पारदर्शी प्रवेश प्रक्रिया की पहल जिससे दूर होंगी कई तरह की विसंगतियां
काफी समय से विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) सभी 45 केंद्रीय विश्वविद्यालयों को सामान्य प्रवेश परीक्षा के दायरे में लाने के लिए प्रयासरत है
प्रो. रसाल सिंह। काफी समय से विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) सभी 45 केंद्रीय विश्वविद्यालयों को सामान्य प्रवेश परीक्षा के दायरे में लाने के लिए प्रयासरत है। पिछले साल दिसंबर में यूजीसी ने इस योजना की व्यावहारिकता पर विचार-विमर्श करने के लिए पंजाब केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. आरपी तिवारी के नेतृत्व में सात सदस्यीय समिति का गठन किया था। इस समिति ने गैर-पेशेवर स्नातक और स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए सामान्य प्रवेश परीक्षा और पीएचडी कार्यक्रमों में प्रवेश के लिए राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (नेट) को आधार बनाने की सिफारिश की है।
इस रपट के अनुसार राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी (एनटीए) को केंद्रीय विश्वविद्यालयों में स्नातक में प्रवेश के लिए वर्ष में कम से कम दो बार सामान्य प्रवेश परीक्षा आयोजित करनी होगी। इससे केंद्रीय विश्वविद्यालयों के स्नातक और स्नातकोत्तर स्तरीय अव्यावसायिक पाठ्यक्रमों में प्रत्येक वर्ष प्रवेश लेने वाले पांच लाख से अधिक अभ्यर्थियों की राह आसान होने के आसार हैं। यह निर्णय अनेक विसंगतियों को दूर करेगा।
सामान्य प्रवेश परीक्षा के आयोजन संबंधी यह पत्र ऐसे समय में आया है जब दिल्ली विश्वविद्यालय जैसे प्रमुख संस्थानों में प्रवेश के लिए अवास्तविक और अकल्पनीय कटआफ ने अन्य विकल्पों की आवश्यकता को रेखांकित किया है। जब तक विश्वविद्यालयों में स्नातक प्रवेश कटआफ आधारित है, तब तक समतापूर्ण और समावेशी प्रवेश संभव नहीं है। सुखद है कि दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा प्रो. डीएस रावत की अध्यक्षता में गठित नौ सदस्यीय समिति ने भी सामान्य प्रवेश परीक्षा आयोजित करने का सुझाव दिया है।
इसे विद्वत परिषद और कार्यकारी परिषद ने स्वीकृति भी प्रदान कर दी है। निश्चित रूप से दिल्ली विश्वविद्यालय सहित सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों में प्रवेश पाने के लिए अब सामान्य प्रवेश परीक्षा ही एकमात्र विश्वसनीय विकल्प है। गैर-पेशेवर स्नातक और स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए होने वाली यह परीक्षा संयुक्त प्रवेश परीक्षा (जेईई) और राष्ट्रीय पात्रता एवं प्रवेश परीक्षा (एनईईटी) के समान एकल और स्तरीय प्रवेश परीक्षा होगी। इस बहुविकल्पीय, कंप्यूटर-आधारित परीक्षा में भाषा प्रवीणता, संख्यात्मक क्षमता आदि को परखने के लिए 'सामान्य योग्यता परीक्षा' और विषय ज्ञान का आकलन करने के लिए 'विषय विशिष्ट परीक्षा' होगी।
