों के हितों की रक्षा करना इनकी जिम्मेदारी होती है। जैसे कंपनियों के बोर्ड में ऋण देने वाले बैंक द्वारा अपना प्रतिनिधि नियुक्त कर दिया जाता है, वैसे ही इंटरनेट मीडिया कंपनियों के बोर्डों में एक स्वयं कंपनी द्वारा स्वतंत्र निदेशक हो और एक सरकार द्वारा तय स्वतंत्र निदेशक और एक सरकार के प्रतिनिधि के रूप में तय निदेशक। ऐसा करने से कंपनी की गतिविधियों की पूर्ण जानकारी इन निदेशकों को रहेगी और वे कंपनी के निर्णयों में दखल भी दे सकेंगे। दूसरा उपाय यह है कि भारत सरकार को आत्मनिर्भर डिजिटल प्लेटफॉर्म प्रोत्साहित करना चाहिए। वाट्सएप द्वारा निजता का उलंघन करने की नीति बनाने के बाद सिग्नल और टेलीग्राम जैसे प्लेटफार्म में वृद्धि हुई है, लेकिन ये भी विदेशी कंपनियां हैं। उनकी शरण में जाना तो कुएं से निकलकर खाई में गिरने जैसा है। इसलिए भारत सरकार को आत्मनिर्भर डिजिटल प्लेटफॉर्म को प्रोत्साहन देने के लिए देश की कंपनियों के लिए पैकेज बनाना चाहिए कि यदि वे दस लाख या इससे अधिक सदस्य बनाएंगी तो उन्हेंं प्रोत्साहन राशि दी जाएगी। ऐसा करने से देश में कई इंटरनेट मीडिया कंपनियां पनप जाएंगी और फेसबुक और ट्विटर पर हमारी निर्भरता स्वत: समाप्त हो जाएगी।
तीसरा उपाय यह है कि कंपटीशन कमीशन ऑफ इंडिया को आदेश दिया जाए कि वह किसी भी इंटरनेट मीडिया कंपनी के भारत में अधिकतर सदस्यों की संख्या निर्धारित कर दे, जैसे कमीशन तय कर दे कि कोई भी कंपनी दो करोड़ से अधिक सदस्य नहीं बना सकती। यदि वह दो करोड़ से अधिक सदस्य बनाएगी तो कंपनी का दो टुकड़ों में विभाजन कर दिया जाएगा। ऐसा करने से तमाम कंपनियां बन जाएंगी और किसी एक पर हमारी निर्भरता समाप्त हो जाएगी। हमें इस चिंता में बिल्कुल नहीं रहना चाहिए कि इंटरनेट मीडिया कंपनियों पर नियंत्रण से भारत की साख गिरेगी और विदेशी निवेश का अकाल पड़ जाएगा। विदेशी निवेश के अकाल का भय इन्हीं इंटरनेट मीडिया कंपनियों के दिमाग की उपज है, ताकि वे ईस्ट इंडिया कंपनी की तरह भारत के मानस को सम्मोहित करके अपने क्षुद्र स्वार्थ हासिल कर सकें।