भारत का रुख

रूस-यूक्रेन युद्ध के मुद्दे पर भारत ने एक बार फिर दृढ़ता के साथ अपने तटस्थ रुख को उचित करार देकर पश्चिमी देशों के दबाव में नहीं आने का संदेश दे दिया है।

Update: 2022-04-27 02:15 GMT

Written by जनसत्ता: रूस-यूक्रेन युद्ध के मुद्दे पर भारत ने एक बार फिर दृढ़ता के साथ अपने तटस्थ रुख को उचित करार देकर पश्चिमी देशों के दबाव में नहीं आने का संदेश दे दिया है। दिल्ली में चल रहे रायसीना संवाद में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने साफ कहा कि भारत किसी खेमे का हिस्सा बनने के बजाय तत्काल जंग रोकने और कूटनीतिक प्रयासों के जरिए शांति कायम करने का पक्षधर है और वह इसी नीति पर चलेगा।

भारत का यह रुख उचित और तार्किक इसलिए भी है कि अगर रूस-यूक्रेन युद्ध के मुद्दे पर खेमेबाजी बढ़ती गई तो जंग खत्म होने के बजाय और बढ़ती ही जाएगी और हर पक्ष दूसरे को सबक सिखाने की रणनीति पर चलता रहेगा। वैश्विक राजनीतिक मसलों पर हर साल होने वाला रायसीना संवाद इस बार ज्यादा महत्त्वपूर्ण इसलिए भी हो गया है कि इसमें यूक्रेन का मुद्दा ही प्रमुखता से छाया हुआ है। यूरोपीय संघ के सदस्य देशों के प्रतिनिधि भारत की तटस्थता की नीति को लेकर सवाल तो पहले से ही उठा रहे हैं। हाल के दिनों में एक के बाद विदेशी नेताओं के दिल्ली के दौरे यह बताने के लिए काफी हैं कि मौजूदा हालात में भारत की भूमिका कितनी महत्त्वपूर्ण हो गई है।

रायसीना संवाद में रूस-यूक्रेन युद्ध का मुद्दा जिस तरह से छाया हुआ है, उससे यह साफ हो गया है कि यूरोपीय संघ अपने हितों को लेकर ज्यादा परेशान है। शायद इसीलिए यूरोपीय आयोग की प्रमुख उर्सुला लेयन ने यूक्रेन पर रूस के हमले को लेकर जो चिंता जताई है, उसमें उन्होंने भारत की सुरक्षा को लेकर संभावित खतरों को भी रेखांकित किया। यूरोपीय संघ भारत को यह बताना चाह रहा है कि यूक्रेन जैसे खतरे हिंद-प्रशांत में भी हैं और भविष्य में भारत को इनसे रूबरू होना पड़ सकता है। निश्चित ही उनका इशारा चीन की ओर है।

हिंद और प्रशांत महासागर में चीन की सैन्य गतिविधियांजिस तेजी से बढ़ी हैं, उससे अमेरिका सहित दुनिया के ज्यादातर देश परेशान हैं। हिंद महासागर में यह संकट भारत के लिए भी कम गंभीर नहीं है। चीन इन दोनों महासागरों में अपनी ताकत बढ़ा कर दुनिया के बड़े समुद्री मार्ग पर अपना दबदबा बनाने की रणनीति पर चल रहा है। दक्षिण चीन सागर में तो उसने समुद्री परिवहन के अपने नियम लागू कर दिए हैं। अमेरिका और यूरोपीय संघ इसे आने वाले वक्त के बड़े खतरे के रूप में देख रहे हैं।

हिंद-प्रशांत क्षेत्र को लेकर यूरोपीय संघ की चिंता के जवाब में भारत ने जो मुद्दा उठाया और तार्किक जवाब दिया, उसके बाद तो पश्चिमी देशों को भारत के रुख के बारे में कोई संदेह नहीं रह जाना चाहिए। अफगानिस्तान का मुद्दा उठाते हुए भारत ने साफ कहा कि एक दशक से एशिया में जो रहा है, उस पर यूरोप क्यों चुप रहता है? इसलिए यूरोप के लिए यूक्रेन से भी ज्यादा बड़ी चेतावनी तो यह है कि वह सिर्फ यूरोप को ही नहीं, बल्कि एशिया को भी देखे। भारत ने सवाल उठाया कि आखिर कैसे अफगानिस्तान को असहाय छोड़ दिया गया? तब यूरोपीय देश कहां थे?

एशिया में आतंकवाद गंभीर समस्या है। यह सही है कि रूस-यूक्रेन युद्ध की छाया सब जगह पड़ेगी। भारत की भूमिका कहीं ज्यादा बड़ी इसलिए भी है कि वह अमेरिका के नेतृत्व वाले क्वाड समूह का हिस्सा भी है और दूसरी ओर उसे रूस के साथ भी संतुलन बना कर चलना है। ऐसे में भारत किसी एक खेमे में शामिल हो कर संकट और क्यों बढ़ाएगा? रूस-यूक्रेन युद्ध तत्काल रुके, सबकी कोशिश और प्राथमिकता तो यही होनी चाहिए।


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