यह परीक्षा न केवल आसमान छूती कटआफ को समाप्त करेगी, बल्कि दूरदराज के और क्षेत्रीय भाषा के उम्मीदवारों के लिए भी प्रवेश के अवसर बढ़ाएगी। यह न्यूनतम 13 प्रादेशिक भाषाओं में आयोजित होगी। इससे एक सार्वभौमिक मानक द्वारा छात्रों के सटीक मूल्यांकन और रैंक निर्धारण का कार्य आसान हो जाएगा। यह मानकीकृत परीक्षण किसी एक बोर्ड के पाठ्यक्रम पर निर्भर नहीं होगा।
इसमें कुछ प्रांतों के और बोर्ड विशेष द्वारा अपनाई गई अत्यधिक उदार मूल्यांकन प्रणाली (जिसके परिणामस्वरूप 100 और 99 प्रतिशत अंक लाने वाले छात्रों की लंबी सूची होती है) तक का समाधान अंतर्निहित है। बोर्ड परीक्षा में प्रश्न पत्र भी एक से दूसरे प्रांत में भिन्न होते हैं और मूल्यांकन नीतियों का कोई मानकीकरण नहीं होता है। अब सामान्य प्रवेश परीक्षा देश भर के आवेदकों विशेष रूप से पूवरेत्तर और ग्रामीण क्षेत्रों के उम्मीदवारों को समान अवसर प्रदान करेगी। उन्हें अलग-अलग विश्वविद्यालयों के लिए अलग-अलग आवेदन करने और परीक्षा देने के झंझट से मुक्ति मिलेगी। एकल प्रवेश परीक्षा बिना किसी परेशानी के एक साथ कई विश्वविद्यालयों में प्रवेश के विकल्प प्रदान करेगी। हालांकि इससे कोचिंग सेंटर की भूमिका बढ़ने की भी आशंका है।
कोचिंग केंद्रित प्रणाली में गरीब, दलित, पिछड़े और ग्रामीण छात्रों का पिछड़ जाना स्वाभाविक है। कुछ लोगों का मानना है कि आर्थिक और सामाजिक रूप से वंचित वर्गो के छात्र शीर्ष विश्वविद्यालयों और पाठ्यक्रमों में प्रवेश नहीं पा सकेंगे। ये आशंकाएं निमरूल नहीं, परंतु इनकी वजह से सामान्य प्रवेश परीक्षा के विचार को निषिद्ध नहीं किया जाना चाहिए। संबंधित स्कूलों को वंचित पृष्ठभूमि के छात्रों के लिए विशेष कक्षाओं का आयोजन करना चाहिए। सरकार को एससी, एसटी, ओबीसी, ईडब्ल्यूएस आदि वंचित वर्ग के छात्र-छात्रओं के लिए तीन-चार महीने की गुणवत्तापूर्ण आनलाइन कोचिंग की मुफ्त व्यवस्था करनी चाहिए।
भेदभावपूर्ण स्कूली शिक्षा वाले घोर असमान समाज में सीमित अवसरों के न्यायपूर्ण वितरण के लिए एक निष्पक्ष और वस्तुपरक सामान्य मूल्यांकन ढांचा ही सवरेत्तम विकल्प है। इससे एक ऐसे सक्षम और व्यावहारिक समाधान की आशा की जा सकती है, जो समाज, स्कूलों, शैक्षणिक संस्थानों और छात्रों की जरूरतों को पूरा करता है। इसी प्रकार पीएचडी पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए नेट को आधार बनाने की सिफारिश भी स्वागतयोग्य है।
यह परीक्षा विभिन्न कालेजों और विश्वविद्यालयों में अध्यापकों की नियुक्ति के लिए आधारभूत और अनिवार्य शर्त है। शोध करने और उच्च शिक्षण संस्थानों में अध्यापन के इच्छुक सभी छात्र साल में दो बार आयोजित होने वाली इस परीक्षा में अनिवार्यत: शामिल होते हैं। इसलिए विभिन्न विश्वविद्यालयों द्वारा अपने शोध-पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए आयोजित की जाने वाली पृथक परीक्षाओं के स्थान पर नेट परीक्षा परिणाम को आधार बनाना व्यावहारिक और समीचीन है। इससे भी समय, संसाधन और ऊर्जा की बचत होगी और प्रवेश-प्रक्रिया में पारदर्शिता, गुणवत्ता और समानता भी सुनिश्चित हो सकेगी।
(लेखक जम्मू केंद्रीय विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं)