फिर निशाने पर भारतीय
दक्षिण अफ्रीका में पिछले महीने हिंसा और लूटपाट का शिकार हुआ भारतीय समुदाय एक बार फिर खुद को उन्हीं
दक्षिण अफ्रीका में पिछले महीने हिंसा और लूटपाट का शिकार हुआ भारतीय समुदाय एक बार फिर खुद को उन्हीं परिस्थितियों से घिरता महसूस कर रहा है। पूर्व राष्ट्रपति जैकब जुमा की गिरफ्तारी को लेकर वहां के दो प्रांतों- क्वाजुलु नटाल और गौतेंग- में हुई हिंसा में कम से कम 330 लोग मारे गए थे, जिनमें भारतीय भी थे। तब लूटपाट में भारतीयों के होटलों, दुकानों और व्यापारिक प्रतिष्ठानों को भी निशाना बनाया गया था। यही वजह है कि हिंसा का वह दौर थमने के करीब एक महीने बाद जब दोबारा हिंसा भड़कने के आसार बनते दिखाई दे रहे हैं तो साउथ अफ्रीका में रहने वाले 13 लाख भारतीय समुदाय के लोगों में डर और बेचैनी है।
असल में, पिछले कुछ दिनों से वहां भारतीय समुदाय के लोगों को वॉट्सऐप संदेशों और विडियो के जरिए धमकाया जा रहा है। उनसे देश छोड़ने को कहा जा रहा है। नतीजतन, ओवरसीज सिटिजंस ऑफ इंडिया (ओसीआई) कार्ड के लिए आवेदन करने वालों की संख्या अचानक काफी बढ़ गई है, लेकिन इसमें भी दिक्कत आ रही है। वहां जो भारतीय रह रहे हैं, उनमें से ज्यादातर के पूर्वजों को 150 साल पहले अंग्रेज अपने खेतों में मजदूरी कराने ले गए थे। उस यात्रा के दस्तावेज अब शायद ही उनके पास हों। आरोप है कि ऐसी सूरत में ओसीआई कार्ड को लेकर दूतावास से बहुत मदद नहीं मिल रही।
अगर वाकई ऐसा है तो इस मामले में विदेश मंत्रालय को दखल देना चाहिए। उसे ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए कि ओसीआई कार्ड बनवाने में लोगों को कोई परेशानी न हो। इसके साथ उसे कुछ और बातों पर ध्यान देना होगा। पिछले महीने जूमा की गिरफ्तारी के बाद हिंसा को रोकने के लिए पहले तो दक्षिण अफ्रीकी सरकार ने समय रहते सेना को तैनात नहीं किया। दूसरी बात यह है कि हिंसा प्रभावित लोगों ने तब पुलिस और सेना पर सहयोग नहीं देने का भी आरोप लगाया था। अब अगर फिर से भारतीयों को हिंसा की धमकी दी जा रही है तो विदेश मंत्रालय पहल करके यह सुनिश्चित कर सकता है कि पिछली बार जैसी गलतियां न दोहराई जाएं। साउथ अफ्रीका सरकार ने पिछली बार यह स्पष्टीकरण दिया था कि हिंसा और लूटपाट की घटनाओं के पीछे अपराधी मानसिकता है, नस्लवादी सोच नहीं।
शायद यह बात ठीक हो, लेकिन अगर विभिन्न समुदायों के बीच दरार हिंसा तक पहुंच गई है तो इसके लिए इनके बीच की दूरियां मिटानी होंगी। इसमें सरकार और सिविल सोसाइटी की बड़ी भूमिका हो सकती है। इस संदर्भ में डरबन में रहने वाली महात्मा गांधी की पौत्री इला गांधी की पहल सराहनीय है। वह सभी समुदायों को साथ लेकर अमन की कोशिश कर रही हैं। लंबी अवधि में इस दरार को खत्म करने के लिए दक्षिण अफ्रीका की सरकार को अपने यहां की सामाजिक और आर्थिक गैर-बराबरी में कमी लाने की कोशिश करनी होगी।
क्रेडिट बाय NBT